रिपोर्ट के अनुसार, मछलियों के भोजन और पानी में प्लास्टिक प्रदूषण बेहद खतरनाक स्तर पर है।भारत सरकार द्वारा प्रतिबंध के बावजूद नदियों व झीलों में सिंगल यूज श्रेणी का प्लास्टिक सबसे ज्यादा पहुंच रहा है।
विश्व की सबसे प्रदूषित 10 नदियों में शामिल गंगा में प्लास्टिक प्रदूषण क्या प्रभाव डाल रहा है, इसे दक्षिण बिहार केंद्रीय विवि और पटना विवि के अध्ययनकर्ताओं निशा कुमारी, देवेश यादव, परिमल कुमार व राम कुमार ने बताया। उन्होंने नदी में प्राकृतिक रूप से मिलने वाली मछलियों के 515 सैंपल लिए। उनकी मांसपेशियों, लिवर, गिल्स आदि की जांच की। उन्हें इनमें से 11 प्रतिशत या कहें हर 10 में से एक मछली में प्लास्टिक मिला। यह प्लास्टिक 3 से लेकर 56 तक छोटे-बड़े टुकड़ों में था। इसका औसत आकार 4 एमएम था। रिपोर्ट के अनुसार, मछलियों के भोजन और पानी में प्लास्टिक प्रदूषण बेहद खतरनाक स्तर पर है।
दक्षिण एशियाई देशों के तटों पर माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण पर फरवरी 2023 में मलयेशियाई अध्ययनकर्ताओं ने एक रिपोर्ट दी। इसमें दावा किया कि समुद्र में घुला प्लास्टिक भारत के तटों पर जहर के रूप में बढ़ रहा है। दक्षिण भारत के प्रमुख तटों का विश्लेषण कर बताया कि इन पर कई तरह का माइक्रोप्लास्टिक फैला है। सबसे बुरे हालात चेन्नई जैसे बड़े शहरों के किनारे मौजूद तटों पर हैं, जहां शहर और समुद्र दोनों तरफ से माइक्रोप्लास्टिक आ रहा है।
रिपोर्ट के अर्थ
अध्ययनकर्ताओं को चेन्नई, कर्नाटक, पुडुचेरी, केरल, ओडिशा और दक्षिण अंडमान तटों पर माइक्रो-प्लास्टिक मिला है। यह प्लास्टिक फाइबर, छोटे-बड़े टुकड़े, फिल्म, आदि के रूप में है।
हम पर असर
- तटों पर बढ़ता माइक्रोप्लास्टिक पर्यटन उद्योग को नुकसान पहुंचा सकता है। बड़ी संख्या में विदेशी पर्यटक भारतीय तटों का आनंद लेने आते हैं, लेकिन यहां प्लास्टिक प्रदूषण उनकी संख्या कम कर सकता है।
- दूसरा बड़ा नुकसान सेहत के लिए है। समुद्र तटों पर नमक का बड़ी मात्रा में उत्पादन होता है। इस नमक में माइक्रोप्लास्टिक घुल कर मानव शरीर में दाखिल हो रहा है
तमिलनाडु के अध्ययनकर्ताओं द्वारा जनवरी 2023 में जारी रिपोर्ट में बताया गया कि नमक में माइक्रोप्लास्टिक न केवल तेजी से बढ़ रहा है, बल्कि हमारे शरीर में दाखिल भी हो रहा है। नमक में पहली बार एक्रिलिक, एक्रेलोनाइट्राइल ब्यूटाडाइन स्टाइरीन (एबीएस), हाई डेंसिटी पॉलीएथिलीन (एचडीपीई), आदि माइक्रोप्लास्टिक मिलने की पुष्टि हुई है।
रिपोर्ट के अर्थ
- अध्ययनकर्ताओं ने तमिलनाडु के 8 जिलों से नमक के सैंपल जमा किए जिन्हें तटों पर समुद्र के पानी से बनाया गया था।
