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जब मंटो ने ‘तमन्ना’ की जगह ‘आशा’ लिखने से इनकार कर दिया

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मंटो ने एक बार अपने बारे में लिखा था, ‘वो इस लिहाज से ज़्यादा पढ़ा-लिखा नहीं है कि उसने कभी मार्क्स को पढ़ा नहीं है, न ही उसकी नज़र फ़्रायड के किसी काम पर गई है. हीगल का उसने नाम भर सुना है, लेकिन सबसे दिलचस्प चीज़ ये है कि लोग, ख़ास तौर से उसके आलोचक ये एलान करते हुए नहीं थकते कि वो इन सब विचारकों से प्रभावित दिखाई देता है. जहाँ तक मैं जानता हूँ उस पर किसी विचारक का असर नहीं हो सकता.’

मंटो का जीवन अंतर्विरोधों से भरा पड़ा था. ताउम्र ख़ुदा के अस्तित्व पर सवाल उठाने वाले मंटो हर पन्ने की शुरुआत में हमेशा ‘786’ यानी ‘बिस्मिल्लाह’ लिखा करते थे. वो इसे ख़ुदा का फ़ोन नंबर कहते थे.

पैदाइश से कश्मीरी सआदत हसन मंटो का शुरुआती जीवन अमृतसर में बीता था. उन पर छह अलग-अलग मौक़ों पर अश्लीलता का मुक़दमा चलाया गया, लेकिन उन पर उसका कोई असर नहीं पड़ा.

सआदत हसन मंटो

लिखने के प्रति बेचैनी

मशहूर कहानीकार कृष्ण चंदर ने एक बार मंटो की शख़्सियत का ख़ाका खींचते हुए लिखा था, ‘मंटो लंबे क़द के थे. गोरे-चिट्टे मंटो थोड़ा-सा झुक कर चलते थे और उनके हाथ के पंजे की नसें बहुत उभरी हुई थीं. उनकी आवाज़ में एक अजीब-सी व्यग्रता और लिखने के प्रति बेचैनी थी. वो तेज़-तेज़ क़दमों से चलते थे. उनका माथा आयताकार था, सिनेमा की स्क्रीन की तरह. उनके बाल लंबे, सीधे और घने थे.’

मंटो हमेशा साफ़-सुथरा कुर्ता पाजामा पहनते थे. जाड़ों में वो सूट भी पहना करते थे. मंटो को पोस्टकार्ड पर ख़त लिखना पसंद था क्योंकि वो लिफ़ाफ़ों से कम पैसे में आते थे.

मशहूर लेखक और इतिहासकार बारी अलीग ने लिखा था, ”मुझे याद है एक बार मैंने उनको कई ख़त लिखे, लेकिन एक भी ख़त का जवाब नहीं आया. आख़िर में तंग आकर मैंने पाँच पैसे के दो डाक टिकट ख़त में रख कर उन्हें भेज कर उनसे कहा कि भाई ख़त का जवाब तो दे दो. कुछ दिनों में मुझे उनका एक पोस्टकार्ड मिला जिसमें लिखा हुआ था, मैंने तुम्हारे भेजे हुए डाक टिकट बेच दिए और उन्हीं पैसों से ये पोस्टकार्ड ख़रीदा.’

 

मंटो

कुर्सी पर घुटने मोड़ कर बैठने की आदत

मंटो हमेशा अपने घुटनों को मोड़कर उकड़ू कुर्सी पर बैठा करते थे. इससे उनकी काठी छोटी दिखाई देती थी.

