दुनिया के कई देश इन दिनों कोरोना के नए वैरिएंट FLiRT (फिलर्ट) की चपेट में आते दिख रहे हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका, सिंगापुर, भारत में पिछले एक महीने में अचानक से संक्रमण के मामलों में उछाल आया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक फिलहाल सिंगापुर में इस नए वैरिएंट के सबसे ज्यादा संक्रमितों की पहचान की गई है। भारत में भी कई राज्यों में कोरोना के बढ़ते खतरे को लेकर अलर्ट किया गया है। यहां महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में संक्रमितों की संख्या सबसे ज्यादा है।
कोरोना के इस नए वैरिएंट को लेकर अध्ययन अभी शुरुआती दौर में है। प्रारंभिक रिपोर्ट्स के मुताबिक नए वैरिएंट के स्पाइक प्रोटीन में कुछ ऐसे म्यूटेशन सामने आए हैं जो इसे आसानी से शरीर में प्रवेश करके संक्रमण बढ़ाने के योग्य बनाते हैं। गौरतलब है कि इस साल की शुरुआत से दुनियाभर में कोरोना के मामले काफी स्थिर थे, ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि संक्रमण में अचानक से वृद्धि क्यों होने लगी है?
सिंगापुर के स्वास्थ्य मंत्रालय (एमओएच) के अनुसार 5 से 11 मई के सप्ताह में कोरोना संक्रमितों की संख्या 25,900 से अधिक रिपोर्ट की गई जो इससे पिछले सप्ताह के 13,700 मामलों की तुलना में 90% अधिक थी। ज्यादातर मामलों के लिए फिलर्ट वैरिएंट (KP.2) को ही प्रमुख कारण माना जा रहा है। फरवरी-मार्च के दौरान सिंगापुर में संक्रमितों की संख्या काफी स्थिर थी, फिर अचानक से ये नया वैरिएंट कैसे बढ़ने लगा?
क्या कहते हैं महामारी विशेषज्ञ?
न्यूयॉर्क स्थित बफेलो यूनिवर्सिटी में संक्रामक रोगों के प्रमुख थॉमस ए.रूसो ने बताया, कोरोना के अचानक बढ़ते मामलों के लिए कई कारक जिम्मेदार हो सकते हैं। सबसे प्रमुख कारण है कि वायरस अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए लगातार म्यूटेट होते रहते हैं। कोरोना ही नहीं ये सभी वायरस के साथ होने वाली प्रक्रिया है। कोरोना के मूल स्वरूप में भी लगातार परिवर्तन होता रहता है। नया वैरिएंट फिलर्ट भी ओमिक्रॉन का ही अपडेटेड स्वरूप है, म्यूटेशन के कारण इसके स्पाइक प्रोटीन में कुछ बदलाव देखे जा रहे हैं जो इसके स्वरूप को बदल रहे हैं।
कमजोर प्रतिरक्षा वालों की बढ़ती संख्या
इसके अलावा संक्रमण के बढ़ने का दूसरा कारण दुनियाभर में कमजोर प्रतिरक्षा वाले लोगों की बढ़ती संख्या भी हो सकती है। युवा आबादी में कोरोना के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी के मामले अधिक देखे जा रहे हैं जिससे नए लहर के प्रति हमारी संवेदनशीलता बढ़ती जा रही है। समय के साथ टीकों की प्रभाविकता कम हो जाती है, ज्यादातर लोगों को आखिरी वैक्सीन लिए लंबा वक्त हो गया है जिससे एक बार फिर से संक्रमण के मामलों में उछाल देखा जा रहा है। कुछ अध्ययनों में वैज्ञानिक इस तरह के जोखिमों को कम करने के लिए फ्लू जैसी सालाना कोविड वैक्सीन लगाने की भी सलाह देते रहे हैं।
वैक्सीन कवरेज में अंतर
महामारी विशेषज्ञ बताते हैं, कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों के लिए तीसरा कारण वैक्सीन कवरेज की उम्र को माना जा रहा है। सीडीसी के आंकड़ों के अनुसार सितंबर 2023 के बाद से केवल 22.6% वयस्कों ने कोविड-19 वैक्सीन ली है। डेटा से यह भी पता चलता है कि टीकाकरण कवरेज उम्र के हिसाब से बढ़ा है, 75 वर्ष और उससे अधिक उम्र के लोगों का इस दौरान टीकाकरण अधिक हुआ है। लिहाजा बुजुर्गों में तो कोरोना के प्रति सुरक्षा प्रणाली देखी जा रही है पर युवाओं में प्रतिरक्षा की कमी है। कोरोना की हालिया रिपोर्ट्स के मुताबिक नए वैरिएंट्स से सबसे ज्यादा शिकार युवा आबादी ही देखी जा रही है।
————–
नोट: यह लेख मेडिकल रिपोर्टस से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है।
अस्वीकरण: अमर उजाला की हेल्थ एवं फिटनेस कैटेगरी में प्रकाशित सभी लेख डॉक्टर, विशेषज्ञों व अकादमिक संस्थानों से बातचीत के आधार पर तैयार किए जाते हैं। लेख में उल्लेखित तथ्यों व सूचनाओं को अमर उजाला के पेशेवर पत्रकारों द्वारा जांचा व परखा गया है। इस लेख को तैयार करते समय सभी तरह के निर्देशों का पालन किया गया है। संबंधित लेख पाठक की जानकारी व जागरूकता बढ़ाने के लिए तैयार किया गया है। अमर उजाला लेख में प्रदत्त जानकारी व सूचना को लेकर किसी तरह का दावा नहीं करता है और न ही जिम्मेदारी लेता है। उपरोक्त लेख में उल्लेखित संबंधित बीमारी के बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श लें।