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‘मुआवजे के लिए आरपीएफ कर्मियों को भी मान सकते हैं कर्मचारी’, अदालत ने खारिज की कमांडिंग ऑफिसर की अपील

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शीर्ष अदालत ने आरपीएफ की इस दलील को खारिज कर दिया कि मृत कांस्टेबल के उत्तराधिकारियों का मुआवजा दावा बरकरार नहीं रखा जा सकता है क्योंकि वह केंद्र के सशस्त्र बल में था और उसे 1923 के कानून के तहत कर्मकार के रूप में नहीं माना जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) कर्मियों को ‘कर्मचारी’ माना जा सकता है। केंद्रीय सशस्त्र बल से होने के बावजूद वह कर्मचारी मुआवजा अधिनियम, 1923 के तहत ड्यूटी पर लगी चोट के लिए मुआवजे का दावा कर सकता है। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने आरपीएफ की एक इकाई, रेलवे सुरक्षा विशेष बल (आरपीएसएफ) के एक कमांडिंग ऑफिसर की अपील को खारिज कर दिया, जिसमें गुजरात हाईकोर्ट के 2016 के आदेश को चुनौती दी गई थी।हाईकोर्ट ने ड्यूटी पर मारे गए एक कांस्टेबल के परिजनों को कर्मकार मुआवजा आयुक्त द्वारा दिए गए मुआवजे को बरकरार रखा। शीर्ष अदालत ने आरपीएफ की इस दलील को खारिज कर दिया कि मृत कांस्टेबल के उत्तराधिकारियों का मुआवजा दावा बरकरार नहीं रखा जा सकता है क्योंकि वह केंद्र के सशस्त्र बल में था और उसे 1923 के कानून के तहत कर्मकार के रूप में नहीं माना जा सकता है।

शीर्ष अदालत ने खोज समिति गठन के लिए मांगे नाम
वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल के 13 सरकारी विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति और चयन के लिए एक सर्च पैनल (खोज समिति) गठित करने के लिए वैज्ञानिकों, टेक्नोक्रेट, प्रशासकों, शिक्षाविदों और न्यायविदों सहित प्रतिष्ठित हस्तियों के नाम मांगे हैं। इस मुद्दे को लेकर ममता सरकार और प.बंगाल के राज्यपाल के बीच चल रहे विवाद को ध्यान में रखते हुए शीर्ष अदालत ने पिछले दिनों फैसला किया कि वह कुलपतियों को चुनने के लिए एक खोज समिति का गठन करेगी।

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