कृष्ण चंदर लिखते हैं, ‘इस अंदाज़ में उन्हें बैठे देख मुझे अक्सर हँसी आ जाती थी. एक बार मैंने उन्हें एक सस्ती क़िस्म की सिगरेट पीने के लिए दी. देखते ही देखते उन्होंने कहा ‘ला हौल वला क़ुवत’ तुम इस तरह की सिगरेट पीकर भी इतनी अच्छी कहानियाँ कैसे लिख लेते हो? एक बार उन्होंने मुझसे पूछा तुम कौन सी शराब पीते हो? उस समय तक मैंने शराब की एक बूँद भी नहीं चखी थी. मैंने ऐसे ही जवाब दे दिया, ‘कोई भी इंग्लिश व्हिस्की.’ उन्होंने कहा, अंग्रेज़ क्या जानें व्हिस्की बनाना. पता नहीं भारत पर राज करने का सपना भी उन्होंने कैसे देखा था?”

 

कृश्न चंदर

इमेज स्रोत,INDIAN POSTAL DEPARTMENT

इमेज कैप्शन,कृश्न चंदर पर भारत सरकार ने डाक टिकट जारी किया था.

मंटो का उर्दू टाइपराइटर

सआदत हसन मंटो और कृष्ण चंदर ने दो साल साथ-साथ ऑल इंडिया रेडियो के दिल्ली स्टेशन में काम किया. बाद में उपेंद्रनाथ अश्क भी उनके साथ काम करने लगे.

कृष्ण चंदर लिखते हैं, ‘वो बहुत अच्छे दिन हुआ करते थे. हम लोगों के बीच अक्सर साहित्यिक बहस हुआ करती थी. मंटो के पास एक उर्दू टाइपराइटर था, जिस पर ही वो अपने सारे नाटक टाइप किया करते थे. वो हमारा मज़ाक उड़ाते हुए कहते थे, किसी भी लेखक के लिए टाइपराइटर उतना ही ज़रूरी है, जितना पति के लिए पत्नी. लेकिन यहाँ उपेंद्रनाथ अश्क और कृष्ण चंदर काग़ज़ पर ही अपने कलम घिसे चले जा रहे हैं. क्या तुम समझते हो कि आठ आने की कलम से महान साहित्य रचा जा सकता है? तुम सब लोग असली गधे हो! बेवकूफ़!’

मंटो के लिए हर दिन एक या दो नाटक या फ़ीचर लिखना बाएं हाथ का खेल हुआ करता था. उन दिनों फ़ीचर लिखना बहुत मुश्किल माना जाता था, लेकिन मंटों के लिए वो एक तरह का वॉकओवर होता था.

 

सआदत हसन मंटो

इमेज स्रोत,PENGUIN BOOKS

मंटो और उपेंद्रनाथ अश्क की नोकझोंक बातें उन मुश्किलों की जो हमें किसी के साथ बांटने नहीं दी जातीं…

ड्रामा क्वीन

समाप्त

सआदत हसन मंटो और उपेंद्रनाथ अश्क के बीच हमेशा बहस, लड़ाई या कुछ न कुछ विवाद छिड़ा रहता था. जब भी वो अश्क को देखते पंजाबी अंदाज़ में उन्हें पुकारते, ‘अश्के! ओए अश्के!’

अश्क अपनी किताब, ‘मंटो मेरा दुश्मन’ में लिखते हैं, ‘हम दोनों एक दूसरे का दिल दुखाने का कोई मौक़ा नहीं चूकते थे. वो बहुत शराब पीते थे जबकि मैंने शराब पीना तो दूर 1942 में ज़िंदगी में पहली बार सिगरेट का कश लिया था, जब मेरी उम्र 32 साल थी. मंटो को मेरे शराब न पीने, मेरे व्यवस्थित होने और संभल कर पैसा ख़र्च करने से सख़्त शिक़ायत थी.’

उन्होंने लिखा, ‘ये सही था कि जब तक हम दिल्ली में रहे हमेशा लड़ते रहे, लेकिन ये भी सही है कि उन्होंने ही मुझे फ़िल्मिस्तान में डायलॉग लेखक के तौर पर बंबई बुलाया था और जब मैं बंबई गया तो उनके घर पर ही आठ दस दिन रहा था. मंटो अपनी कहानियों का तानाबाना बहुत सावधानी से बुनते थे. उनकी कहानियों में न तो कोई शिकन दिखाई देती थी और न ही कोई आडंबर. उनकी भाषा परिष्कृत होती थी, लेकिन लोगों की समझ में आती थी. जब मैंने मंटो की मौत की ख़बर सुनी तो मेरी आँखें भर आईं. वो मेरे न तो रिश्तेदार थे, न ही भाई या दोस्त. वो मेरे दुश्मन थे… लेकिन फिर भी.’

