गया तीर्थ की मान्यता वाले पिशाचमोचन पर पितृपक्ष के दौरान होने वाले विधि-विधान व त्रिपिंडी श्राद्ध शनिवार से आरंभ हो जाएंगे। तीर्थ पुरोहित राजेश मिश्र ने बताया कि ऐसी मान्यता है कि पिशाचमोचन कुंड पर त्रिपिंडी श्राद्ध करने से पितरों को प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु से मरने के बाद मुक्ति मिल जाती है। श्राद्ध की इस विधि और पिशाच मोचन तीर्थ स्थली का वर्णन गरुण पुराण में भी मिलता है। काशी खंड के अनुसार, पिशाचमोचन मोक्ष तीर्थ स्थल की उत्पत्ति गंगा के धरती पर आने से भी पहले से है। 10 से 25 सितंबर तक पितृपक्ष रहेगा और गंगा घाटों पर भी तर्पण होगा।
बैठाई जाती हैं अतृप्त आत्माएं
काशी विद्वत कर्मकांड परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष आचार्य अशोक द्विवेदी ने बताया कि कुंड के पास एक पीपल का पेड़ है। मान्यता है कि इस पर अतृप्त आत्माओं को बैठाया जाता है। पेड़ पर सिक्का रखवाया जाता है ताकि पितरों का सभी उधार चुकता हो जाए और पितर सभी बाधाओं से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर सकें। यजमान भी पितृ ऋ ण से मुक्ति पा सकें। पितरों के लिए 15 दिन स्वर्ग का दरवाजा खोल दिया जाता है। यहां के पूजा-पाठ और पिंडदान के बाद ही लोग गया जाते हैं।
दिन का आठवां मुहूर्त 48 मिनट की कुतप संज्ञा है जो दिन में लगभग 12 बजे के आसपास आता है। इस काल में पितृकर्म अक्षय होता है। स्नान कर तिलक लगाकर प्रथम दाहिनी अनामिका के मध्य पोर में दो कुशा और बायीं अनामिका में तीन कुशों की पवित्री धारण करना चाहिए। फि र हाथ में त्रिकुश, यव, अक्षत और जल लेकर संकल्प करें। अद्य श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलप्राप्त्यर्थं पितृतर्पणं करिष्ये। इसके बाद तांबे के पात्र में जल और चावल डालकर त्रिकुश को पूर्वाग्र रखकर उस पात्र को दाएं हाथ में लेकर बाएं हाथ से ढंककर पितरों का आवाहन करें।
ध्यान रखें
दक्षिण दिशा की ओर मुंह करें।
जनेऊ को दाहिने कंधे पर रखकर बाएं हाथ के नीचे ले जाएं
गमछे को भी दाहिने कंधे पर रखें
बायां घुटना जमीन पर लगाकर बैठें
अर्घ्य पात्र में काला तिल छोड़ें
कुशों के बीच से मोड़कर उनकी जड़ और अग्रभाग को दाहिने हाथ में तर्जनी और अंगुठे के बीच रखें।
अंगुठे और तर्जनी के मध्यभाग को पितृ तीर्थ कहते हैं। पितृतीर्थ से ही पितरों को जलाञ्जलि देनी चाहिए।
ब्रह्म पुराण के अनुसार, श्राद्ध पक्ष के 16 दिनों में पितृ वंशजों के घर वायु रूप में आते हैं। उनकी तृप्ति के लिए तर्पण, पिंडदान, ब्राह्मण भोजन और पूजा-पाठ करने का विधान है।
जरूरतमंद लोगों को कराएं भोजन
पितरों की तृप्ति के लिए ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिए। पितरों को जलांजलि दी जानी चाहिए। इन 16 दिनों में जरूरतमंदों को भोजन बांटना चाहिए। परिणाम स्वरूप कुल और वंश का विकास होता है। परिवार के सदस्यों के रोग और कष्ट दूर होते हैं।