इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पत्नी के उत्पीड़न पर पति (याची) और उसके परिजनों को राहत देने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि मामला संज्ञेय है। पति भले ही बाहर रह रहा हो, लेकिन उसके और उसके परिजनों के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द नहीं किया जा सकता है।
कोर्ट ने पुलिस जांच में हस्तक्षेप से इनकार कर दिया। कहा कि याची और उसके परिजनों को सीआरपीसी के तहत उपलब्ध उपचारों का लाभ नहीं दिया जा सकता है। यह आदेश न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा और न्यायमूर्ति सुभाष चंद्र शर्मा ने अभिषेक शुक्ला व अन्य और साधना शुक्ला व अन्य की याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई कर खारिज करते हुए दिया।
याची और उसके परिजनों के खिलाफ आईपीसी की धारा 498ए, 323, 506, 406, 342, 313, 351 और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3/4 के तहत 14 अप्रैल 2021 को ग्रेटर नोएडा में रिपोर्ट दर्ज कराई गई थी। याची व उसके परिजनों ने एफआईआर को रद्द करने के साथ गिरफ्तारी पर रोक लगाने की मांग की थी।
याची की ओर से तर्क दिया गया कि विपक्षी से उसकी शादी ग्रेटर नोएडा में 2011 में हुई थी। याची पर पत्नी से जबरन पैसा छीनने, उससे कमरे में बंद कर मारपीट करने, पढ़ाई करने केलिए मना करने, भारत में नौकरी छुड़वाने, ऑनलाइन जॉब करने के लिए दबाव बनाने, यूएसए जाने के लिए मजबूर करने सहित कई अन्य आरोप लगाए गए थे। 2018 में जब पत्नी भारत आ गई तो याची ने उसे तलाक लेने केलिए नोटिस भी भेज दिया।
याची की ओर से तर्क दिया गया कि जब उसने तलाक के लिए नोटिस भेजा तो उसके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज कराया गया। याची ने पत्नी के लिए एक घर भी खरीदा था। कोर्ट ने पाया कि मामला संज्ञेय अपराध का है, इसलिए उसने मामले में याची की मांग को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि याची भले ही विदेश में हो, उसके खिलाफ सीआरपीसी की धारा 188 और 189 के तहत जांच की जा सकती है।