 

उपेंद्रनाथ अश्क

इमेज स्रोत,LAXMI PRAKASHAN

इमेज कैप्शन,मंटो के साथी रहे मशहूर साहित्यकार उपेंद्रनाथ अश्क

सफ़ाई और नफ़ासत पसंद मंटो

हर विषय पर मंटो के विचार लीक से हट कर होते थे. अगर आप उनके सामने दोस्त्यवस्की की तारीफ़ करें तो वो सोमेरसट मॉम के क़सीदे पढ़ने लगते थे. अगर आप बंबई के बारे में कुछ कहें तो वो अमृतसर की तारीफ़ के पुल बाँध देते थे.

अगर आप नेहरू या जिन्ना के गुण गाएं तो वो सड़क के मोची की शख़्सियत का बखान करने लगते थे. अगर आप गोश्त और पालक खाने की इच्छा प्रकट करें तो वो आपको दाल खाने की सलाह देते थे. अगर आप शादी करने वाले हों तो वो अविवाहित जीवन के गुण गाने लगते थे. कपड़ों से उन्हें कोई ख़ास लगाव नहीं था, लेकिन वो अच्छे घर, अच्छे खाने और अच्छी शराब के शौक़ीन थे.

उपेंद्रनाथ अश्क लिखते हैं, ‘उनका घर हमेशा साफ़, व्यवस्थित और सजा हुआ होता था. उनकी साफ़ और धूल रहित वातावरण में काम करने की आदत थी. लेखकों के घर में आमतौर से जो अस्त-व्यस्तता दिखाई देती है, मंटो के यहाँ बिल्कुल भी नहीं थी. उनका मानना था कि हर चीज़ सही अनुपात में होनी चाहिए.’

देवेंद्र सत्यार्थीं ने अपनी एक कहानी ‘नए देवता’ में उनका नाम ‘नफ़ासत हसन’ रखा था. वो लिखते हैं, ‘एक बार मैं उनके घर 9, हसन बिल्डिंग, निकल्सन रोड पर गया था. जब मैं वहाँ पहुंचा तो मैंने उन्हें हाथ में झाड़ू लिए अपना कमरा साफ़ करते हुए देखा. उनका खादी कुर्ता पाजामा धूल से अटा पड़ा था.’

सआदत हसन मंटो

इमेज स्रोत,PENGUIN BOOKS

इमेज कैप्शन,मंटो अपनी पत्नी शफ़िया और साली ज़किया के साथ

10-12 नुकीली पेंसिलें

मंटो जैसी सफ़ाई और व्यवस्था बहुत से अमीर घरों में भी नहीं दिखाई देती क्योंकि उनमें सौंदर्यबोध का अभाव होता है. मंटो के एक और दोस्त अहमद नदीम क़ासिमी अपने लेख ‘द मिनिस्टर ऑफ़ लिटरेचर’ में लिखते हैं, ‘मंटो की स्टडी में हमेशा एक साफ़ सफ़ेद चादर फ़र्श पर बिछी रहती थी. एक डेढ़ फ़ीट ऊँची डेस्क पर उनकी सभी पाँडुलिपियाँ करीने से रखी होती थीं. उसी ऊँचाई पर उनका टाइपराइटर रखा होता था. शेल्फ़ में किताबें क़ायदे से सजी होती थीं.’

