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चिदंबरम ने केंद्र पर साधा निशाना, कहा- ऐसे कानून का क्या फायदा; जो वर्षों तक लागू ही न हो

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पूर्व वित्त मंत्री चिदंबरम ने ट्वीट कर कहा कि सरकार ने दावा किया है कि महिला आरक्षण विधेयक कानून बन गया है। ऐसे कानून का क्या फायदा, जो वर्षों तक लागू ही नहीं किया जाएगा। निश्चित रूप से यह कानून 2029 लोकसभा चुनाव से पहले लागू नहीं हो पाएगा।

कांग्रेस ने एक बार फिर भाजपा के खिलाफ जमकर हमला बोला है। कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने सरकार पर महिला आरक्षण बिल को लेकर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि विधेयक भले ही कानून बन गया है लेकिन यह कई वर्षों तक असल में लागू नहीं हो पाएगा। यह सिर्फ सरकार द्वारा लाया गया, एक भ्रम है।

पूर्व वित्त मंत्री चिदंबरम ने ट्वीट कर कहा कि सरकार ने दावा किया है कि महिला आरक्षण विधेयक कानून बन गया है। ऐसे कानून का क्या फायदा, जो वर्षों तक लागू ही नहीं किया जाएगा। निश्चित रूप से यह कानून 2029 लोकसभा चुनाव से पहले लागू नहीं हो पाएगा। यह सिर्फ चिढ़ाने जैसा है। जैसे पानी के कटोरे में चांद की परछाई दिखती है। केंद्र सरकार द्वारा पेश किया गया यह कानून सिर्फ एक चुनावी जुमला है।

लोकसभा और राज्यसभा में इस दिन हुआ था पारित
महिला आरक्षण से संबंधित 128वां संविधान संशोधन विधेयक 21 सितंबर को राज्यसभा में पारित किया गया था। बिल के पक्ष में 214 वोट पड़े, जबकि किसी ने भी बिल के खिलाफ वोट नहीं डाला था। इससे पहले 20 सितंबर को विधेयक को लोकसभा से मंजूरी मिल गई थी। लोकसभा ने भी इस बिल को दो तिहाई बहुमत के साथ पास किया था। इसके पक्ष में 454 और विरोध में दो वोट पड़े थे। एक दिन पहले, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने बिल पर हस्ताक्षर किए, जिसके बाद से विधेयक कानून बन गया है।

अमल में लाने के लिए पूरी करनी होंगी ये शर्तें
राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद यह कानून भी बन गया है, लेकिन इसको अमल में लाने से पहले दो शर्तों को पूरा करना होगा। ये शर्तें जनगणना और परिसीमन की हैं जिन्हें पूरा करने में कई साल लग सकते हैं। नारी शक्ति वंदन कानून के प्रभावी होने की दो शर्तें रखी गईं हैं। इसके मुताबिक महिला आरक्षण कानून आगामी जनगणना के बाद लागू होगा। कानून बनने के बाद होने वाली जनगणना के बाद आरक्षण लागू करने के लिए नए सिरे से परिसीमन होगा। परिसीमन के आधार पर ही महिलाओं के लिए 33 फीसदी सीटें आरक्षित की जाएंगी।

28 साल से लटका था विधेयक
महिला आरक्षण में ओबीसी कोटा के सवाल के कारण विधेयक बीते 28 साल से लटका हुआ था। सामाजिक न्याय की राजनीति से जुड़े क्षेत्रीय दल कोटा के बिना इस विधेयक की राह में रोड़ा बने हुए थे। हालांकि मोदी सरकार ने भी सांविधानिक कारणों का हवाला देते हुए कानून में ओबीसी कोटा का प्रावधान नहीं किया

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