राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) ने एनएमसीजी के महानिदेशक जी. अशोक कुमार की अध्यक्षता में कार्यकारी समिति की 45वीं बैठक आयोजित की। बैठक में सीवरेज प्रबंधन, औद्योगिक प्रदूषण उपशमन, जैव विविधता संरक्षण, वनरोपण, रिवर फ्रंट विकास और विकेन्द्रीकृत अपशिष्ट जल उपचार से संबंधित 14 परियोजनाओं को लगभग 1145 करोड़ रुपये की कुल अनुमानित लागत पर अनुमोदित किया गया। इनमें गंगा के किनारे बसे (बेसिन) पांच मुख्य राज्यों- उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में सीवरेज प्रबंधन की आठ परियोजनाएं सम्मिलित हैं।
सीवरेज प्रबंधन के लिए उत्तर प्रदेश में 308.09 करोड़ रुपये की लागत से 55 एमएलडी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) के निर्माण के द्वारा वाराणसी में अस्सी नाले के दोहन तथा अन्य कार्यों सहित चार परियोजनाओं को मंजूरी दी गई। इस परियोजना को तीन नालों – अस्सी, सनमे घाट और नाखा से शून्य अनुपचारित विसर्जक अर्जित करने के उद्देश्य से मंजूरी दी गई। अन्य परियोजनाओं में 77.70 करोड़ रुपये की लागत से वृंदावन शहर में 13 एमएलडी एसटीपी का निर्माण, विद्यमान संरचनाओं का नवीनीकरण, 66.59 करोड़ रुपये की लागत से मथुरा जिले के कोसी कलां शहर में 12 एमएलडी एसटीपी का निर्माण, इंटरसेप्शन और डायवर्सन (आई एंड डी) नेटवर्क का बिछाया जाना तथा मथुरा जिले के छटा शहर में 6 एमएलडी एसटीपी, आई एंड डी नेटवर्क बिछाना आदि शामिल हैं। मथुरा-वृंदावन में उपरोक्त परियोजनाओं की परिकल्पना क्रमशः 2, 1 और 11 नालों को इंटरसेप्ट और डायवर्ट करने के लिए की गई है, जो कोसी नाले में गिरते हैं, जो अंततः मथुरा में यमुना नदी में विसर्जित हो जाते हैं। उपरोक्त सभी परियोजनाओं में 15 वर्षों के लिए परिसंपत्तियों का प्रचालन और रखरखाव शामिल है।
284.80 करोड़ रुपये की लागत से झारखंड के रामगढ़ शहर में आवश्यक सहायक बुनियादी ढांचे, स्काडा और ऑनलाइन निगरानी प्रणाली आदि सहित 2 एसटीपी (17 एमएलडी और 23 एमएलडी) का निर्माण, 67.06 करोड़ रुपये की लागत से पश्चिम बंगाल के केओरापुकुर में 50 एमएलडी एसटीपी का निर्माण, विद्यमान संरचनाओं का नवीनीकरण सहित उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड के लिए सीवरेज प्रबंधन की एक-एक परियोजना को भी मंजूरी दी गई है। बिहार में 47.39 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत की परियोजना में 2 एसटीपी (हारबोरा नदी पर 2.5 एमएलडी और बेलवा साथी नहर पर 4.5 एमएलडी), आई एंड डी नेटवर्क, इंटेक वेल आदि शामिल हैं। 74.38 करोड़ रुपये की लागत से उत्तराखंड के देहरादून की सपेरा बस्ती में 13 एमएलडी एसटीपी के निर्माण और अन्य कार्यों के लिए भी एक परियोजना को मंजूरी दी गई। यह परियोजना अनुपचारित सीवेज को सुशवा नदी में बहने से रोकेगी।
उत्तर प्रदेश के चार जिलों – हापुड़, बुलंदशहर, बदायूं और मिर्जापुर में चार जैव विविधता पार्कों की स्थापना के लिए एक बड़ी परियोजना को भी 24.97 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत पर मंजूरी दी गई है। सभी चार स्थान गंगा के बाढ़ के मैदानों के साथ स्थित हैं। प्रस्तावित पार्क गंगा के बाढ़ के मैदानों के साथ आरक्षित वनों का हिस्सा हैं और नदी के जीर्णोद्धार और जैव विविधता के संरक्षण में प्रमुख भूमिका निभाएंगे। जैव विविधता पार्कों का विवरण है- मिर्जापुर में मोहनपुर जैव विविधता पार्क, बुलंदशहर में रामघाट जैव विविधता पार्क, हापुड़ में आलमगीरपुर जैव विविधता पार्क और बदायूं में उझानी जैव विविधता पार्क हैं। ये स्थल फूलों और जीवों की विविधता में समृद्ध हैं और इनमें विविध प्राकृतिक वास है। जीर्णोद्धार के बाद, जैव विविधता बायोमास, प्रवाह व्यवस्था, जलवायु अनुकूलता और गंगा नदी बेसिन में आजीविका में वृद्धि के साथ और समृद्ध होगी। जैव विविधता पार्क देशी पौधों और पशुओं की प्रजातियों के संयोजन के साथ जंगल का अनूठा परिदृश्य भी प्रदान करेंगे जो एक क्षेत्र में बनाए गए आत्मनिर्भर जैविक समुदायों का निर्माण करते हैं और प्राकृतिक तथा कृषि परिदृश्य में जैव विविधता, जीन पूल और परितंत्र सेवाओं के स्वस्थाने और उत्स्थाने संरक्षण दोनों उद्देश्यों को पूरा करते हैं। गंगा जैव विविधता पार्कों के समग्र परिणाम से परितंत्र सेवाओं, जैव विविधता और बेसिन स्तर पर गंगा नदी के कायाकल्प को बनाए रखने में मदद मिलेगी।