‘उसी डेस्क में उनकी व्हिस्की की बोतल भी छिपी रहती थी. उनकी मेज़ पर हमेशा 10-12 नुकीली छिली हुई पेंसिलें रहती थीं. एक बार मैंने उनसे पूछा इतनी सारी पेंसिलें क्यों? उनका जवाब था, पेंसिलों की नोक लिखते-लिखते मोटी हो जाती है और उनको फिर से नुकीला बनाने में थोड़ा समय लगता है. इस बीच विचारों की शृंखला टूट जाती है. इसलिए जैसे ही पेंसिल की नोक मोटी होती है, मैं उसे उठाकर अलग रख देता हूँ और दूसरी नुकीली पेंसिल उठा लेता हूँ.’

सआदत हसन मंटो

इमेज स्रोत,LEFT WORD

कलम नहीं धारदार चाकू से लेखन

मंटो ने लैंगिकता के मुद्दे पर कई बार अपनी कलम चलाई है. वो जब भी किसी महिला का सम्मान तार-तार होते देखते हैं, बहुत बेचैन हो जाते हैं. वो अनुरोध या याचना करने में यक़ीन नहीं करते. उनकी कलम थप्पड़ मारने में यक़ीन करती है. उनकी क़रीब-क़रीब हर कहानी थप्पड़ से ख़त्म होती है. पाठकों के गाल पर उनका थप्पड़ इतना करारा होता है कि वो उन्हें अस्थिर कर देता है.

मशहूर नाटककार बलवंत गार्गी ने एक बार उनके बारे में कहा था, ‘मंटो कलम से नहीं धारदार चाकू से लिखते हैं. इससे वो समाज की नसें काटकर उसका बीमार और गंदा ख़ून बहा देते हैं.’

मशहूर नाटककार बलवंत गार्गी

इमेज स्रोत,PUNJAB UNIVERSITY

इमेज कैप्शन,मशहूर नाटककार बलवंत गार्गी

मंटो की कहानियाँ जितने विवाद और शोर खड़ा करती थीं उतनी ही लोकप्रिय होती थीं. वर्ष 1945 में उन्होंने एक कहानी के बारे में अली सरदार जाफ़री से कहा था, ये कहानी लिखने में मुझे मज़ा नहीं आया. न ही किसी ने मुझे गाली दी और न ही किसी ने मेरे ख़िलाफ़ मुक़दमा दायर किया.

आम ज़िंदगी में मंटो की गिनती सबसे बदज़ुबान लोगों में होती थी.

अली सरदार जाफ़री लिखते हैं, ‘हमेशा करीने की ज़ुबान बोलने वाले लोगों को मंटो की ज़ुबान चुभ सकती थी. लेकिन मंटो ही जानते थे कि ज़ुबान के काँटों को फूल किस तरह बनाया जाता है. उन्होंने अपशब्दों को इस ऊँचाई तक पहुंचा दिया था कि वो उनके मुंह से साहित्य और कला का सबसे बड़ा नमूना लगते थे. जब भी कोई पत्रिका प्रकाशित होती थी, हम उसमें सबसे पहले मंटो का लिखा पढ़ते थे. हमारी दिलचस्पी ये जानने में होती थी कि मंटो ने किसको गाली दी है या किसको अपना निशाना बनाया है और समाज के किस छिपे हुए पहलू को उन्होंने उजागर किया है.’

मंटो का पसंदीदा तकिया कलाम होता था ‘फ़्रॉड’. एक बार मौलाना अहमद शाह बुख़ारी ने कृपालु होने के अंदाज़ में उनसे कहा, ‘मैं तुम्हें अपने बेटे की तरह समझता हूँ.’ मंटो ने तमक कर जवाब दिया, ‘लेकिन मैं आपको अपना पिता नहीं मानता.’

 

सआदत हसन मंटो

रफ़ीक़ ग़ज़नवी से दोस्ती

मंटो के एक नज़दीकी दोस्त होते थे रफ़ीक़ ग़ज़नवी. जब भी वो उनका नाम लेते थे, उनके मुँह से हमेशा उनके लिए या तो ‘लफ़ंगा’ शब्द निकलता था या ‘बदमाश’.

