अखिल विश्व गायत्री परिवार प्रमुख डॉ प्रणव पण्ड्या ने कहा कि तप और उर्जा से सबल सद्गुरु ही अपने शिष्यों का कायाकल्प कर सकता है। जिस तरह गायत्री के परिवार के संस्थापक पूज्य पं श्रीराम शर्मा आचार्य ने मात्र 15 वर्ष की आयु से कठोर तप, साधना और आहार संयम के माध्यम से अपने आपको वज्र जैसा बनाया, उसके बाद ही उन्होंने गुरुदीक्षा देना प्रारंभ किया था। आचार्यश्री से दीक्षित होकर लाखों, करोड़ों व्यक्तियों ने अपने में आमूलचूल परिवर्तन पाया है।
डॉ पण्ड्या आज शांतिकुंज में गुरुपूर्णिमा पर्व मनाने देश-विदेश से आये गायत्री साधकों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि जीवन की सार्थकता ज्ञान के बिना अधूरा है। ज्ञान की दो धाराएं प्रज्ञा एवं श्रद्धा से युक्त सद्गुरु ही अपने शिष्यों के जीवन को सार्थक करता है। ज्ञानवान व श्रद्धावान व्यक्तियों को ही समाज अपना आदर्श मानता है। उनके बताये कार्ययोजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए कार्य करता है। उन्होंने कहा कि आचार्यश्री प्रज्ञा की प्रखरता एवं श्रद्धा से ओतप्रोत थे। यही कारण है कि लाखों करोड़ों शिष्य उनके कार्यों को आगे बढ़ाने में एक साथ जुटे हैं।
संस्था की अधिष्ठात्री शैलदीदी ने कहा कि चरित्रवान एवं सामर्थ्यवान सद्गुरु ही अपने शिष्यों के जीवन का कायाकल्प करता है। उन्होंने कहा कि शिष्य गुरु के आत्मानुशासन के बंधन में बंध कर अपने सद्गुणों को विकसित करता है। ऋषि जिस तरह अपने शिष्यों को श्रद्धावान बनाने के साथ उसका चहुंमुखी विकास करते थे, परिणामतः उनके शिष्य राष्ट्र व संस्कृति के विकास के लिए प्राणवान, ऊर्जावान हो संकल्पित होकर समाज के विकास में जुटते थे।
इस अवसर पर अखिल विश्व गायत्री परिवार प्रमुखद्वय डॉ पण्ड्या एवं शैलदीदी ने गायत्री महाविज्ञान आडियो बुक, गुरुपरक प्रज्ञागीत, गुुरुवर को जैसे मैंने देखा, विविध देवानाम, सम्पूर्ण योगवासिष्ठ कथासार, नारी सशक्तिकरण मार्गदर्शिका सहित सात पुस्तकों का विमोचन किया। प्रमुखद्वय ने देववृक्षों का पूजन कर पौधरोपण अभियान में भागीदारी करने के लिए अपील की।
इस अवसर पर देश-विदेश से आये हजारों शिष्यों ने पूज्य आचार्यश्री के युग निर्माण की संजीवनी विद्या, सद्विचार, सद्साहित्य को जन-जन तक पहुंचाने का संकल्प लिया। साथ ही शांतिकुंज में विद्यारंभ, उपनयन, मुण्डन, विवाह आदि संस्कार बड़ी संख्या में निःशुल्क कराये गये।
आशा खबर / शिखा यादव