अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के तीसरे दिन बुधवार की शुरुआत मणिपुरी फिल्म एंड्रयू ड्रीम्स से हुई। यह भारतीय पैनोरमा की गैर फीचर फिल्म श्रेणी की है। एंड्रयू ड्रीम्स जीवन की दुश्वारियों और चुनौतियों के खिलाफ लड़ने वाली लाइबी और उनके फुटबॉल क्लब की लड़कियों के वास्तविक जीवन की कहानी है। 60 साल की लाइबी फान जौबाम मणिपुर के दूरदराज के गांव एंड्रयू में हथकरघा और बुनाई शिल्प की दुकान चलाती हैं। उन्होंने अपने प्राचीन गांव में व्याप्त पितृसत्तात्मक समाज, आर्थिक कठिनाइयों और रूढ़िवादिताओं से लड़कर महिलाओं का एक फुटबॉल क्लब चलाया।
एंड्रयू ड्रीम्स की कहानी
तीन दशक पुराने इस क्लब की कहानी एक छोटे से अखबार में छपी। इसने राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता मीना लोंग जाम को प्रेरित किया, जिसके चलते जाम ने इसे सिल्वर स्क्रीन पर जीवंत किया। उनकी कहानी, जिन्हें सुना नहीं गया, 63 मिनट की यह फिल्म भारतीय पैनोरमा में गैर फीचर फिल्म खंड की शुरुआत करती है। इस वृत्त चित्र का नेतृत्व महिला निर्देशक, निर्माता और कलाकार की त्रिमूर्ति ने किया है।
लोंग जाम ने बताई विशेषता
लोंग जाम ने कहा कि यह उन लोगों की कहानी है, जिन्हें सुना नहीं गया और मीडिया ने कभी इन्हें दिखाया नहीं, लेकिन उन लोगों ने अपने अथक परिश्रम और चुनौतियों से लड़कर न केवल समाज को एक दिशा दी, बल्कि एक ऐसी लकीर खींची जिसकी भरपाई करना आज भी किसी के लिए भी संभव नहीं है।
‘आर्ची कॉमिक्स को फिल्म में बदलना चुनौती’
अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में आर्चीज मेड इन इंडिया के वार्ता सत्र में छह बार की फिल्म फेयर पुरस्कार विजेता जोया अख्तर इस फिल्म से जुड़ीं और बातें साझा कीं। जोया ने कहा, बचपन से भारतीय बच्चों के मन और मस्तिष्क पर गहरा असर छोड़ने वाली इस कॉमिक्स को फिल्म में बदलना बड़ी चुनौती थी। इसे सिनेमा में दिखाने के लिए कई प्रयोगों को समाहित किया। आर्ची कॉमिक्स के सीईओ जॉन गोल्ड वाटर ने कहा कि उनके लिए यह गर्व की बात है कि भारत में कॉमिक्स के पात्र जीवंत हो रहे हैं।