18 सितंबर 1949 को आजाद देश को एक के बजाय दो नाम देने के प्रस्ताव के बारे में चर्चा हुई। संविधान सभा में कांग्रेस के सदस्य कमलापति त्रिपाठी ने संशोधन प्रस्ताव पर अपनी भावनाएं व्यक्त कीं। इस दौरान उन्होंने कहा कि ‘भारत दैट इज इंडिया’ शब्द का प्रयोग करना अधिक उचित होता।
‘इंडिया’ बनाम ‘भारत’ की चर्चा इस वक्त देश में सबसे ज्यादा हो रही है। पहले जी20 के निमंत्रण पत्र में ‘प्रेजिडेंट ऑफ भारत’ लिखा गया तो बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इंडोनेशिया दौरे के कार्यक्रम में ‘प्राइम मिनिस्टर ऑफ भारत’ का उल्लेख हुआ। अब जब चर्चा हो रही है कि क्या आधिकारिक रूप से देश का नाम बदलने वाला है। ऐसे में देश का संविधान लिखने वाली सभा की एक पर हुई बहस के बारे में जानना भी जरूरी होगा। जो बेहद दिलचस्प थी।
संविधान का अनुच्छेद एक कहता है ‘इंडिया, यानी भारत, राज्यों का एक संघ होगा।’ हालांकि, मूल मसौदे में ‘भारत’ नाम का कोई जिक्र नहीं था। दरअसल, चार नवंबर 1948 को संविधान सभा में संविधान का मसौदा पेश किया गया था। यह मसौदा डॉ. भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता वाली एक समिति द्वारा तैयार किया गया था। लगभग एक साल बाद 17 सितंबर 1949 को अंबेडकर ने एक प्रस्ताव रखा जिसमें पहले उप खंड में ‘भारत’ नाम के संशोधन में बदलाव का सुझाव दिया गया।
18 सितंबर 1949 को आजाद देश को एक के बजाय दो नाम देने के प्रस्ताव के बारे में सदस्यों के बीच भारी असहमति देखने को मिली थी। प्रारंभिक प्रावधान पर संविधान सभा में ‘इंडिया’ और ‘भारत’ के बीच संबंध पर काफी चर्चा हुई। सदस्यों ने कई संशोधनों का सुझाव दिया लेकिन किसी को भी स्वीकार नहीं किया गया। अंबेडकर के बाद ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक के नेता एचवी कामथ ने पहले उप खंड के हिस्से को भारत या अंग्रेजी में इंडिया से बदलने का प्रस्ताव करते हुए पहला संशोधन पेश किया। कामथ यह प्रस्ताव आयरिश संविधान से प्रेरणा लेते हुए सामने लेकर आए थे।
इसी चर्चा में कांग्रेस के एक अन्य सदस्य कमलापति त्रिपाठी भी जुड़े। कमलापति ने इस बात पर जोर दिया था कि भारत को इंडिया से अधिक प्राथमिकता मिलनी चाहिए। कमलापति ने संशोधन प्रस्ताव पर अपनी भावनाएं व्यक्त कीं। इस दौरान उन्होंने कहा, “आज देश के नाम को लेकर एक संशोधन हमारे सामने है, मुझे खुशी होती अगर प्रारूप समिति ने इस संशोधन को किसी अलग रूप में प्रस्तुत किया होता। यदि ‘इंडिया दैट इज भारत’ के अलावा किसी अन्य अभिव्यक्ति का इस्तेमाल किया गया होता तो मैं सोचता हूं, यह इस देश की प्रतिष्ठा और परंपराओं के अधिक अनुरूप होता और वास्तव में इससे इस संविधान सभा का भी अधिक सम्मान होता।”
“यदि ‘दैट इज शब्द’ आवश्यक होते तो, जो प्रस्ताव हमारे सामने प्रस्तुत किया गया है उसमें ‘भारत दैट इज इंडिया’ शब्द का प्रयोग करना अधिक उचित होता। मेरे मित्र कामथ ने यह संशोधन पेश किया है कि ‘भारत जैसा कि इसे अंग्रेजी भाषा में इंडिया कहा जाता है’ का प्रयोग किया जाना चाहिए। प्रारूप समिति ने इसे स्वीकार कर लिया था यदि वह अब भी इसे स्वीकार करती है तो यह हमारी भावनाओं और हमारे देश की प्रतिष्ठा के प्रति सराहनीय विचार होगा। हमें इसे स्वीकार करने में बहुत खुशी होती। फिर भी, जो प्रस्ताव हमारे सामने रखा गया है उससे हम प्रसन्न हैं और इसके लिए हम प्रारूप समिति को बधाई देते हैं।”
उन्होंने आगे कहा, “जब कोई देश गुलामी में होता है तो वह अपनी आत्मा गंवा देता है। एक हजार साल की गुलामी के दौरान हमारे देश ने भी अपना सब कुछ खो दिया। हमने अपनी संस्कृति खो दी, हमने अपना इतिहास खो दिया, हमने अपनी प्रतिष्ठा खो दी, हमने अपनी मानवता खो दी, हमने अपना स्वाभिमान खो दिया, हमने अपनी आत्मा खो दी और वास्तव में हमने अपना रूप और नाम खो दिया। आज एक हजार वर्ष तक परतन्त्रता में रहने के बाद यह स्वतन्त्र देश अपना नाम दोबारा हासिल करेगा और हमें आशा है कि यह अपना खोया हुआ नाम पुनः प्राप्त करके अपनी आन्तरिक चेतना तथा बाह्य स्वरूप को फिर पा लेगा तथा अपनी आत्मा की प्रेरणा से कार्य करना आरंभ कर देगा जो कि पहले भी थी। यह वास्तव में दुनिया में अपनी प्रतिष्ठा पुनः प्राप्त करेगा। राष्ट्रपिता बापू के पदचिह्नों पर चलकर देश में जो क्रांतिकारी आंदोलन चला, उसने हमें अपने स्वरूप और अपनी खोयी हुई आत्मा की पहचान करायी। आज उन्हीं के कारण और उनकी तपस्या के कारण ही हम अपना नाम भी पुनः प्राप्त कर रहे हैं।”
