Search
Close this search box.

फैसले के बाद बिना वजह मामले को आगे बढ़ाने की सलाह न दें वकील

Share:

allahabad high court

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि जब रिकॉर्ड में किसी भी प्रकार की गलती न हो, न ही ऐसा कोई कारण हो तो मामले को दोबारा आगे क्यों बढ़ाया जाए। एक वकील को बिना वजह अपने मुवक्किल को मामले को आगे बढ़ाने की सलाह नहीं देनी चाहिए। यह टिप्पणी न्यायमूर्ति डॉ. केजे ठाकर और न्यायमूर्ति विवेक वर्मा की खंडपीठ ने गौतमबुद्धनगर के मल्हान व 17 अन्य की ओर से दाखिल पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करते हुए की। खंडपीठ ने याचिकाओं को खारिज करते हुए याचियों पर अर्थदंड भी लगाया।

मामले में वकील ने अपने मुवक्किल को 6 साल की अवधि के बाद पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की सलाह दी थी। सीमा अधिनियम 1963 की धारा 5 के तहत एक आवेदन के साथ पुनर्विचार याचिका दायर की गई। आवेदन दाखिल करने में देरी के लिए माफी मांगी गई थी। पुनर्विचार याचिका 6 साल की देरी से दाखिल की गई थी।

आवेदकों ने कहा कि दिशानिर्देशों के कारण सार्वजनिक परिवहन के अवरुद्ध होने के कारण निर्धारित समय के भीतर पुनर्विचार याचिका दाखिल नहीं कर सके। कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 2016 में अपीलों का निस्तारण कर दिया था, जबकि महामारी 2020- 21 में थी। इसलिए कोर्ट ने कहा कि यह जानकर दुख हो रहा है कि एक वकील को ऐसी कोई सलाह नहीं देनी चाहिए, जब रिकॉर्ड में कोई त्रुटि ना हो और न ही अन्य कारण हो।

मामले को अंतिम रूप से तय किए जाने के बाद फिर से आगे बढ़ाया जाना सही नहीं है। कोर्ट ने कहा कि याचियों की ओर से छह साल की देरी के लिए कोई स्पष्ट कारण नहीं बताया गया है। कोर्ट ने कहा कि याचियों का रवैया लापरवाही भरा है। कोर्ट ने इसके लिए याचियों पर 10,000 का जुर्माना लगाया और याचिकाओं को खारिज कर दिया।

Leave a Comment

voting poll

What does "money" mean to you?
  • Add your answer

latest news