अध्ययन साइंटिफिक रिपोर्टस जर्नल में प्रकाशित हुआ है। हर बार मानसून के मौसम के बाद सर्दियों के आगमन के दौरान देश के कुछ हिस्सों में वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है। भारत के उत्तर-पश्चिमी हिस्सों में पराली जलाने से पीएम2.5 की मात्रा काफी बढ़ जाती है।
रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमैनिटी एंड नेचर (आरआईएचएन) की अगुवाई वाली टीम ने 29 किफायती और विश्वसनीय उपकरणों का उपयोग करके भारत के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में वायु प्रदूषण को मापने संबंधी पहला योग्य अध्ययन किया है। इसके बाद अब अब वायु प्रदूषण की सटीक जानकारी मिलेगी और इसे मापा जा सकेगा।यह अध्ययन साइंटिफिक रिपोर्टस जर्नल में प्रकाशित हुआ है। हर बार मानसून के मौसम के बाद सर्दियों के आगमन के दौरान देश के कुछ हिस्सों में वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है। भारत के उत्तर-पश्चिमी हिस्सों में पराली जलाने से पीएम2.5 की मात्रा काफी बढ़ जाती है। हालांकि किस समय पर इसकी मात्रा कितनी होती है इसके बारे में कोई सटीक जानकारी नहीं है। अध्ययन में क्षेत्रीय स्तर पर फसल अवशेष जलाने (सीआरबी) और वायु प्रदूषण का अवलोकन किया गया है। सितंबर और नवंबर के बीच धान की फसल आने के तुरंत बाद क्षेत्रीय स्तर पर फसल अवशेष जलाना पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों और सिंधु-गंगा के मैदान के बड़े हिस्से में एक सामान्य परंपरा है।
दो माह तक गहन अभियान चलाया
पीएम2.5 की माप करने के लिए शोधकर्ताओं की एक टीम ने गैस सेंसर (सीयूपीआई-जीएस) के साथ 29 कॉम्पैक्ट और उपयोगी पीएम2.5 उपकरणों का उपयोग करके एक पिछले साल एक सितंबर से 30 नवंबर तक पंजाब, हरियाणा और एनसीआर को शामिल करते हुए एक क्षेत्र आधारित गहन अभियान चलाया। लगातार गहन निगरानी करने के बाद पता चला कि इलाके में पीएम 2.5 छह से 10 अक्टूबर के बीच धीरे-धीरे 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से कम और पांच से नौ नवंबर के बीच 500 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक बढ़ गया। इसके बाद 20 से 30 नवंबर के बीच यह घटकर लगभग 100 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रह गया।