कॉलेजियम हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति की एक व्यवस्था है। ये व्यवस्था सुप्रीम कोर्ट ने खुद तय की है। इसके अनुसार, सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति और हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और जजों के ट्रांसफर पर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस और चार अन्य सबसे सीनियर जजों का समूह फैसला लेता है।
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने चार अधिवक्ताओं को अलग-अलग उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश की है। भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाले कॉलेजियम ने यह निर्णय लिया है।
जानिए, किसे कहां किया जाएगा नियुक्त
कॉलेजियम ने अनुसूचित जाति से आने वाले सेंथिलकुमार (52) को कॉलिजेयम ने मद्रास हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश की है। कॉलेजियम का मानना है कि इससे हाशिये पर रहने वाले समुदायों का प्रतिनिधित्व बढ़ेगा। वहीं, जी अरूल मुरुगन को भी मद्रास हाईकोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त करने की सिफारिश की है। कॉलेजियम का कहना है कि इससे ओबीसी समुदाय का भी अधिक प्रतिनिधित्व हो सकेगा। बॉम्बे हाईकोर्ट कॉलेजियम ने पहले अधिवक्ता मंजूषा अजय देशपांडे का नाम प्रस्तावित किया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने टाल दिया था। हालांकि, अब सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने बॉम्बे हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में देशपांडे का नाम प्रस्तावित किया है। इसके अलावा अधिवक्ता कुरुबरहल्ली वेंकटरामारेड्डी अरविंद को कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने के लिए उपयुक्त माना है।
जानिए क्या होता है कॉलेजियम
दरअसल, कॉलेजियम हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति की एक व्यवस्था है। ये व्यवस्था सुप्रीम कोर्ट ने खुद तय की है। इसके अनुसार, सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति और हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और जजों के ट्रांसफर पर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस और चार अन्य सबसे सीनियर जजों का समूह फैसला लेता है। इसी तरह हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति की सिफारिश उस हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और दो सबसे सीनियर जजों का समूह करता है। इन सिफारिशों की समीक्षा सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस और दो सबसे सीनियर जज करते हैं। इसके बाद ये नाम राष्ट्रपति के पास जाता है। जजों के समूह यानी कॉलेजियम द्वारा की गई सिफारिशों को सरकार राष्ट्रपति के पास भेजती है। इन सिफारिशों को मानना राष्ट्रपति और सरकार के लिए अनिवार्य होता है। सरकार चाहे तो कॉलेजियम से एक बार ये अनुरोध कर सकती है कि वह अपनी सिफारिश पर पुनर्विचार करे, लेकिन कॉलेजियम ने वही सिफारिश फिर से भेज दी, तो सरकार के लिए उसे मंजूर करना जरूरी होता है। यानी कॉलेजियम सिस्टम में सरकार की भूमिका सलाह देने या अपनी असहमति जताने तक सीमित है। इसे मानना या न मानना जजों के समूह के हाथ में है।