- जांच में पाया कि प्रति किलोग्राम 50 से ज्यादा प्लास्टिक के कण नमक में मौजूद हैं। यह फाइबर, नायलॉन, थर्मोप्लास्टिक और छोटे टुकड़ों के रूप में है। यह प्लास्टिक की बड़ी चीजों से टूट कर बनता है।
- प्लास्टिक के यह कण लगातार हमारे शरीर में दाखिल होकर हमारी आंतों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं। वे लंबे समय के दौरान गंभीर बीमारियों की वजह बन सकते हैं।
- इनकी काफी मात्रा शरीर में हमेशा के लिए बनी रह सकती है। कोशिकाओं में भी यह पहुंच सकते हैं।
आईआईएससी बैंगलोर की जनवरी 2023 में आई रिपोर्ट कहती है कि 2016-17 से 2019-20 तक भारत में प्लास्टिक का उपयोग हर साल 9.7 प्रतिशत की दर से बढ़ा। यह 1.4 करोड़ टन से बढ़कर 2 करोड़ टन पहुंच चुका है। इसमें से महज 34 लाख टन प्लास्टिक ही रिसाइकल हो रहा है। बाकी प्लास्टिक जमीन में दफनाया या नदी, झील और समुद्र में फेंका जा रहा है।
उल्का से बनी 52 हजार साल पुरानी झील पर भी खतरा
52 हजार साल पहले एक उल्का के पृथ्वी से टकराने पर महाराष्ट्र के बुलढाणा में लोणार झील बनी थी। यह देश में खारे पानी की पांच सबसे बड़ी झीलों में से एक है। अप्रैल में एनवायरनमेंटल साइंस एंड पॉल्यूशन रिसर्च जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट में अध्ययनकर्ताओं सचिन गोसावी और समाधान फुगे ने दावा किया कि इस झील के तल में माइक्रोप्लास्टिक की मात्रा 14.44 और सतह पर 2.66 कण प्रति किलो पहुंच चुकी है।
रिपोर्ट के अर्थ
- अध्ययन के अनुसार झील में 16 प्रकार के प्लास्टिक पहुंच चुके हैं, जिनमें पॉलिएस्टर से लेकर पॉलीप्रोपाइलीन, पॉलीविनाइल क्लोराइड, हाई और लो डेंसिटी पॉलिथाइलिन शामिल हैं।
- इसके लिए मानवीय गतिविधियों को जिम्मेदार बताया गया। यहां बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं, धार्मिक गतिविधियां भी होती हैं। इस दौरान छोड़ी गई प्लास्टिक की वस्तुएं लोनार झील में गिर रही हैं।
- पृथ्वी की ज्वालामुखी चट्टानों पर उल्का के टकराव से बनी महज चार में से तीन झीलें ब्राजील में हैं, लोणार झील चौथी है। इसमें प्लास्टिक प्रदूषण भारत में मौजूद ऐसी विरासत खत्म कर सकता है, जो पूरी दुनिया के लिए विलक्षण है।
- आईआईटी बॉम्बे द्वारा 2019 में दी गई रिपोर्ट कहती है कि इस झील के तल में मौजूद मिट्टी चंद्रमा की चट्टानों जैसी है, जिन्हें लाने के लिए अमेरिका और चीन करोड़ों डॉलर खर्च कर रहे हैं।
प्रदूषण जिस तेजी से फैल रहा है, उससे अनुमान है कि 2050 तक समुद्र में मछलियों से ज्यादा प्लास्टिक होगा। वैज्ञानिकों ने पाया कि बेहद छोटे रूप में प्लास्टिक खाद्य शृंखला में घुसपैठ कर हमारे शरीर में भी दाखिल हो रहा है। यही वजह है कि इस बार विश्व पर्यावरण दिवस पर प्लास्टिक की समस्या के समाधान की थीम रखी गई है।