सेबी ने कहा कि पारदर्शिता बढ़ाने वाले ऐसे अतिरिक्त कदमों की जरूरत है जिससे ऊंचे जोखिम वाले एफपीआई की पहचान हो सके। ऐसे जोखिम की पहचान विदेशी निवेशकों की होल्डिंग्स के आधार पर होगी।
अदाणी हिंडनबर्ग मामले के बाद बदले हालातों को देखते हुए सेबी विदेशी निवेशकों की हिस्सेदारी को लेकर अतिरिक्त निगरानी और सख्ती पर विचार कर रहा है। सेबी ने एक सलाहकार पत्र जारी किया है। इस पर सभी पक्षों से 20 जून तक सुझाव मांगा गया है। इससे सेबी यह सुनिश्चित करने की कोशिश में है कि कहीं भारतीय शेयर बाजार में सूचीबद्ध कंपनियों के मालिक विदेशी फंडों के जरिये अपने ही पैसे को वापस शेयरों में तो निवेश नहीं करा रहे हैं।
पेपर में कहा गया है कि एक सीमा से अधिक इक्विटी में निवेश करने वाले विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) को कुछ अतिरिक्त खुलासा करना होगा। साथ ही, शेयरों में जनता की न्यूनतम हिस्सेदारी नियमों के संभावित उल्लंघनों से बचाव के लिए एक फ्रेमवर्क भी बनेगा। सेबी का यह फोकस ऐसे एफपीआई पर है जिनके साथ निवेश से जुड़े जोखिम हैं।
होल्डिंग्स के आधार पर जोखिम की पहचान
सेबी ने कहा, पारदर्शिता बढ़ाने वाले ऐसे अतिरिक्त कदमों की जरूरत है जिससे ऊंचे जोखिम वाले एफपीआई की पहचान हो सके। ऐसे जोखिम की पहचान विदेशी निवेशकों की होल्डिंग्स के आधार पर होगी। इस आधार पर निवेशकों को कम जोखिम, मध्यम जोखिम या ऊंचे जोखिम की श्रेणी में रखा जा सकता है।
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- सरकारी फंड, सॉवरेन वेल्थ फंड, पेंशन और पब्लिक रिटेल फंड कम जोखिम के दायरे में रहेंगे। सेबी ने प्रस्ताव दिया है कि अगर कोई फंड खुलासों से बचना चाहता है तो वह 6 माह में किसी कंपनी में अपने निवेश को 50% से कम कर दे।
…तो बंद करना होगा कारोबार
सेबी ने सुझाव दिया कि जहां भी जरूरत हो, इस तरह के अतिरिक्त खुलासे करने होंगे। खुलाना नहीं करने वाले एफपीआई को 6 माह के अंदर कारोबार समेटना होगा।
ये खुलासे करने होंगे
एफपीआई को किसी भी मालिकाना हक, आर्थिक हित, या नियंत्रण अधिकारों के साथ सभी व्यक्तियों और/या सार्वजनिक रिटेल फंड या बड़ी सार्वजनिक सूचीबद्ध संस्थाओं का विस्तृत आंकड़ा देना होगा।
- जिस विदेशी निवेशकों के एसेट अंडर मैनेजमेंट का 50 फीसदी से अधिक हिस्सा किसी एक समूह में और भारतीय शेयर बाजार में 250 अरब रुपये से ज्यादा निवेश होगा, उन्हें अतिरिक्त खुलासा करना होगा।