जिले के सर्वाधिक बाढ पीड़ित बंजरिया प्रखंड स्थित कई पंचायतों की बड़ी आबादी आजादी के 75 साल बाद भी चचरी के पुल के सहारे जीने को मजबूर है।सड़क मार्ग से सुगमतापूर्वक यात्रा का सपना देखते यहां के नागरिकों की आँखे अब पथराने लगी है। बूढी गंडक के साथ बंगरी तिलावे जैसी कई नेपाली नदियों के धार पर स्थित इस पूरे क्षेत्र की कहानी कम दयनीय नही है।दो तरफ बूढी गंडक (सिकरहना) नदी और तिलावे नदी,बंगरी नदी तो एक तरफ झिलमहिया नहर से घिरे इस क्षेत्र की दूरी जिला मुख्यालय से महज 5 कि.मी.से अधिकतम 9 कि.मी पर अवस्थित है लेकिन सड़क सुविधा से वंचित होने के कारण इस प्रखंड क्षेत्र के गांवो मे जाना अत्यंत दुश्कर और किसी ऊंचे पर्वत पर चढने के समान है।जिस कारण यहां के दर्जनो गांव बेहतर शिक्षा,स्वास्थ्य,शुद्धपेयजल और रोजगार जैसे मूलभूत सुविधाओ से अब भी कोसो दूर पर खड़ा दिखता है।चैलाहां से फुलवार तक सीधे जाने के लिए आजादी के 75 साल बाद भी यहां लोगो को काफी संघर्ष का सामना करना पड़ता है।ऐसे मे सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि यहां के दक्षिणी और उत्तरी भाग मे अवस्थित गांवो तक पहुंचने मे कितनी कठिनाई होती होगी।कई नदियो के प्रवाह के बीच जीवन जीने का संघर्ष इस क्षेत्र के लोगो की नियति बनकर रह गई है।
ग्रामीण बताते है कि बरसात के दिनों मे बाढ़ के कारण यहां के गांव टापू मे तब्दील हो जाते है। पूरे चार पांच माह केवल नाव ही सहारा होता है। कुछ ग्रामीण बताते है कि यहां काफी संघर्ष के बाद जटवा घाट पर एक पुल का निर्माण कराया जा सका। जबकि एक पुल सुंदरपुर घाट पर बना दिया जाय तो मोतिहारी जिला मुख्यालय से भाया पकडिया सिसवा अजगरी गोखुला होते इस क्षेत्र के कई गांवो की दूरी सिमटकर कम हो जायेगी।साथ ही जिले के मोतिहारी,आदापुर व छौड़ादानो जैसे प्रखंड के कई पंचायतो के साथ बंजरिया प्रखंड के कई पंचायतो का सीधा जुड़ाव हो जायेगा।
लोगो ने बताया कि इसके लिए हम सब क्षेत्रीय सांसद,विधायक के साथ डीएम,डीडीसी एवं मुख्यमंत्री तक अपनी फरियाद पहुंचा चुके है,लेकिन अब तक झूठी दिलासा के सिवा कोई समाधान नही मिल सका है। हर साल ग्रामीण कडी मेहनत से चचरी का पुल बनाते है और नदी का प्रवाह उसे बहा ले जाती है।लोगो ने बताया कि एक पुल न होने के कारण यहां कई बार नाव दुर्घटना हो चुकी है। जिसमे दर्जनो मौत हो चुकी है। हर बार मौत होने पर नेता और अधिकारी यहां आते है और बडी बडी बाते और दिलासा देकर चले जाते है। ऐसे मे तो यही कहा जा सकता है कि आशा और दिलासा के बीच चचरी के पुल की तरह झुल रहा है बंजरिया प्रखंड के नागरिको की जिंदगी