मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव मैदान में भाजपा ने तीन कद्दावर केंद्रीय मंत्रियों समेत सात सांसदों को उतार कर कई प्रयोग किए हैं। इसके जरिए पार्टी ने सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ने का संदेश दिया है।
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव मैदान में भाजपा ने तीन कद्दावर केंद्रीय मंत्रियों समेत सात सांसदों को उतार कर कई प्रयोग किए हैं। इसके जरिए पार्टी ने सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ने का संदेश दिया है। पार्टी नेताओं ने इनमें से पांच नेताओं को हारी हुई सीट पर उम्मीदवार बना कर राज्य में खुद के आधार को साबित करने की बड़ी जिम्मेदारी दी है। इसी बहाने पार्टी ने वंशवाद पर भी शिकंजा कसने का संदेश दिया है।
पांच कद्दावर नेताओं पर बड़ी जिम्मेदारी
पार्टी ने जिन आठ कद्दावर नेताओं को मैदान में उतारा है, उनमें से पांच को हारी हुई सीट पर उम्मीदवार बनाया गया है। पार्टी बीते चुनाव में निवास, दिमनी, सतना, जबलपुर पश्चिम, गाडरवारा में चुनाव हार गई थी। इन सीटों पर पार्टी ने क्रमश: केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते, नरेंद्र सिंह तोमर, और सांसद गणेश सिंह, राकेश सिंह के साथ राव उदय प्रताप सिंह को मैदान में उतारा है। जीती हुई सीटें केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल (नरसिंहपुर) और सांसद रीति पाठक (सीधी) को हाथ लगी हैं।
टिकट वितरण के बहाने पार्टी ने वंशवाद पर भी नकेल डालने का संदेश दिया है। मसलन प्रहलाद पटेल को जिस नरसिंहपुर सीट से उम्मीदवार बनाया गया है, वहां उनके भाई जालम सिंह विधायक थे। इसके अलावा चूंकि पार्टी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को इंदौर 1 से उम्मीदवार बनाया गया है, ऐसे में उनके विधायक बेटे आकाश को टिकट नहीं मिलेगा। पार्टी ने बीते साल ही एक परिवार एक टिकट का फार्मूला तय किया था।
विकल्प खुला, मगर साबित करना होगा आधार
पार्टी सूत्र ने बताया कि सीएम पद का विकल्प खुला है। चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष तोमर, प्रहलाद, कुलस्ते इसके प्रबल दावेदार हैं। विजयवर्गीय की दावेदारी से भी इन्कार नहीं किया जा सकता। मगर इसके लिए पहले इन्हें अपने इलाके में अपना आधार साबित करके दिखाना होगा। गौरतलब है कि चुनाव में तीन सांसद पहली बार विधानसभा चुनाव में उतरे हैं, जबकि कुलस्ते 33 साल बाद, तोमर 15 साल और विजयवर्गीय दस साल बाद विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। पटेल भी अब तक विधानसभा चुनाव से दूर रहे हैं।