Search
Close this search box.

मुफ्त चुनावी घोषणाओं के खिलाफ याचिका जस्टिस चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच को रेफर

Share:

सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव में मुफ्त की योजनाओं की घोषणा के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करने के लिए जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय बेंच को रेफर कर दिया है। चीफ जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली बेंच में जस्टिस जेके महेश्वरी और जस्टिस हिमा कोहली शामिल हैं।

आज सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से वकील विकास सिंह ने सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में कमेटी बनाने की मांग की। चीफ जस्टिस ने केंद्र सरकार से पूछा कि वह मामले के अध्ययन के लिए कमेटी क्यों नहीं बनाती। इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि केंद्र सरकार कमेटी को हर स्तर पर सहायता के लिए तैयार है, कमेटी तीन महीने में अपनी रिपोर्ट दे और कोर्ट उस रिपोर्ट पर विचार कर सकता है।

सुनवाई के दौरान 23 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस बात का फैसला कौन करेगा कि क्या चीज मुफ्तखोरी के दायरे में है और किसे जन कल्याण माना जाएगा। कोर्ट ने कहा था कि हम निर्वाचन आयोग को इस मामले में अतिरिक्त शक्ति नहीं दे सकते हैं। कोर्ट ने कहा था कि गरीबी के दलदल में फंसे इंसान के लिए मुफ्त सुविधाएं और चीजें देनेवाली योजनाएं महत्वपूर्ण हैं।

चीफ जस्टिस ने कहा था कि मुफ्त उपहार एक अहम मुद्दा है और इस पर बहस किए जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा था कि मान लें कि केंद्र सरकार ऐसा कानून बनाती है जिसमें राज्यों को मुफ्त उपहार देने पर रोक लगा दी जाती है तो क्या हम यह कह सकते हैं कि ऐसा कानून न्यायिक जांच के लिए नहीं आएगा। हम ये मामला देश के कल्याण के लिए सुन रहे हैं।

सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने डीएमके के वकील गोपाल शंकर नारायण को फटकार लगाते हुए कहा था कि हम सब देख रहे हैं कि आपके मंत्री क्या कर रहे हैं। आप जिस पार्टी का प्रतिनिधित्व करते हैं, उनके लिए कहने को बहुत कुछ है। ये मत सोचिए कि आप एकमात्र बुद्धिमान दिखने वाली पार्टी हैं। ये मत सोचिए कि जो कुछ कहा जा रहा है उसे हम सिर्फ इसलिए नजरअंदाज कर रहे हैं क्योंकि हम कुछ कह नहीं रहे हैं। तमिलनाडु के वित्त मंत्री ने टीवी पर सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ जो बयान दिए वो सही नहीं थे। तमिलनाडु के वित्त मंत्री डॉ. पी थियाग ने कहा था कि देश के संविधान में कहीं नहीं लिखा है कि सुप्रीम कोर्ट या कोई भी कोर्ट ये फैसला करे कि जनता का पैसा कहां खर्च होगा। ये पूरी तरह विधायिका का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट इस बहस में क्यों पड़ रहा है।

कोर्ट ने 17 अगस्त को सभी पक्षों से विशेषज्ञ कमेटी के गठन पर अपने सुझाव दाखिल करने का निर्देश दिया था। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि अगर लोक कल्याण का मतलब मुफ्त में चीजें देना है तो यह अपरिपक्व समझदारी है। तब चीफ जस्टिस ने कहा था कि राजनीतिक दलों को लोगों से वादा करने से नहीं रोका जा सकता। क्या मुफ्त शिक्षा, पेयजल, न्यूनतम बिजली का युनिट मुफ्त कहा जाएगा। इसके साथ ही क्या इलेक्ट्रॉनिक गजट और कंज्यूमर प्रोडक्ट्स कल्याणकारी कहे जा सकते हैं। चीफ जस्टिस ने कहा था कि वोटर की मुफ्त चीजों पर राय अलग है। हमारे पास मनरेगा जैसे उदाहरण हैं। सवाल इस बात का है कि सरकारी धन का किस तरह से इस्तेमाल किया जाए। ये मामला उलझा हुआ है। आप अपनी अपनी राय दें।

इस मामले में आम आदमी पार्टी, कांग्रेस और डीएमके ने पक्षकार बनाने की मांग करते हुए याचिका दायर की है। डीएमके ने कहा है कि कल्याणकारी योजनाएं सामाजिक और आर्थिक न्याय सुनिश्चित करती हैं और उसे मुफ्त की सुविधाएं नहीं कहा जा सकता है। डीएमके ने कहा है कि मुफ्त बिजली देने के कई प्रभाव होते हैं। बिजली से रोशनी, गर्मी और शीतलता प्रदान किया जा सकता है जो एक बेहतर जीवन स्तर में तब्दील होता है। इससे एक बच्चे को अपनी पढ़ाई में मदद मिलती है। इसे मुफ्त की सुविधाएं कहकर इसके कल्याणकारी प्रभाव को खारिज नहीं किया जा सकता है। डीएमके की याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में केवल केंद्र सरकार और निर्वाचन आयोग को ही पक्षकार बनाया है जबकि इसमें राज्य सरकारों की नीति की भी समीक्षा होनी है। कोर्ट को सभी पक्षकारों का पक्ष सुनना चाहिए।

डीएमके ने कहा है कि केंद्र सरकार की टैक्स हॉलिडे और लोन माफ करने की योजनाओं पर भी कोर्ट को विचार करना चाहिए। केंद्र सरकार विदेशी कंपनियों को टैक्स हॉलिडे देती है और प्रभावशाली उद्योगपतियों का लोन माफ करती है। यहां तक कि उद्योगपतियों को प्रमुख ठेके दिए जाते हैं। आम आदमी पार्टी ने भी मुफ्त सुविधाओं के बचाव में सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर किया है।

आम आदमी पार्टी ने कहा है कि चुनावी भाषणों पर किसी तरह का प्रतिबंध संविधान से मिले अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का हनन होगा। नेताओं का अपने मंच से कोई वादा करना और चुनी हुई सरकार का उस पर अमल अलग-अलग बातें है। आम आदमी पार्टी का कहना है कि चुनावी भाषणों पर लगाम के जरिये आर्थिक घाटे को पाटने की कोशिश एक निरर्थक कवायद ही साबित होगी।

Leave a Comment

voting poll

What does "money" mean to you?
  • Add your answer

latest news