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कांग्रेस-BJP से समान दूरी रख अपनी राह तय करेगी सपा, लोहिया-मुलायम की प्रेरणा और अतीत से सबक ले बढ़ेगी आगे

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समाजवादी पार्टी कांग्रेस और भाजपा से समान दूरी रखकर अपनी राह तय करेगी। लोहिया-मुलायम की प्रेरणा और अतीत से सबक लेकर आगे बढ़ने का लक्ष्य रखा है।

लोकसभा चुनाव की आहट तेज होने के साथ ही सपा के राजनीतिक पैंतरे को लेकर लोगों में उत्सुकता बढ़ती जा रही है। कांग्रेस से सपा के रिश्ते को लेकर भी लोग जानना चाहते हैं। हालांकि जानकारों का कहना है कि यूपी में सपा कांग्रेस से समान दूरी बनाए रखते हुए अपना सफर तय करेगी।

राममनोहर लोहिया और मुलायम सिंह यादव की नसीहतें और अतीत के सबक उसे इसी रणनीति पर आगे बढ़ा रहे हैं। अलबत्ता, जिस तरह से बीजू जनता दल ने उड़ीसा में अपनी जगह बनाई है, ठीक उसी तरह सपा ने भी यूपी में अपना अंगद पांव जमाने का लक्ष्य लिया है।

सपा ने 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का साथ लिया। लेकिन, फायदे के बजाय उसे नुकसान हुआ। समाजवादियों को उम्मीद थी कि कांग्रेस के साथ गठबंधन से सामान्य वर्ग का कुछ प्रतिशत वोट उसके पक्ष में आएगा, पर नतीजे इसके एकदम विपरीत आए।

वहीं, लोकसभा चुनाव में सपा ने अपने घोषणापत्र में स्पष्ट रूप से कहा कि देश के अधिकतर संसाधनों पर थोड़े से सामान्य वर्ग के लोग काबिज हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा के साथ उसके गठबंधन के भी अपेक्षित परिणाम नहीं मिले।

सूत्र बताते हैं कि अतीत के इस सबक को लेकर सपा नेतृत्व ने काफी मंथन किया है। राममनोहर लोहिया की पूरी राजनीति कांग्रेस के खिलाफ रही। मुलायम सिंह यादव भी मानते थे कि कांग्रेस से दोस्ती सपा के हित में नहीं है। यूपी का राजनीतिक इतिहास बताता है कि यहां कांग्रेस के उत्तरोत्तर पतन और सपा-बसपा के उसी क्रम में उभार के बीच गहरा रिश्ता रहा है।
यही वजह है कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव कई बार कह चुके हैं कि भाजपा और कांग्रेस के मूल चरित्र में कोई अंतर नहीं है। सत्ता में आने पर दोनों का व्यवहार कमोबेश एक जैसा हो जाता है।
रूहेलखंड विवि के शिक्षक डॉ. एसी त्रिपाठी कहते हैं कि कांग्रेस उत्तर प्रदेश में इधर आम तौर पर सामान्य वर्ग का थोड़ा-बहुत वोट लेते हुए दिखी है और इस वर्ग का एक बड़ा हिस्सा पिछले कुछ चुनावों में भाजपा का समर्थक बनकर उभरा है। समाजवादी भी यह मानते हैं कि कांग्रेस का अकेले चुनाव लड़ना, सपा को नहीं, बल्कि भाजपा को नुकसान पहुंचाएंगा।

यूपी में जड़ें मजबूत होने पर ही राष्ट्रीय फलक पर बढ़ेगी अहमियत

लखनऊ विवि के प्रो. संजय गुप्ता कहते हैं कि कि केंद्र में गैर भाजपा सरकार बनने पर भी राष्ट्रीय राजनीति में सपा के हाथ कुछ ज्यादा नहीं आने वाला है। ज्यादा से ज्यादा कोई एक-आध महत्वपूर्ण विभाग ही उसे मिल सकता है। कांग्रेस को यूपी की राजनीति में कोई स्पेस (अवसर) देने का मतलब है कि सपा का ही नुकसान।

वह कहते हैं कि उड़ीसा में नवीन पटनायक की तर्ज पर सपा नेतृत्व भी यूपी में आगे बढ़ने की रणनीति पर काम करे तो बेहतर है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि आने वाले समय में सपा नेृतत्व दिल्ली की राजनीति की तुलना में यूपी की राजनीति पर और अधिक फोकस करते हुए मिलेगा। उसके निशाने पर भी केंद्र की बजाय भाजपा का प्रदेश नेतृत्व ज्यादा रहेगा।
बसपा से हाथ मिलाने में ज्यादा रुचि ले रही कांग्रेस
दरअसल यूपी में कांग्रेस, सपा से ज्यादा बसपा के नजदीक आना चाह रही है। पर विभिन्न कारणों से बसपा उससे हाथ मिलाने में रुचि नहीं ले रही है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी कह भी चुके हैं कि वे बसपा को आगे रखकर यूपी में गठजोड़ चाहते हैं। स्थानीय कांग्रेसी भी मानते हैं कि यूपी में बसपा का साथ मिलने से दलित व सामान्य वर्ग का समीकरण बनेगा, जो सीटों के लिहाज से काफी मुफीद साबित हो सकता है।

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