समाजवादी पार्टी कांग्रेस और भाजपा से समान दूरी रखकर अपनी राह तय करेगी। लोहिया-मुलायम की प्रेरणा और अतीत से सबक लेकर आगे बढ़ने का लक्ष्य रखा है।
राममनोहर लोहिया और मुलायम सिंह यादव की नसीहतें और अतीत के सबक उसे इसी रणनीति पर आगे बढ़ा रहे हैं। अलबत्ता, जिस तरह से बीजू जनता दल ने उड़ीसा में अपनी जगह बनाई है, ठीक उसी तरह सपा ने भी यूपी में अपना अंगद पांव जमाने का लक्ष्य लिया है।
वहीं, लोकसभा चुनाव में सपा ने अपने घोषणापत्र में स्पष्ट रूप से कहा कि देश के अधिकतर संसाधनों पर थोड़े से सामान्य वर्ग के लोग काबिज हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा के साथ उसके गठबंधन के भी अपेक्षित परिणाम नहीं मिले।
यूपी में जड़ें मजबूत होने पर ही राष्ट्रीय फलक पर बढ़ेगी अहमियत
लखनऊ विवि के प्रो. संजय गुप्ता कहते हैं कि कि केंद्र में गैर भाजपा सरकार बनने पर भी राष्ट्रीय राजनीति में सपा के हाथ कुछ ज्यादा नहीं आने वाला है। ज्यादा से ज्यादा कोई एक-आध महत्वपूर्ण विभाग ही उसे मिल सकता है। कांग्रेस को यूपी की राजनीति में कोई स्पेस (अवसर) देने का मतलब है कि सपा का ही नुकसान।
दरअसल यूपी में कांग्रेस, सपा से ज्यादा बसपा के नजदीक आना चाह रही है। पर विभिन्न कारणों से बसपा उससे हाथ मिलाने में रुचि नहीं ले रही है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी कह भी चुके हैं कि वे बसपा को आगे रखकर यूपी में गठजोड़ चाहते हैं। स्थानीय कांग्रेसी भी मानते हैं कि यूपी में बसपा का साथ मिलने से दलित व सामान्य वर्ग का समीकरण बनेगा, जो सीटों के लिहाज से काफी मुफीद साबित हो सकता है।