वैश्विक स्तर पर बढ़ते तापमान को 1.3 डिग्री सेल्सियस से 2.4 डिग्री सेल्सियस के बीच सीमित रखने में सफल हो भी जाएं तो भी 2050 तक 100 करोड़ अतिरिक्त लोग इस गंभीर जल संकट का सामना करने को मजबूर होंगे।
भारत सहित दुनिया के 25 देशों में जल संकट गंभीर रूप ले चुका है। यह वह देश हैं जो अपनी जल आपूर्ति का 80 फीसदी से ज्यादा हिस्सा खर्च कर रहे हैं। इन देशों में केवल गर्मियों में ही नहीं बल्कि पूरे साल पानी की कमी बरकरार रहती है। पानी की यह बढ़ती कमी यहां रहने वाले लोगों के जीवन, जीविका, खाद्य आपूर्ति, कृषि, उद्योगों और ऊर्जा सुरक्षा को भी बुरी तरह प्रभावित कर रही है। यह जानकारी वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टिट्यूट (डब्ल्यूआरआई) द्वारा जारी एक्वाडक्ट वॉटर रिस्क एटलस के नवीनतम आंकड़ों में सामने आई है। उल्लेखनीय है कि यह 25 देश दुनिया की करीब एक चौथाई आबादी का स्थायी निवास हैं। इनमें कुछ ऐसे इलाके भी शामिल हैं जहां प्राकृतिक आपदा अथवा भारी बारिश के कारण जल वितरण प्रणाली बुरी तरह लड़खड़ा गई है।
अफ्रीका में सबसे खराब स्थिति
यदि क्षेत्रीय तौर पर देखें तो मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में जल संकट की स्थिति सबसे ज्यादा विकट है। इस क्षेत्र में 83% आबादी गंभीर जल संकट का सामना कर रही है। दक्षिण एशिया में करीब 74% आबादी जल संकट से त्रस्त है। 1960 के मुकाबले पानी की मांग बढ़कर दोगुनी हो गई है। इसके लिए कहीं न कहीं बढ़ती आबादी, उद्योग, कृषि, मवेशी, ऊर्जा उत्पादन, निर्माण और जलवायु में आता बदलाव जैसे कारण जिम्मेदार हैं।
400 करोड़ लोगों को रहती है एक माह पानी की किल्लत
आंकड़ों के अनुसार दुनिया की 400 करोड़ की आबादी साल में एक महीने पानी की भारी किल्लत का सामना करती हैं। यदि हम वैश्विक स्तर पर बढ़ते तापमान को 1.3 डिग्री सेल्सियस से 2.4 डिग्री सेल्सियस के बीच सीमित रखने में सफल हो भी जाएं तो भी 2050 तक 100 करोड़ अतिरिक्त लोग इस गंभीर जल संकट का सामना करने को मजबूर होंगे।