तीस जून से पहले की प्रमुख नियुक्तियां राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के संविधान के मुताबिक नहीं थीं और इसलिए चुनाव आयोग केवल चुनावी बहुमत के आधार पर यह तय कर सकता है कि कौन सा धड़ा पार्टी का प्रतिनिधित्व करता है। अजित पवार गुट के एक वरिष्ठ नेता ने सोमवार को यह बात कही।
तीस जून से पहले की प्रमुख नियुक्तियां राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के संविधान के मुताबिक नहीं थीं और इसलिए चुनाव आयोग केवल चुनावी बहुमत के आधार पर यह तय कर सकता है कि कौन सा धड़ा पार्टी का प्रतिनिधित्व करता है। अजित पवार गुट के एक वरिष्ठ नेता ने सोमवार को यह बात कही।
अजित पवार और आठ विधायकों के एकनाथ शिंदे सरकार में शामिल होने के बाद राकांपा दो जुलाई को टूट गई थी। तब से, अजित पवार गुट और पार्टी संस्थापक शरद पवार के नेतृत्व वाले धड़े दावा कर रहे हैं कि वे पार्टा का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
दोनों धड़ों ने पदाधिकारियों की नियुक्ति की है और एक-दूसरे समूह द्वारा की गई नियुक्तियों को अवैध बताया है। उन्होंने दूसरे पक्ष के निर्वाचित प्रतिनिधियों को अयोग्य ठहराने की मांग करते हुए भी याचिकाएं दायर की हैं। अजित पवार समूह के मुताबिक, राकांपा के कार्यकारी अध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल ने संवाददाताओं से कहा,’महाराष्ट्र में हमारे 43 विधायक और नौ में से छह विधान परिषद सदस्य हमारा समर्थन कर रहे हैं।’
उन्होंने कहा, ‘हम बहुमत के सिद्धांत में भरोसा करते हैं, लेकिन यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि पार्टी केवल अपने संविधान के मापदंडों के भीतर काम कर सकती है। पार्टी के संविधान के मुताबिक हमारे आंतरिक चुनाव कभी नहीं हुए, इसलिए 30 जून से पहले की सभी नियुक्तियां असंवैधानिक हैं।’
लोकसभा सांसद सुनील तटकरे की मौजूदगी में उन्होंने कहा, ‘इसलिए चुनाव आयोग (भारत का) जिस एकमात्र परीक्षण के आधार पर फैसला कर सकता है (पार्टी, नाम, चुनाव चिह्न किसका है) वह निर्वाचित प्रतिनिधियों की संख्या है।’ कार्यक्रम में नगालैंड के सभी सात राकांपा विधायकों के साथ राज्य इकाई के प्रमुख, महिला शाखा और युवा शाखा के प्रमुखों ने अजित पवार को समर्थन दिया।
राजग की नगालैंड सरकार को समर्थन देने के लिए मार्च में लिखे गए पत्र को याद करते हुए पटेल ने कहा कि यही वह समय था जब राकांपा राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में शामिल हुई थी। राकांपा में विभाजन के बाद अजित पवार गुट ने चुनाव आयोग (ईसीआई) के समक्ष यह कहते हुए पार्टी के नाम और प्रतीक पर दावा किया है कि 30 जून को उन्हें शरद पवार की जगह पार्टी प्रमुख बनाया गया था।
ईसीआई छह अक्तूबर को दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के लिए तैयार है। उन्होंने कहा, ‘जयंत पाटिल सहित अध्यक्षों को नामित किया गया है और चुना नहीं गया है। संगठनात्मक नियुक्तियां चुनाव के जरिए होनी चाहिए। हमारे पास आंतरिक चुनावों का ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं है। चूंकि हमारे यहां चुनाव नहीं हुए थे, इसलिए (पार्टी सम्मेलन में) प्रतिनिधियों का चयन भी संदिग्ध है।’
राज्यसभा सदस्य ने जोर देकर कहा,’पार्टी किसकी है, इसका फैसला निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से होना चाहिए क्योंकि पदाधिकारियों को चुनने के लिए कोई आंतरिक चुनाव नहीं होते हैं।’ यह पूछे जाने पर कि क्या पार्टी मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में विधानसभा चुनाव लड़ेगी, पटेल ने कहा कि चुनाव आयोग का आदेश (पार्टी पर) छह अक्टूबर से 15-20 दिनों के भीतर आने की संभावना है।
उन्होंने कहा, ‘हम उसके बाद (चुनाव लड़ने के बारे में) बात कर सकते हैं। मुझे नहीं पता कि आदेश क्या होगा। लेकिन मैं निश्चित रूप से आपको बता सकता हूं कि हमने इस मामले के सभी कारकों का अध्ययन किया है और हम इसे जीतने के लिए आश्वस्त हैं।’