भौतिक सुख-सुविधाओं के जाल में फंसकर कुछ लोगों ने रकम उतनी ही तेजी से गंवा भी दी, जितनी जल्दी उन्हें मिली थी। वहीं, कुछ ने सही दिशा में निवेश किया। जितनी जमीन अधिग्रहण में गई या बेची, उससे अधिक क्षेत्रफल में उन्होंने सस्ती जमीन खरीद ली।
करीब ढाई-तीन दशक पहले जिस मोड़ पर एनसीआर खड़ा था, आज अपनी सीएम सिटी भी पहुंच गई है। शहर का दायरा बढ़ने के साथ ही आस-पास के गांवों की भी चमक बढ़ती जा रही है। सड़क समेत विभिन्न योजनाओं के तहत जमीन अधिग्रहण में मिला मोटा मुआवजा हो या फिर रियल इस्टेट कारोबारियों द्वारा तेजी से खरीदी जा रही जमीनों से पैसा बरस रहा है। शहर से सटे गांवों के तमाम लोगों की लाइफ स्टाइल बदल गई है।
कच्चे की जगह पक्के मकान खड़े हो गए तो दरवाजों पर गाय-भैंस की जगह अब बड़ी-बड़ी लग्जरी गाड़ियां शोभा बढ़ा रहीं हैं। हालांकि, भौतिक सुख-सुविधाओं के जाल में फंसकर कुछ लोगों ने रकम उतनी ही तेजी से गंवा भी दी, जितनी जल्दी उन्हें मिली थी। वहीं, कुछ ने सही दिशा में निवेश किया। जितनी जमीन अधिग्रहण में गई या बेची, उससे अधिक क्षेत्रफल में उन्होंने सस्ती जमीन खरीद ली।
अब उनकी भी कीमत तेजी से बढ़ रही है। वहीं कुछ ने खुद के रहने के लिए मकान बनवाने के साथ ही एक-दो मकान और बनवाकर किराए पर उठा दिए। अब उनकी नियमित आय भी हो रही। कुछ ने कारोबार शुरू कर दिया जिससे उनकी तो अच्छी आय हो ही रही, कई लोगों को रोजगार भी मिल रहा है।
एक दशक में 80 किलोमीटर से अधिक क्षेत्रफल में बढ़ा शहर
करीब डेढ़-दो दशक पहले तक पूरब दिशा में रामगढ़ताल के बाद यानी सहारा इस्टेट के बाद से गांव शुरू हो जाते थे जो अब कॉलोनियों का रूप ले चुके हैं। देवरिया रोड तक सड़क के दोनों तरफ एक-एक किलोमीटर से अधिक के दायरे में कॉलोनियां बस चुकी हैं। इसी तरह पश्चिम दिशा में सहजनवां तक शहर बस चुका है तो वहीं दक्षिण में जहां पहले नौसड़ के आगे से ही गांव का ग्रामीण परिवेश दिखने लगता था, अब पांच किलोमीटर आगे तक कॉलोनियां दिखाई पड़ रही हैं। उत्तर दिशा में भी मेडिकल रोड पर शहर का दायरा गुलरिहा के आगे तक तो गोरखनाथ रोड पर बालापार के आगे तक शहरी परिवेश दिखाई पड़ रहा है।
ये गांव हाल ही में निगम में शामिल हुए
सिक्टौर तप्पा हवेली, रानीडीहा, खोराबार उर्फ सूबा बाजार, जंगल सिकरी उर्फ खोराबार, भरवलिया बुजुर्ग, कजाकपुर, बड़गो, मनहट, गायघाट बुजुर्ग, पथरा, बाघरानी, गायघाट खुर्द, सेमरा देवी प्रसाद, गुलरिहा, मुंडिला उर्फ मुंडेरा, मिर्जापुर तप्पा खुटहन, करमहा उर्फ कम्हरिया, जंगल तिकोनिया नंबर-1, जंगल बहादुर अली, नुरुद्दीन चक, चकरा दोयम, रामपुर तप्पा हवेली, सेंदुली बिंदुली, कठवतिया उर्फ कठउर, पिपरा तप्पा हवेली, झरवा, हरसेवकपुर नंबर दो, लक्ष्मीपुर तप्पा कस्बा, उमरपुर तप्पा खुटहन, जंगल हकीम नंबर-2
आर्किटेक्ट आशीष श्रीवास्तव ने कहा कि जमीन से लोगों की भावनाएं जुड़ी रहती हैं। इसलिए, बहुत से लोग इसे बेचते नहीं हैं। मगर इससे नई या आने वाले पीढ़ी को कोई लाभ नहीं मिलेगा। यदि किसी के पास विशेषकर शहर से सटे क्षेत्रों में अतिरिक्त जमीन है तो वह उसे बेचकर समझदारी से निवेश करे तो वही नहीं उसकी आने वाली पीढ़ी भी तरक्की की राह पर दौड़ सकेगी।
कहा कि मसलन यदि प्राधिकरण या गीडा उद्योग के लिए जमीन अधिगृहीत करती है या फिर कोई कॉलोनाइजर वहां आवासीय या व्यावसायिक प्रोजेक्ट लाना चाहता है तो जमीन से मिले रुपये से उसी प्रोजेक्ट में खुद के रहने के लिए एक-दो फ्लैट सुरक्षित रखने के साथ ही क्षमता अनुसार दो-तीन या चार फ्लैट और लिए जा सकते हैं। जिसे किराए पर उठा देने पर संपत्ति तो अपनी बनी ही रहेगी, किराए से नियमित आय का जरिया भी तैयार हो जाएगा। इसी तरह छोटी-छोटी निर्माण इकाई खोलकर भी आय का नियमित साधन जुटाने के साथ ही कई लोगों को रोजगार भी दिए जा सकते हैं।