Search
Close this search box.

(बॉलीवुड के अनकहे किस्से) जब दुर्गा खोटे ने जिद में सीखी बांग्ला भाषा

Share:

दुर्गा खोटे

दुर्गा खोटे को पुरानी पीढ़ी एक उत्कृष्ट चरित्र अभिनेत्री के रूप में याद करती है, विशेष तौर पर उनकी फिल्मों आनंद, अभिमान, खुशबू, बॉबी, जानेमन, बावर्ची और विदाई के लिए। विदाई में सशक्त अभिनय के कारण उन्हें कई अवॉर्ड भी मिले थे। लेकिन दुर्गा खोटे के अभिनय जीवन का प्रारंभ अचानक ही मजबूरी वश हुआ। उनका विवाह 1923 में मात्र 17 वर्ष की अवस्था में एक प्रसिद्ध एवं अमीर घराने में हो चुका था और शीघ्र ही उनका एक बेटा भी हो गया था। इस बीच उनके ससुर द्वारा 1926 में शेयर बाजार में सब कुछ गवां चुकने के बाद उनका घर तक नीलाम हो गया। तब उन्हें अपना जीवन चलाने के लिए अपने माता पिता के घर आकर रहना पड़ा और ट्यूशन पढ़ाने पड़े। इस बीच उनका दूसरा पुत्र भी पैदा हुआ। तभी उनकी बड़ी बहन शालिनी को मिस्टर वाडिया द्वारा एक फिल्म फरेबी जाल में एक छोटा रोल करने की बात पर उन्होंने उसे दुर्गा खोटे से कराने को कहा। काम की तलाश में घूम रहीं दुर्गा, 10 मिनट के इस रोल के लिए तुरंत तैयार हो गईं। फिल्म सफल रही लेकिन उनकी काफी आलोचना हुई। फिर भी इसके लिए मिले 250 रुपये उस समय उनके बहुत काम आए। इसके बाद उन्हें प्रभात फिल्म्स की मराठी फिल्म मिली जिसका शीर्षक था अयोध्येचा राजा। इसे हिंदी में अयोध्या का राजा नाम से बनाया गया था। दोनों ही भाषाओं की फिल्मों ने अच्छा कारोबार किया। फिर तो न्यू थियेटर्स आदि की कई फिल्में उन्होंने कीं। कुछ सफल फिल्मों के नाम थे- राजरानी मीरा, दुर्गारानी, सीता, अमर ज्योति, पृथ्वी वल्लभ, भरत मिलाप और चैतन्य महाप्रभु। चैतन्य महाप्रभु में मां के रूप में और भरत मिलाप में कैकई के रूप में उन्होंने बेहद संजीदा और यादगार अभिनय किया था। इस तरह चार दशकों के अपने अभिनय सफर में उन्होंने नायिका, बहन, मां, सास, रानी, वीरांगना, दादी आदि पात्रों को यादगार और जीवंत बना दिया था।

अब बात उनकी बांग्ला भाषा सीखने की। उस समय न्यू थियटर्स की ज्यादातर फिल्में हिंदी और बांग्ला में साथ-साथ बनती थीं जिससे एक सेट पर ही दोनों की शूटिंग करके पैसे बचाएं जा सकें। ‘राजरानी मीरा’ फ़िल्म भी हिंदी और बांग्ला दोनों भाषाओं में बनी थी और दोनों के कलाकार अलग-अलग थे। हिंदी संस्करण में दुर्गा खोटे और पृथ्वीराज नायिका नायक थे, तो बांग्ला संस्करण में चंद्रावती और दुर्गादास बैनर्जी। दोनों का सेट एक ही रहता। पहले हिंदी का शॉट लिया जाता, बाद में बांग्ला का। हिंदी शॉट समाप्त होते ही सारे स्टूडियो के लोग खुसफुसाने लगते। वे सब लोग चन्द्रावती से कुछ बतियाते रहते। नई नई फिल्मों में आई दुर्गा जी को हमेशा यही लगता कि ये सब लोग आपस में उनके अभिनय की आलोचना कर रहे हैं। इसलिए वे नर्वस हो जातीं। बांग्ला जानते तो पृथ्वीराज भी थे लेकिन वे मस्ती में अपना काम करते रहते। वैसे भी वे तो मूक फ़िल्मों के जमाने के मंजे हुए कलाकार थे और दुर्गा खोटे की यह तीसरी ही फ़िल्म थी। अत: वे सेट पर बड़ी नर्वस रहतीं। फ़िल्म के निर्देशक देवकी बोस डांटने फटकारने में बड़े उस्ताद थे। जरा भी कहीं कुछ गलती हो जाती तो उनके मुंह से कठोर व्यंग्यवाण छूट पड़ते। उनसे तो वह अंग्रेजी में बोलते, परन्तु औरों के साथ उनका सारा वार्तालाप बांग्ला भाषा में चलता। दुर्गा जी के पल्ले कुछ भी न पड़ता और वे बड़ी बेचैन हो उठतीं। अंत में, वह क्या बोल रहे हैं, यह जानने की तीव्र इच्छा से उन्होंने बांग्ला भाषा सीखने का निश्चय किया। ‘राजरानी मीरा’ के सारे बांग्ला संवाद उन्होंने याद कर डाले। हालांकि तब तक उनका उच्चारण सही नहीं हुआ था और अर्थ निकालने की क्षमता भी नहीं आयी थी, परन्तु हिंदी संवादों के आधार पर साधारण अर्थ समझ में आ जाता था। उसके बाद उन्होंने एक बंगाली सज्जन से ट्यूशन ली और तीन महीने में बांग्ला में बातचीत करना सीख गईं। तब वे जान पायीं कि स्टूडियो के सारे लोग चन्द्रावती को सेट पर बार-बार अभिनय में उनका अनुकरण करने के लिए कहते थे। चर्चा के केंद्र में उनका अभिनय और उनकी आवाज़ आदि ही रहती थी। यह सब जानकर आखिर उन्हें चैन आया।

चलते चलते

प्रभात फिल्म कंपनी की फिल्म में काम करने से पहले उनके पिता ने उनके निर्देशक वी. शांताराम से मिलकर ही कोई अंतिम फैसला लेने का निर्णय लिया था। जब दुर्गा जी उन्हें अपने पिता से मिलाने ले जा रहीं थीं तो रास्ते भर वे उन्हें प्रभावित करने के लिए लगातार अंग्रेजी बोलती रहीं। आखिर परेशान होकर शांताराम ने साथ बैठे अपने सहयोगी गोविंदराव से धीरे से पूछ ही लिया, क्यों जनाब यह मोहतरमा मराठी बोल लेती हैं? वरना हिंदी मराठी फिल्मों में इनका क्या उपयोग होगा। गोविंदराव जी ने हंसी दबाते हुए हामी भरी तो दुर्गा खोटे लज्जित होकर चुप रह गईं और फिर रास्तेभर मराठी में ही बोलती रहीं।

(लेखक, राष्ट्रीय साहित्य संस्थान के सहायक संपादक हैं। नब्बे के दशक में खोजपूर्ण पत्रकारिता के लिए ख्यातिलब्ध रही प्रतिष्ठित पहली हिंदी वीडियो पत्रिका कालचक्र से संबद्ध रहे हैं। साहित्य, संस्कृति और सिनेमा पर पैनी नजर रखते हैं।)

Leave a Comment

voting poll

What does "money" mean to you?
  • Add your answer

latest news