लखनऊ विवि के राजनीति शास्त्री प्रो. संजय गुप्ता कहते हैं कि समन्वयक बनने का मतलब पीएम पद का स्वाभाविक उम्मीदवार होना नहीं हैं। नब्बे के दशक में राष्ट्रीय मोर्चा गठबंधन में वामपंथी नेता हरिकिशन सिंह सुरजीत की भूमिका अग्रणी थी, लेकिन प्रधानमंत्री पद के लिए कभी उनका नाम नहीं चला।
समावेशी विपक्षी गठबंधन ”इंडिया” के संस्थापक समन्वयक बिहार के सीएम और जदयू नेता नीतीश कुमार हो सकते हैं। इस पर कांग्रेस समेत सभी घटक दलों में करीब-करीब सहमति बन चुकी है। अगले महीने मुंबई में होने वाली इंडिया की तीसरी बैठक में इसकी घोषणा हो सकती है।
यह गठबंधन बनाने की पहल बिहार से शुरू हुई थी। इसमें नीतीश कुमार का अहम रोल था। जून में पटना में हुई गठबंधन की पहली बैठक में जो दल शामिल हुए थे, उनमें से अधिकतर का पहले से कांग्रेस से कोई गठबंधन नहीं था। इतना ही नहीं तेलंगाना जैसे राज्य में सत्ताधारी भारत राष्ट्र समिति और कांग्रेस की सीधी लड़ाई है।
ऐसे में माना जा रहा है कि नीतीश कुमार को समन्वयक की भूमिका में रखना ज्यादा मुफीद साबित होगा। तेलंगाना और पश्चिमी बंगाल जैसे प्रदेशों में जहां कांग्रेस के साथ क्षेत्रीय दलों के मतभेद हैं, वहां भी वह गठबंधन के मान्य नेता के रूप में स्वीकार किए जा सकेंगे। यूपी की राजनीति के लिहाज से देखें तो सपा नेतृत्व इस पद की दौड़ में नहीं है, इसलिए उसे भी नीतीश के नाम पर कोई एतराज नहीं।
समन्वयक बनने का मतलब पीएम पद का उम्मीदवार नहीं
लखनऊ विवि के राजनीति शास्त्री प्रो. संजय गुप्ता कहते हैं कि समन्वयक बनने का मतलब पीएम पद का स्वाभाविक उम्मीदवार होना नहीं हैं। नब्बे के दशक में राष्ट्रीय मोर्चा गठबंधन में वामपंथी नेता हरिकिशन सिंह सुरजीत की भूमिका अग्रणी थी, लेकिन प्रधानमंत्री पद के लिए कभी उनका नाम नहीं चला। एनडीए के पहले संयोजक जार्ज फर्नाडीज थे और भारत में इसी गठबंधन सरकार ने पहली बार अपना कार्यकाल पूरा किया। तब अटल बिहारी बाजपेयी प्रधानमंत्री बने थे। 2008-2013 तक शरद यादव के पास एनडीए के संयोजक का पद रहा और उनका नाम भी प्रधानमंत्री पद के लिए नहीं आया।