भट्टाचार्य ने महिला पेशेवरों को विपरीत हालात में हार नहीं मानने की सलाह दी। कहा, परिवर्तन के समय हार मान लेना सबसे आसान तरीका है। आप ऐसा न करें। आपके लिए वहां टिके रहना जरूरी है। प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने के लिए धैर्य रखने की जरूरत होती है और फिर आप उससे उबर सकते हैं।
कंपनियों के निदेशक मंडल में महिलाओं की भागीदारी अब पहले से कहीं अधिक जरूरी हो गई है। बोर्ड में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिए मानसिकता बदलने के साथ प्रतिबद्धता व केंद्रीकृत दृष्टिकोण की जरूरत है।
इसलिए कम है प्रतिनिधित्व
भट्टाचार्य ने एक साक्षात्कार में तमाम मुद्दों पर खुलकर बात की, जिनमें उद्योगों में महिला भागीदारी पर खास जोर रहा। उन्होंने कहा, निदेशक मंडल में वही लोग होते हैं जो पहले उच्च पदों पर होते हैं। इसमें महिलाओं की संख्या सीमित है, इसलिए बोर्ड में भी उनका प्रतिनिधित्व कम रहता है। कार्यान्वयन में मजबूत व रणनीतिक कौशल में दक्ष महिलाओं को शामिल करने से बोर्ड रूम में मूल्यों को बढ़ावा मिलेगा।
विपरीत हालात में हार
भट्टाचार्य ने महिला पेशेवरों को विपरीत हालात में हार नहीं मानने की सलाह दी। कहा, परिवर्तन के समय हार मान लेना सबसे आसान तरीका है। आप ऐसा न करें। आपके लिए वहां टिके रहना जरूरी है। प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने के लिए धैर्य रखने की जरूरत होती है और फिर आप उससे उबर सकते हैं।
बेहद जरूरी है डिजिटल बदलाव
एसबीआई की पूर्व प्रमुख ने कहा, भारतीय उद्योगों के लिए डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन बेहद जरूरी है। इसे सिर्फ इस तरह से नहीं देखना चाहिए कि इसमें कुछ अच्छी बात है। आज जिन उद्योगों के पास कौशलपूर्ण प्रोसेस नहीं है या फिर डाटा संग्रह मैन्युअल तरीके से होता है, उन्होंने अगर आधुनिक तकनीक और डिजिटल प्रॉसेस नहीं अपनाया तो पीछे रह जाएंगे।
2013 में नई इबारत लिख बनीं मिसाल
भट्टाचार्य ने 2013 में उस समय एक नई इबारत लिखी, जब उन्होंने भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) में चेयरपर्सन का पद संभाला। बैंक के 200 वर्षों के इतिहास में यह पहला मौका था, जब किसी महिला को यह जिम्मेदारी मिली। 2017 में सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने अपने करियर की एक नई पारी शुरू की और 2020 में सेल्सफोर्स इंडिया में चेयरपर्सन एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) बनीं।