कमलापति त्रिपाठी ने कहा, ”मैं ‘भारत’ के ऐतिहासिक नाम से प्रभावित हूं। यहां तक कि इस शब्द के उच्चारण मात्र से ही क्षण भर में ही हमारे सामने एक के बाद एक सदियों के सांस्कृतिक जीवन की तस्वीर उभर आती है। मेरी राय में दुनिया में कोई दूसरा देश नहीं है जिसका इतिहास, ऐसी संस्कृति और ऐसा नाम हो जिसकी उम्र सहस्राब्दियों में गिनी जाती हो जैसा कि हमारे देश के पास है।”
त्रिपाठी आगे कहते हैं, “हमारे देश को जितने दमन, अपमान और लंबी गुलामी से गुजरना पड़ा, उसके बाद भी उसने अपने नाम और अपनी प्रतिभा को बचाकर रखा है। दुनिया में ऐसा कोई दूसरा देश नहीं है। हजारों साल बाद भी हमारा देश आज भी ‘भारत’ के नाम से जाना जाता है। वैदिक काल से ही यह नाम हमारे साहित्य में आता रहा है। हमारे पुराणों में सम्पूर्ण भारत के नाम की स्तुति की गयी है। देवतागण स्वर्ग में इस देश का नाम स्मरण करते रहे हैं। गायन्ति देवा: किल् गीतकानि।” देवताओं की प्रबल इच्छा है कि वे भारत की पवित्र भूमि पर जन्म लें और यहीं जीवन व्यतीत कर अपने सर्वोच्च लक्ष्य को प्राप्त करें।”
“हमारे लिए यह नाम पवित्र स्मृतियों से भरा है। इस नाम का उच्चारण करते ही हमारे मन में हमारे प्राचीन इतिहास और प्राचीन गौरव तथा हमारी प्राचीन संस्कृति के चित्र उभर आते हैं। हमें याद आता है कि यह वह देश है जहां प्राचीन युगों में महापुरुषों और महर्षियों ने एक महान संस्कृति को जन्म दिया था। वह संस्कृति न केवल इस भूमि के विभिन्न क्षेत्रों में फैली, बल्कि इसकी सीमाओं को पार करते हुए सुदूर पूर्व के कोने-कोने तक भी पहुंची। हमें याद आता है कि एक ओर तो यह संस्कृति भूमध्य सागर तक पहुंची और दूसरी ओर इसने प्रशांत महासागर के तटों को भी छुआ। हमें याद आता है कि हजारों साल पहले इस देश के अधिनायकों और विचारकों ने एक महान राष्ट्र का निर्माण किया और अपनी संस्कृति को दुनिया के चारों कोनों तक पहुंचाया और अपने लिए प्रतिष्ठा हासिल की। जब हम इस शब्द का उच्चारण करते हैं तो हमें हमारे महर्षियों द्वारा कहे गए ऋग्वेद के मंत्रों की याद आती है जिनमें उन्होंने सत्य के दर्शन का वर्णन किया।”
”जब हम इस शब्द का उच्चारण करते हैं तो हमें भगवान बुद्ध की याद आती है। जब हम इस शब्द का उच्चारण करते हैं तो हमें दुनिया को नई दृष्टि देने वाले शंकराचार्य की याद आती है। जब हम इस शब्द का उच्चारण करते हैं तो हमें भगवान राम की शक्तिशाली भुजाओं की याद आती है, जिन्होंने धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाकर हिमालय से लेकर इस भूमि और आकाश के आसपास के समुद्रों को गूंजायमान कर दिया था। जब हम इस शब्द का उच्चारण करते हैं तो हमें भगवान कृष्ण के चक्र की याद आती है।”
इस बीच डॉ. बीआर अम्बेडकर टिप्पणी करते हैं, “श्रीमान, क्या यह सब आवश्यक है?” इस पर कमलापति त्रिपाठी कहते हैं, ‘मैं तो आपको प्रासंगिक बातें सुनने के लिए कह रहा हूं।” फिर अम्बेडकर कहते हैं, “अभी बहुत काम किया जाना बाकी है।” कमलापति त्रिपाठी फिर बोलते हैं, “जब हम इस शब्द का उच्चारण करते हैं तो हमें मानवता को एक नया संदेश देने वाले बापू की याद आती है। हमें यह देखकर खुशी हुई कि इस शब्द का इस्तेमाल किया गया है और हम इसके लिए डॉ. अंबेडकर को बधाई देते हैं। बहुत अच्छा होता यदि उन्होंने कामथ द्वारा प्रस्तुत संशोधन को स्वीकार कर लिया होता।”
अंततः संविधान सभा ने मसौदा समिति के अध्यक्ष बीआर अंबेडकर द्वारा पेश किए गए संशोधनों को छोड़कर अनुच्छेद के मसौदे में सभी संशोधनों को खारिज कर दिया। इसके साथ ही अनुच्छेद-1 के प्रावधान ‘इंडिया दैट इज भारत’ को संविधान सभा ने 18 सितंबर 1949 को अपना लिया।