मंटो को नज़दीक से जानने वाली इस्मत चुग़ताई लिखती हैं, ‘मंटो अक्सर बताया करते थे कि किस तरह रफ़ीक़ ग़ज़नवी ने एक के बाद एक चार बहनों से शादी की और किस तरह लाहौर की कोई तवाएफ़ नहीं बची है जिसने उनके क़दम न चूमे हों.’

‘एक दिन उन्होंने मुझसे कहा कि वो रफ़ीक़ को मुझसे मिलवाना चाहते हैं. मैंने कहा मैं उनसे क्यों मिलूँ, आप ही उन्हें लफ़ंगा कहते रहे हैं? उन्होंने कहा, इसीलिए तो मैं उसे तुमसे मिलवाना चाहता हूँ. तुम्हारी इस ग़लतफ़हमी के लिए कौन ज़िम्मेदार है कि ‘लफ़ंगे’ और ‘बदमाश’ लोग ख़राब लोग होते हैं? रफ़ीक सही मानों में शरीफ़ आदमी हैं. वो बहुत दिलचस्प शख़्स हैं. कोई भी महिला उनसे मिलकर उनके प्यार में पड़े बिना नहीं रह सकती. वाक़ई जब मैं रफ़ीक़ से मिली तो मुझे इसका अंदाज़ा हुआ कि मंटो की नज़र कितनी बारीक है.’

 

इस्मत चुग़ताई

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इमेज कैप्शन,मशहूर लेखिका इस्मत चुग़ताई

सेठ से बहस

मंटो की न सिर्फ़ नज़र बारीक थी, बल्कि वो दूर की भी सोचते थे. एक बार मंटो, कृष्ण चंदर और अहमद नसीम कासिमी ने मिलकर एक फ़िल्म ‘बंजारा’ की कहानी, डॉयलॉग और गीत लिखे. इन सबको मनोरंजन पिक्चर्स की तरफ़ से इन सब कामों के लिए 2,000 रुपए का एकमुश्त भुगतान होना था.

नदीम कासिमी लिखते हैं, ‘जब हम पैसे लेने गए तो मंटो ने मुझे सलाह दी कि अगर सेठ किसी शब्द को बदलने के लिए कहे तो उस पर तुरंत राज़ी हो जाना. तुम शायर लोगों का अहम बहुत बड़ा होता है. उससे किसी बात पर बहस मत करना, नहीं तो हमारा भुगतान रुक जाएगा. सेठ ने मेरे एक गीत में नुख़्स निकालते हुए कहा, आप ‘तमन्ना’ शब्द को बदल कर ‘आशा’ कर दीजिए. मैं ऐसा करने ही वाला था कि मंटो बीच में बोले, सेठ साहब, ‘तमन्ना’ यहाँ सबसे उपयुक्त शब्द है. हम कोई शब्द नहीं बदलेंगे. अगर आप इससे असहमत हों तो हमें जाने की इजाज़त दीजिए. सेठ नर्वस हो गया. उसने कहा ठीक है ‘तमन्ना’ शब्द को न बदला जाए.’

 

सआदत हसन मंटो

इमेज स्रोत,SHIRAZ HASSAN

दूरदर्शी मंटो

ये तीनों शख़्स सेठ के बंगले से 2,000 रुपए का चेक लेकर बाहर निकले. मंटो ने कहा हमें ये चेक फ़ौरन भुना लेना चाहिए. कृष्ण ने कहा इतनी जल्दी क्या है? हम इसे कल भी भुना सकते हैं. लेकिन मंटो ने कहा तुम इन फ़िल्म वाले सेठों के बारे में नहीं जानते. पता नहीं कब इनका दिमाग़ फिर जाए. बहरहाल चाँदनी चौक के एक बैंक में उस चेक को भुनाया गया.

