अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 1921 से 1950 और 1951 से 1980 के दौरान तीन-तीन दशकों की अवधि के बीच बारिश के पैटर्न में आए बदलावों का अध्ययन किया है। साथ ही, उन्होंने दक्षिणी-पश्चिमी मानसून के दौरान होने वाली बारिश में हर दशक आए बदलावों का भी विश्लेषण किया है।
मानसून धीरे-धीरे जलवायु परिवर्तन से पूरी तरह प्रभावित होने लगा है। इसका असर बारिश और उसके पैटर्न पर भी पड़ रहा है। बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के भूभौतिकी विभाग के प्रमुख प्रोफेसर राजीव भाटला की अगुवाई में अंतराष्ट्रीय शोधकर्ताओं ने पिछले 113 वर्षों के आंकड़ों की जांच की, जिससे पता चला है कि इस दौरान पश्चिमी भारत में मानसूनी बारिश में वृद्धि हुई है, वहीं पूर्वोत्तर भारत में जबर्दस्त कमी आई है।
बारिश के पैटर्न की जांच
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के जर्नल ‘मौसम’ में प्रकाशित अध्ययन में वैज्ञानिकों ने 1901 से 2013 के दौरान जून से सितंबर और जुलाई से अगस्त के बीच होने वाली बारिश के पैटर्न की जांच की है। साथ ही दशक और तीन दशकों के बीच मानसूनी बारिश के पैटर्न में आए बदलावों का अध्ययन किया है। उन्हें भरोसा है कि इस अध्ययन के जो नतीजे सामने आए हैं वो नीति निर्मातों और शोधकर्ताओं के लिए फायदेमंद हो सकते हैं। यह नतीजे बदलती जलवायु का सामना करने और उनसे निपटने का तरीके ढूंढने के लिए उनकी समझ और निर्णय लेने की क्षमताओं को बढ़ाने में मदद कर सकते हैं।
वर्ष 1901 से 2013 के बीच के आंकड़ों में दिखी असमानता
शोधकर्ताओं के अनुसार, 1901 से 2013 के बीच यदि पिछले 113 वर्षों में जून से सितम्बर के बीच होने वाली औसत बारिश के पैटर्न को देखें तो इसका वितरण काफी असमान है। जहां पश्चिमी घाट और पूर्वोत्तर भारत के कुछ हिस्सों में सबसे ज्यादा हर दिन औसतन 15 से 17 मिमी बारिश होती है। वहीं पश्चिमी भारत, हिमालयी के ऊपरी क्षेत्रों के साथ निचले प्रायद्वीप में हर दिन महज एक से तीन मिमी बारिश होती है।