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बिजली बिलों में हेराफेरी से निगमों को लगा करोड़ों का चूना, वसूली में भी दिक्कत, जांच के आदेश

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बिलों में हेराफेरी की वजह से हर साल करोड़ों के सरकारी राजस्व को नुकसान हो रहा है। एक तरफ बकाया बढ़ रहा है तो दूसरी तरफ उपभोक्ता भी परेशान हैं।

प्रदेश के विद्युत निगमों में बिजली बिल में बड़े पैमाने पर खेल चल रहा है। बिलों में हेराफेरी की वजह से हर साल करोड़ों के सरकारी राजस्व को नुकसान हो रहा है। एक तरफ बकाया बढ़ रहा है तो दूसरी तरफ उपभोक्ता भी परेशान हैं। एक के बाद एक मामले सामने आने के बाद कारपोरेशन अध्यक्ष ने जांच के आदेश दिए हैं।

प्रदेश में विद्युत निगम करीब एक लाख करोड़ के घाटे में चल रहे हैं। विद्युत वितरण निगम का उपभोक्ताओं पर करीब 60452 करोड़ रुपया बकाया है। इसमें सर्वाधिक 16738 करोड़ का बकाया दक्षिणांचल का है। इसी तरह पूर्वांचल का करीब 16512 करोड़, पश्चिमांचल का करीब 11515 करोड़, मध्यांचल का करीब 13607 करोड़ और केस्को का करीब 2080 करोड़ रुपया बकाया है। इसकी वसूली के लिए लगातार अभियान चलाने का दावा किया जा रहा है। इसके बाद भी वसूली नहीं हो पा रही है।

इसकी पड़ताल की गई तो कई चौकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। वसूली में हो रही देरी की एक बड़ी वजह बिजली बिलों में गड़बड़ी है। अभियंता अपने फायदे के लिए निर्धारित टैरिफ के बजाय गलत टैरिफ तय करते हैं। जहां औद्योगिक बिल जारी करना है वहां वाणिज्यिक श्रेणी में बिल जारी कर रहे हैं। इस तरह के मामले हर निगम में सामने आ रहे हैं। अकेले मध्यांचल में एक माह के अंदर 28 मामले सामने आए हैं। ऐसे में कारपोरेशन अध्यक्ष एम देवराज ने सभी निगमों के प्रबंध निदेशकों को जांच के आदेश दिए हैं। इस आदेश के बाद निगमों में हलचल मची हुई है। क्योंकि अभियंताओं की कारगुजारी सामने आ गई है।

उपभोक्ता परिषद ने हर सुनवाई में उठाया मामला
टैरिफ निर्धारण के लिए वाराणसी, आगरा, लखनऊ, नोएडा आदि स्थानों पर हुई जनसुनवाई में उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश वर्म ने लगातार यह मामला उठाया। उन्होंने सुझाव दिया था कि यदि उपभोक्ताओं की बिलिंग में सुधार लाया जाए तो वसूली की दर बढ़ जाएगी। क्योंकि गड़बड़ी की वजह से तमाम उपभोक्ता बिल नहीं जमा करते हैं। कुछ मामलों में अभियंताओं की संलिप्तता भी होती है, जिसकी वजह से बिल वसूली प्रभावित हो रही है।

क्या कहते हैं जिम्मेदार
जहां भी बिजली बिल में गड़बड़ी है, उसे तत्काल सुधार करने का निर्देश दिया गया है। इसके लिए जिम्मेदारों को चिन्हित किया जा रहा है। दोषियों के खिलाफ कार्रवाई होगी।
-एम देवराज, अध्यक्ष यूपीपीसीएल

केस 1
विद्युत वितरण खंड जलालाबाद शाहजहांपुर में आठ टॉवरों की बिलिंग औद्योगिक श्रेणी के टैरिफ के आधार पर की गई। बाद में इसे बदलकर वाणिज्यिक टैरिफ में किया गया। दोनों श्रेणी के टैरिफ में करीब एक से डेढ़ रुपये का अंतर होता है।

केस 2
लखनऊ के एक पंच सितारा होटल की बिलिंग एचवी 2 विधा में की गई। ऐसे में होटल पर करीब एक करोड़ 75 लाख का बकाया हो गया। बाद में इसे बदलकर एचवी 1 विधा में कर दिया गया। दोनों में डेढ़ रुपये का अंतर है।

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