नदीम क़ासमी आगे लिखते हैं, ‘जब हम मंटो के घर पहुंचे तो देखते क्या हैं कि सेठ का मुंशी वहाँ हमारा इंतज़ार कर रहा था. उसने कहा कि सेठ ने फ़िल्म बनाने का अपना इरादा बदल दिया है. आप वो चेक वापस कर दीजिए. मंटो ने हमारी तरफ़ जीत के अंदाज़ में देखा और मुंशी की तरफ़ मुड़कर बोले, अपने सेठ से जाकर कह दो कि चेक को भुना लिया गया है और अब वो रक़म वापस नहीं की जा सकती. मैं और कृष्ण चंदर मंटो की दूरदृष्टि की दाद दिए बग़ैर नहीं रह सके.’

 

सआदत हसन मंटो
इमेज कैप्शन,सआदत हसन मंटो

सिर्फ़ 43 की उम्र में दुखदाई मौत

मंटो सिर्फ़ 43 साल जिए. मरने से एक दिन पहले वो काफ़ी देर से अपने घर लौटे और ख़ून की उल्टी करने लगे. जब उनके छह साल के नाती ने उस तरफ़ उनका ध्यान दिलाया तो उन्होंने उसे पान की पीक कहकर टालने की कोशिश की.

उन्होंने उस बच्चे से ये भी वादा ले लिया कि वो इसका ज़िक्र किसी से नहीं करेगा. रात के आख़िरी पहर में उन्होंने अपनी पत्नी सफ़िया को जगाकर कहा, मेरे पेट में बहुत दर्द हो रहा है. लगता है मेरा लिवर फट गया है.

मंटो के भाँजे और पाकिस्तान के मशहूर क्रिकेट कमेंटेटर रहे हामिद जलाल अपने लेख ‘मंटो मामूज़ डेथ’ में लिखते हैं, ‘जैसे ही मंटो मामू ने सुना कि उन्हें अस्पताल ले जाने की बात हो रही है, उन्होंने कहा, अब बहुत देर हो चुकी है. मुझे अस्पताल मत ले जाओ. यहीं शांति से रहने दो. जब उनकी पत्नी और बच्चे रोने लगे तो उन्होंने चिल्लाकर कहा, कोई नहीं रोएगा.’

 

नंदिता दास ने 2018 में नवाज़ुद्दीन सिद्दिकी को लेकर मंटो पर एक फ़िल्म बनाई थी.

इमेज स्रोत,VIACOM 18 MOTION PICTURES

इमेज कैप्शन,नंदिता दास ने 2018 में नवाज़ुद्दीन सिद्दिकी को लेकर मंटो पर एक फ़िल्म बनाई थी.

‘इसके बाद उन्होंने कंबल से अपना मुंह ढक लिया. फिर अचानक कंबल से मुँह निकाल कर उन्होंने कहा, मेरी जेब में साढ़े तीन रुपए पड़े हैं. उसमें कुछ पैसे मिला कर मेरे लिए व्हिस्की की एक बोतल ले आओ. जब उनके लिए व्हिस्की की एक क्वार्टर बोतल लाई गई तो उन्होंने कहा, इसमें से मेरे लिए दो पेग बनाओ.’

‘जैसे ही एंबुलेंस उनके दरवाज़े आकर रुकी मंटो मामू ने फिर शराब माँगी. उनके मुंह में एक चम्मच शराब डाली गई. लेकिन तब तक वो बेहोश हो चुके थे. जब एंबुलेंस अस्पताल पहुंची तो डाक्टरों ने उन्हें देखते ही मृत घोषित कर दिया. रास्ते में ही उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया था.’

सआदत हसन मंटो की कब्र पर लगे 'समाधि लेख' का कंटेंट उन्होंने ख़ुद ही मरने से पहले तैयार कर लिया था.
इमेज कैप्शन,सआदत हसन मंटो की कब्र पर लगे ‘समाधि लेख’ का कंटेंट उन्होंने ख़ुद ही मरने से पहले तैयार कर लिया था.

मरने से पहले उन्होंने अपने लिए एक समाधि लेख लिखा था जो उनकी क़ब्र पर अब तक लिखा हुआ है-

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