वनरोपण घटक के तहत, 1.56 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत पर झारखंड राज्य के लिए एक परियोजना को मंजूरी दी गई। युक्तियों में उन्नत वन आवरण, वन विविधता और उत्पादकता में वृद्धि, जैव विविधता संरक्षण और टिकाऊ भूमि और इकोसिस्टम प्रबंधन के लिए परितंत्र सेवाओं के बेहतर प्रवाह, स्थायी आजीविका और गंगा नदी के समग्र संरक्षण की इच्छा व्यक्त की गई है। यह परियोजना झारखंड के वन विभाग द्वारा तैयार की गई वार्षिक संचालन योजना (एपीओ) का हिस्सा है, जो जलवायु अनुकूलता और टिकाऊ इकोसिस्टम प्रबंधन दृष्टिकोण हेतु एक सक्षमकारी वातावरण बनाने के लिए वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून द्वारा तैयार की गई डीपीआर पर आधारित है। इसमें विभिन्न परिदृश्यों में वानिकी युक्तियों और संरक्षण गतिविधियों में सामुदायिक भागीदारी और रिवरस्केप प्रबंधन के लिए विकसित सर्वोत्तम प्रथाओं के उन्नयन और मुख्यधारा के लिए वन और लाइन विभाग की क्षमता बढ़ाने के दृष्टिकोण को अपनाया गया है।
रिवर फ्रंट विकास के लिए उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में एक घाट विकास परियोजना को भी 5.07 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से मंजूरी दी गई थी। इस परियोजना का स्थान एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है जो त्योहारों के मौसम में गंगा नदी की एक सहायक नदी गोमती में पवित्र डुबकी लगाने के लिए बहुत से लोगों को आकर्षित करता है। इस परियोजना में हनुमान घाट को सद्भावना पुल, घाट सीढ़ियों, भूनिर्माण, शौचालय ब्लॉक आदि से जोड़ने वाली 4 मीटर चौड़ी पैदल यात्रा का निर्माण शामिल है। पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद के कालीगंज में 4.14 करोड़ रुपये की लागत से विद्युत शवदाह गृह के निर्माण की एक अन्य परियोजना की भी मंजूरी मिली।
कार्यकारी समिति की बैठक में 18.95 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत पर ‘व्यापार क्षमता को इष्टतम बनाने के लिए पानीपत टेक्सटाइल क्लस्टर के प्रदूषण रोकथाम और प्रभावी अपशिष्ट प्रबंधन’ के लिए एक परियोजना को भी अनुमोदित किया गया है। इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य कपड़ा क्लस्टर से विसर्जित होने वाले बहि:स्राव को रोककर गंगा/यमुना नदी में अनुपचारित अपशिष्ट के निर्वहन से बचाकर गंगा और यमुना नदी के पानी की गुणवत्ता में सुधार लाना है। इस परियोजना का उद्देश्य सर्वोत्तम प्रबंधन पद्धति को अपनाकर पानी की खपत (30 प्रतिशत तक) को कम करना, हरित प्रौद्योगिकियों के प्रदर्शन और इन-हाउस रासायनिक प्रबंधन प्रणाली (रसायनों की खपत में 25 प्रतिशत तक की कमी) के विकास के माध्यम से अपशिष्ट जल निर्वहन (प्रदूषण भार) को कम करना, बहिःस्राव उपचार संयंत्रों के कुशल संचालन को बढ़ावा देना, उपचारित बहिःस्राव की गुणवत्ता में सुधार लाना शामिल है। यह परियोजना निरंतर सुधार के लिए गुणवत्ता, पर्यावरणीय पहलुओं, कर्मचारियों के कौशल विकास, प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण आदि के लिए स्वयं की प्रणालियों को विकसित करने के लिए गहन प्रशिक्षण प्रदान करने और आंतरिक टीमों को तैयार करने पर भी विचार करती है।
कार्यकारी समिति ने गंगा बेसिन के मुख्य राज्यों में विकेन्द्रीकृत अपशिष्ट जल उपचार प्रणालियों की स्थापना के लिए 45 करोड़ रुपये के सांकेतिक धन को भी मंजूरी दी। फंड के विभाजन के अनुसार उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल को 10-10 करोड़ रुपये प्राप्त होंगे, जबकि झारखंड को 5 करोड़ रुपये मिलेंगे। विकेन्द्रीकृत अपशिष्ट जल उपचार के लिए परियोजनाओं को प्रकृति-आधारित सॉल्यूशंस, जोहकासौ आदि जैसी देश में काम करने वाली किसी भी सिद्ध तकनीक के तहत शुरू किया जा सकता है। विकेन्द्रीकृत अपशिष्ट जल उपचार के कुछ लाभों में औद्योगिक अपशिष्ट की बेहतर निगरानी, प्रणालियों का सरल विस्तार, वर्तमान केन्द्र में पहले से अधिक प्रवाह का मार्ग निर्धारित किए बिना नए उपचार केन्द्र और सीवर पाइपलाइनों के लिए कम निवेश आदि शामिल हैं।