विश्व में कोरोना, मंकीपॉक्स के बीच एक नए बेहद संक्रामक वायरस मारबर्ग की घाना में पुष्टि की गई है। इबोला परिवार से जुड़े इस संक्रामक वायरसा का अभी तक कोई इलाज नहीं है।
मारबर्ग वायरस ‘मारबर्ग वायरस रोग’ (एमवीडी) का कारण बनता है, जिसे पहले मारबर्ग रक्तस्रावी बुखार के रूप में जाना जाता था। इबोला वायरस के समान परिवार से संबंधित यह वायरस इंसानों में गंभीर वायरल रक्तस्रावी बुखार का कारण बनता है, जिसमें औसत मृत्यु दर लगभग 50 प्रतिशत है। यह दर वायरस के स्वरूप और मामलों के प्रबंधन के आधार पर विभिन्न प्रकोपों में 24 प्रतिशत से 88 प्रतिशत के बीच होती है।
पहली बार 1967 में जर्मनी के मारबर्ग नामक शहर और बेलग्रेड, यूगोस्लाविया (अब सर्बिया) में इसका मामला आया था। दोनों शहरों में एक साथ यह बीमारी फैली। मारबर्ग पर प्रयोगशाला में अध्ययन के लिए युगांडा से लाए गए बंदरों से इसका प्रसार हुआ। बंदरों से संबंधित सामग्री (रक्त, ऊतक और कोशिकाओं) के साथ काम करने के परिणामस्वरूप प्रयोगशाला के कर्मचारी संक्रमित हो गए। इन बीमारियों से जुड़े 31 मामलों में से सात लोगों की मौत हो गई।
शुरुआती प्रकोप के बाद दुनिया के विभिन्न हिस्सों में मामले सामने आए हैं। अधिकतर मामले अफ्रीका में युगांडा, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, केन्या, दक्षिण अफ्रीका और हाल में गिनी और घाना में आए। सीरोलॉजिकल अध्ययनों से नाइजीरिया में पूर्व में मारबर्ग वायरस के संक्रमण के प्रमाण भी सामने आए हैं। वायरस के वाहक या स्रोत की निर्णायक रूप से पहचान नहीं हो पाई है लेकिन इसका संबंध फ्रूट बैट (चमगादड़ की एक प्रजाति) से जोड़ा गया है। वर्ष 2008 में, युगांडा में एक गुफा का दौरा करने वाले यात्रियों में दो मामले सामने आए थे।
आशा खबर /रेशमा सिंह पटेल