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देव दीपावली की तिथि पर असमंजस खत्म, काशी के ज्योतिषियों ने बताया- इस दिन होगा आयोजन

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काशी की देव दीपावली (फाइल)

कार्तिक पूर्णिमा का उत्सव और देव दीपावली का आयोजन सात नवंबर को होगा। आठ नवंबर को खग्रास चंद्रग्रहण होने के कारण कार्तिक पूर्णिमा के आयोजन पर संशय की स्थिति बनी हुई थी। रविवार को काशी विद्वत परिषद के ज्योतिष प्रकोष्ठ की बैठक में यह निर्णय लिया गया। रविवार को दुर्गाकुंड स्थित मानस नगर में प्रो. रामचंद्र पांडेय की अध्यक्षता में काशी विद्वत परिषद के ज्योतिष प्रकोष्ठ की बैठक का आयोजन किया गया।

बैठक में पूर्णिमा के दिन हो रहे चंद्रग्रहण की स्थिति में पूर्णिमा पर्व एवं उत्सव पर निर्णय लिया गया। कार्तिक पूर्णिमा सात नवंबर को अपराह्न 3:58 से आरंभ होकर आठ नवंबर को शाम 3:53 तक प्राप्त हो रही है। आठ नवंबर को खग्रास चंद्रग्रहण भी लग रहा है।

विद्वानों ने तिथि मान एवं धर्मशास्त्रीय उद्धरणों के अनुसार निर्णय लिया कि सायंकाल व्यापिनी पूर्णिमा में त्रिपुरोत्सव अर्थात देव दीपावली का आयोजन किया जाता है। इसलिए सात नवंबर को ही देव दीपावली आयोजित होना शास्त्र सम्मत है। बैठक में प्रो. चंद्रमौली उपाध्याय, प्रो. विनय कुमार पांडेय, प्रो. सुभाष पांडेय, प्रो. वशिष्ठ त्रिपाठी, प्रो. राम नारायण द्विवेदी आदि मौजूद रहे।

देव दीपावली : जब पृथ्वी पर उतर आता है पूरा देवलोक

देव दीपावली की फाइल फोटो

बाबा भोलेनाथ की नगरी काशी यूं तो साल के 12 महीने तीर्थयात्रियों, सैलानियों से गुलजार रहती है। लेकिन देशी-विदेशी पर्यटकों को कार्तिक पूर्णिमा का विशेष रूप से इंतजार रहता है क्योंकि देव दीपावली के दिन असंख्य दीपकों की रोशनी से नहाए हुए काशी के घाट आसमान में टिमटिमाते तारों से नजर आते हैं।

कार्तिक पूर्णिमा की शाम जब लाखों दिए काशी की उत्तरवाहिनी गंगा किनारे एक साथ जलते हैं, तो रोशनी से सराबोर गंगा के घाट के घाट देवलोक के समान प्रतीत होते हैं। काशी में गंगा किनारे इसी अनुपम छटा को देखने और अपने कैमरे में कैद करने के लिए लोग दुनिया के कोने-कोने से यहां पहुंचते हैं।

देव दीपावली की पौराणिक मान्यता

पौराणिक मान्यता के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के कुछ दिन पहले देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु 4 महीने की निद्रा के बाद जागते हैं। जिसकी खुशी में सभी देवता स्वर्ग से उतरकर बनारस के घाटों पर दीपों का उत्सव मनाते हैं।

देव दीपावली
इसके अलावा मान्यता यह भी है कि भगवान शंकर ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन त्रिपुर नाम के असुर का वध करके काशी को मुक्त कराया था। जिसके बाद देवताओं ने इसी कार्तिक पूर्णिमा के दिन अपने सेनापति कार्तिकेय के साथ भगवान शंकर की महाआरती की और इस पावन नगरी को दीप मालाओं से सजाया था।

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