– हर-हर महादेव से गुंजायमान हुआ कानुपर
सावन के पहले सोमवार को भोर से आस्था का जन सैलाब उमड़ा। नगर एवं ग्रामीण क्षेत्रों के शिव मंदिरों में हर हर महादेव गूंज के साथ बाबा भोले नाथ का जलाभिषेक शुरू किया। नगर के बाबा आनंदेश्वर परमट मंदिर, अर्धनारीश्वर,नमेदेश्वर,वनखण्डेश्वर, खेरेश्वर, कालेश्वर, जगेश्वर, वामेश्वर समेत सभी मंदिरों में शिव भक्तों का ताता लगा हुआ है। सुरक्षा की दृष्टि से पुलिस बल तैनाती के साथ ही सीसीटीवी, एवं ड्रोन कैमरों से निगरानी की जा रही है।
परमट स्थित बाबा आनंदेश्वर मंदिर के दर्शन के संदर्भ में एडिशनल डीसीपी वेस्ट के नेतृत्व में मर्चेंट चेंबर हॉल में एसीपी कर्नलगंज और मेला में लगे सभी प्रभारी निरीक्षक, निरीक्षक, चौकी प्रभारी, उपनिरीक्षक, मुख्य आरक्षी, आरक्षी, महिला उप निरीक्षक, तथा महिला आरक्षी तैनात किये गए है।
इसके साथ ही एडिशनल डीसीपी पश्चिम, एसीपी कर्नलगंज, प्रभारी निरीक्षक ग्वालटोली पुलिस बल के साथ निगरानी में लगे हुए हैं। शिव भक्तो एवं आम जनता की सभी समस्याओं को ध्यान में रखते रविवार को परमट मंदिर का निरीक्षण किया किया था।
बाबा आनंदेश्वर परमट मंदिर
गंगा किनारे बसा ये प्राचीन मंदिर जिसे द्वितीय काशी भी कहा गया है। जाजमऊ स्थित गंगा किनारे बसा प्राचीन प्रसिद्ध सिद्धनाथ मंदिर है, जिसे हम सभी द्वितीय काशी के रूप में भी जानते हैं। यहां वैसे तो प्रत्येक दिन शिवभक्तों का आना-जाना लगा रहता है लेकिन सावन के पवित्र महीने में यहां देश के कोने—कोने से लोग इस मन्दिर में आकर भोलेनाथ के दर्शन करते हैं। यहां भक्त बेलपत्री, दूध,दही और जल का अभिषेक कर शिवलिंग पर चढ़ाते कर मनोकामनाए मांगते हैं।
ऐसी मान्यता है कि त्रेतायुग में जाजमऊ स्थित राजा यति का महल हुआ करता था। उनके पास एक हजार गाय थीं। लेकिन वे इन गायों में से एक गाय का ही दूध पिया करते थे, जिसके पांच थन थे। वही सुबह गायों को चरवाहे चरने के लिए छोड़ दिया करते थे। इस दौरान एक गाय अक्सर झाड़ियों के पास जाकर अपना दूध एक पत्थर पर गिरा देती थी। जब ये बात राजा को पता चली तब उन्होंने अपने रक्षकों से इस बारे में जानकारी करने को कहा।
राजा के रक्षकों ने बताया कि गाय झाड़ियों के पास अपना दूध एक पत्थर पर गिरा देती है। उसी वक्त राजा ने फैसला किया कि हम वहा चलेंगे उस जगह पर जाने के बाद उन्होंने उस टीले के आसपास खुदाई करवाई जहां उन्हें खुदाई करते वक्त एक शिवलिंग दिखाई दिया। जिसके बाद राजा ने विधि विधान से शिवलिंग का पूजन कर शिवलिंग को स्थापित कर दिया।
कहा जाता है कि राजा को एक रात स्वप्न आया कि यहाँ 100 यज्ञ पूरे करो तो यह जगह काशी कहलाएगी। जिसके बाद राजा ने विधि विधान से यज्ञ प्रारंभ भी कर दिया। बताया जाता है कि राजा के 99 यज्ञ पूरे हो गए थे 100वां यज्ञ के दौरान एक कौवे ने उस हवन कुंड में हड्डी डाल दी, जिसके बाद ये जगह काशी बनने से तो चूक गयी। लेकिन आज भी सभी भक्त इसे द्वितीय काशी के रूप में जानते हैं। तबसे लेकर ये प्रसिद्ध मंदिर सिद्धनाथ के नाम से जाना जाने लगा।
सिद्धनाथ मन्दिर के पुजारी मुन्नी लाल पांडेय ने बताया कि सिद्धनाथ मंदिर में श्रद्धालुओं की प्रत्येक दिन भीड़ बनी रहती है देश के कोने-कोने से लोग भोलेनाथ के दर्शन के लिए यहां आते है। और यहां सावन के चौथे सोमवार के दिन भव्य मेला का भी आयोजन होता है। भक्तों को सिद्धनाथ बाबा ने कभी निराश नही किया बच्चों के मुंडन हो या किसी भी प्रकार की मनोकामना बाबा सिद्धनाथ जरूर उसे पूरा करते हैं संतान प्राप्ति के लिए लोग पूजा अर्चना करते है।
आशा खबर / शिखा यादव