विधानसभा चुनाव में सरकार की लोकलुभावन योजनाओं की भरमार सत्तारूढ़ टीआरएस की ताकत व कमजोरी दोनों है। खासतौर से मुसलमान केंद्रित कुछ योजनाओं को तुष्टीकरण से जोड़ कर भाजपा ने बड़ा मुद्दा बनाया है।
महज नौ साल पहले अस्तित्व में आए तेलंगाना विधानसभा चुनाव की जंग दिलचस्प मोड़ पर है। त्रिकोणीय मुकाबले में जहां भाजपा हिंदुत्व और जातीय समीकरण को हथियार बना कर दक्षिण के एक और राज्य की मुख्य ताकत बनना चाहती है, वहीं सत्तारूढ़ टीआरएस को अपने दस साल के कार्यकाल में हर वर्ग के लिए शुरू की गई लोकलुभावन योजनाओं के जरिये जीत की हैट्रिक का भरोसा है। पिछली बार की तरह इस बार भी कांग्रेस राज्य में अपना खोया आधार हासिल करने के लिए जद्दोजहद कर रही है।
हर वर्ग के लिए योजना
दस साल के कार्यकाल में केसीआर ने अल्पसंख्यक, दलित, छात्र, किसान, ओबीसी को साधने के लिए योजनाओं की बौछार कर दी है। केसीआर के पास किसानों को साधने के लिए मुफ्त बिजली और कृषि ऋण माफी की योजना है तो बेरोजगारों के लिए एक लाख की आर्थिक सहायता योजना। सरकार गृह लक्ष्मी योजना के तहत तीन लाख रुपये आर्थिक सहायता दे रही है। दलितों के लिए रायशु बंधु योजना है।
राज्य में ओबीसी मतदाताओं की संख्या 50% से ज्यादा है जबकि अल्पसंख्यकों की आबादी 14% है। ओबीसी में मुन्नरकापू और रेड्डी की संख्या सबसे ज्यादा है। इसके अलावा केसीआर के स्वजातीय वेमला बिरादरी भी प्रभावशाली हैं। भाजपा ने मुन्नरकापू बिरादरी को साधने के लिए बंदी संजय का कद बढ़ाया है, जबकि रेड्डी बिरादरी को साधने के लिए जी किशन रेड्डी को केंद्र में मंत्री बनाया है।