वैश्विक मंच पर भारतीय खिलाड़ी कई बार बेहद करीब से ओलंपिक पदक जीतने से चूक गए थे। इसकी शुरुआत 1956 मेलबर्न ओलंपिक में हुई थी और यह टोक्यो में हुए पिछले ओलंपिक तक जारी रहा। आइये जानते हैं…
पेरिस ओलंपिक का आगाज होने जा रहा है। इसमें भारतीय खिलाड़ी भी दम-खम दिखाते नजर आएंगे। भारतीय ओलंपिक संघ (आईओए) ने कुल 117 एथलीट्स को आगामी टूर्नामेंट के लिए भेजा है। भारत को इनसे अच्छे प्रदर्शन और पदक की उम्मीद है। टोक्यो ओलंपिक 2020 में भारत ने एक स्वर्ण के साथ कुल सात पदक अपने नाम किए थे। आज हम आपको उन मौकों के विषय में बताएंगे जब खेल के सबसे बड़े वैश्विक मंच पर भारतीय खिलाड़ी कई बार बेहद करीब से ओलंपिक पदक जीतने से चूक गए थे। इसकी शुरुआत 1956 मेलबर्न ओलंपिक में हुई थी और यह टोक्यो में हुए पिछले ओलंपिक तक जारी रहा। आइये जानते हैं…
मेलबर्न ओलंपिक, 1956 में भारतीय फुटबॉल टीम ने क्वॉर्टर फाइनल में ऑस्ट्रेलिाय को 4-2 से हराकर सेमीफाइनल में जगह बनाई थी। इस मुकाबले में नेविल डिसूजा ने लगातार तीन गोल किए थे और ओलंपिक में हैट्रिक गोल करने वाले पहले एशियाई बने थे। ऐसा ही प्रदर्शन उन्होंने सेमीफाइनल में किया था। हालांकि, यूगोस्लाविया ने दूसरे हाफ में वापसी करते हुए मुकाबला अपने नाम कर लिया था। कांस्य पदक मुकाबले में भारत बुल्गारिया से 0-3 से हार गया था।
रोम ओलंपिक, 1960
रोम ओलंपिक 1960 में भारत के महान मिल्खा सिंह ने 400 मीटर फाइनल में पदक के लिए दावेदारी पेश की थी। हालांकि, वह सेकंड के 10वें हिस्से से कांस्य पदक से चूक गए थे।
इस हार से वह बुरी तरह टूट गए थे और ‘फ्लाइंग सिख’ के नाम से मशहूर इस दिग्गज ने खेल लगभग छोड़ ही दिया था। इसके बाद उन्होंने 1962 के एशियाई खेलों में वापसी करते हुए दो स्वर्ण पदक जीते।
नीदरलैंड, ऑस्ट्रेलिया और ग्रेट ब्रिटेन जैसे शीर्ष हॉकी देशों ने अफगानिस्तान पर तत्कालीन सोवियत संघ के आक्रमण पर मास्को खेलों का बहिष्कार किया था। भारतीय महिला हॉकी टीम के पास अपने पहले प्रयास में ही कांस्य पदक जीतने का बड़ा मौका था। हालांकि, टीम को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था। टीम अपने आखिरी मैच में सोवियत संघ से 1-3 से हारकर चौथे स्थान पर रही थी।
लास एंजिलिस ओलंपिक, 1984
लास एंजिलिस ओलंपिक में पीटी उषा 400 मीटर बाधा दौड़ में सेकंड के 100वें हिस्से से कांस्य पदक से चूक गईं थीं। ‘पय्योली एक्सप्रेस’ के नाम से मशहूर उषा रोमानिया की क्रिस्टीना कोजोकारू के बाद चौथे स्थान पर रहीं थीं।
दिग्गज लिएंडर पेस और महेश भूपति की टेनिस में भारत की संभवतः सबसे महान युगल जोड़ी एथेंस खेलों में पुरुष युगल में पदक जीतने से चूक गई थी। पेस और भूपति क्रोएशिया के मारियो एनसिक और इवान ल्युबिसिक से मैराथन मैच में 6-7, 6-4, 14-16 से हारकर कांस्य पदक से चूक गए और चौथे स्थान पर रहे थे।
इन खेलों में कुंजारानी देवी महिलाओं की 48 किग्रा भारोत्तोलन प्रतियोगिता में चौथे स्थान पर रहीं थीं, लेकिन वह वास्तव में पदक की दौड़ में नहीं थीं। उन्हें क्लीन एवं जर्क वर्ग में 112.5 किग्रा वजन उठाने के अपने अंतिम प्रयास में अयोग्य घोषित कर दिया गया था। कुंजारानी 190 किग्रा के कुल प्रयास के साथ कांस्य पदक विजेता थाईलैंड की एरी विराथावोर्न से 10 किग्रा पीछे रही थीं।
लंदन ओलंपिक, 2012
निशानेबाज जॉयदीप करमाकर पुरुषों की 50 मीटर राइफल प्रोन स्पर्धा के क्वालिफिकेशन राउंड में सातवें स्थान पर रहे थे और फाइनल में वह कांस्य पदक विजेता से सिर्फ 1.9 अंक पीछे रहे थे।
रियो ओलंपिक, 2016
दीपा करमाकर ओलंपिक खेलों में प्रतिस्पर्धा करने वाली पहली भारतीय महिला जिमनास्ट बनीं थीं। महिलाओं की वॉल्ट स्पर्धा के फाइनल में जगह बनाने के बाद वह महज 0.150 अंकों से कांस्य पदक से चूक गईं थीं। उन्होंने 15.066 के स्कोर के साथ चौथा स्थान हासिल किया था।
बोपन्ना को 2004 के बाद एक बार फिर से ओलंपिक पदक जीतने से दूर रहने की निराशा का सामना करना पड़ा था, जब उनकी और सानिया मिर्जा की भारतीय मिश्रित युगल टेनिस जोड़ी को सेमीफाइनल और फिर कांस्य पदक मुकाबले में हार का सामना करना पड़ा था। इस जोड़ी को कांस्य पदक मैच में लुसी ह्रादेका और रादेक स्तेपानेक से हार का सामना करना पड़ा था।
भारतीय महिला हॉकी टीम को एक बार फिर करीब से पदक चूकने का दंश झेलना पड़ा था। भारतीय टीम तीन बार की ओलंपिक चैंपियन ऑस्टेलिया को हराकर सेमीफाइनल में पहुंची थी लेकिन उसे अंतिम चार मैच में अर्जेंटीना से 0-1 से हार का सामना करना पड़ा था। इसी ओलंपिक में अदिति अशोक ऐतिहासिक पदक जीतने से चूक गईं थीं।