पूर्वांचल में इंडिया और एनडीए ने ताकत झोंक दी है। अलग- अलग रणनीति से पूर्वांचल फतह करने की कोशिश की जा रही है। कई दलों के मुखिया की प्रतिष्ठा दांव पर है।
दूसरी तरफ इंडिया गठबंधन में शामिल तृणमूल कांग्रेस को एक और कांग्रेस को पांच सीटें मिली हैं। इन सीटों को पर कांग्रेस और सपा ने फ्रंटल संगठनों के पदाधिकारियों को उतार दिया है। पूर्वांचल की 27 लोकसभा सीटों पर एक-एक वोट का हिसाब रखा जा रहा है।
पश्चिम, मध्य और बुंदेलखंड में चुनाव होने के बाद यहां के ज्यादातर नेताओं को इन्हीं 27 सीटों पर उतार दिया गया है। भाजपा ने वाराणसी में महिला सम्मेलन के जरिए नया प्रयोग किया है तो आसपास की सीटों पर प्रचार का नया मॉडल अपनाया है।
पार्टी की ओर से पूर्वांचल की सीटों पर जल जीवन मिशन, मकान और शौचालय हित अन्य योजनाओं का लाभ पाने वाले लाभार्थियों की ब्लॉकवार सूची निकाली गई है। इस सूची के जरिए मतदाताओं तक पहुंच कर उन्हें समझाने का प्रयास किया जा रहा है। हर विधानसभा को तीन से चार हिस्से में बांट कर वरिष्ठ नेताओं की मौजूदगी में बैठकें की जा रही है।
पूर्वांचल की 27 सीटों पर इंडिया गठबंधन तू चल मैं आता हूं की तर्ज पर कार्य कर रही है। सपा और कांग्रेस इस इलाके को सियासी तौर पर उपजाऊ मानती है। यही वजह है कि भाजपा के वरिष्ठ नेताओं की जिन सीटों पर जनसभा हो रही है, उन पर निगाह रखी जा रही है। इसके लिए कांग्रेस ने अलग से टीम लगाई है।
छठवें चरण की 14 सीटें और सातवें चरण की 13 सीटें पर कई दिग्गज मैदान में हैं। इसमें सुल्तानपुर से मेनका गांधी, आजमगढ़ से धर्मेंद्र यादव, भदोही से तृणमूल कांग्रेस के ललितेशपति त्रिपाठी, इलाहाबाद से उज्जवल रमण सिंह, जौनपुर से महाराष्ट्र के पूर्व गृहमंत्री कृपाशंकर सिंह जैसे नामचीन चेहरे हैं।