स्टार्टअप से बिजनेसमैन बने हीरा ने बताया कि साल 2012 के दिसंबर महीने में अचानक तबीयत बिगड़ी तो डॉक्टर तो दिखाया। पता चला कि किडनी खराब हो गई है। अब समझ में नहीं आ रहा था कि आगे क्या करना है। डायलिसिस पर जाने से पहले मैचिंग किडनी घर में ही मिल गई।
हीरा की जिंदगी की चमक फीकी पड़ने लगी थी। किडनी फेल होने से हर पल तिल-तिल कर मर रहा था। उसी हीरा ने मौत को मात देकर नया जीवन पाया और देश के लिए स्वर्ण पदक जीता। चंडीगढ़ के हीरा सिंह दास्पा (38) ने 15 से 21 अप्रैल तक आस्ट्रेलिया के पर्थ में आयोजित वर्ल्ड ट्रांसप्लांट गेम में भाला फेंक (जेवलियन थ्रो) में पहला स्थान हासिल कर देश में चंडीगढ़ का मान बढ़ाया है। इस प्रतिस्पर्धा में विश्व के 47 देशों के एथलीट शामिल थे। हीरा ने इस जीत से साबित कर दिया है कि अंगदान के बाद एक सामान्य नहीं सामान्य से कहीं बेहतर जीवन जीया जा सकता है।
2012 में किडनी ने दिया धोखा
स्टार्टअप से बिजनेसमैन बने हीरा ने बताया कि साल 2012 के दिसंबर महीने में अचानक तबीयत बिगड़ी तो डॉक्टर तो दिखाया। पता चला कि किडनी खराब हो गई है। अब समझ में नहीं आ रहा था कि आगे क्या करना है। डायलिसिस पर जाने से पहले मैचिंग किडनी घर में ही मिल गई। मोहाली के एक निजी अस्पताल में मार्च 2013 में किडनी ट्रांसप्लांट हुआ। हीरा ने बताया कि ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ. प्रियदर्शी रंजन ने डॉक्टर के साथ एक दोस्त की तरह साथ दिया। हर छोटी से छोटी चीज की जानकारी दी।
बहन ने दिया नवजीवन
पांच भाई-बहन में सबसे बड़े हीरा को जब किडनी देने की बात आई तो बहन आशा ने एक पल में हामी भर दी। हीरा का कहना है कि आशा के साथ बचपन से ही उनकी एक अलग बॉडिंग रही है। जब मुसीबत आई तो उसने सबसे पहले साथ दिया। खास बात यह है कि हम दोनों भाई-बहन का ब्लड ग्रुप भी ए पॉजिटिव है। चंद ही दिनों में मेरा किडनी ट्रांसप्लांट हो गया। आशा भी बिल्कुल ठीक है।
जीजा और साले ने मिलकर कमाया नाम
भाई को अपनी किडनी देकर जान बचाने वाली आशा को भी ऐसा जीवन साथी मिला, जिसकी बहन ने उसे अपनी किडनी दी थी। हीरा के स्कूल के जूनियर उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिला निवासी अभिनव को भी किडनी संबंधी परेशानी हुई तो उनकी बहन ने अपनी किडनी दी। बहन के भाई को किडनी देने की बात का पता चलने पर अभिनव के परिवार ने आशा का हाथ अपने बेटे के लिए मांगा। दोनों परिवार रिश्ते में बंध गए। अभिनव और हीरा की जोड़ी भी जम गई। जीजा अभिनव और साले हीरा ने आस्ट्रेलिया में एक साथ दम दिखाया। हीरा ने गोल्ड तो अभिनव में रजत पदक हासिल किया। इसके अलावा अभिनव ने बैडमिंटन में कांस्य पदक जीता।
ट्रांसप्लांट गेम एक नजर में
वैश्विक स्तर पर हर दो साल पर आयोजित होने वाले इस खेल में इस वर्ष 47 देशों के 1500 एथलीटों ने भाग लिया। इसमें अंगदाता और अंग प्राप्तकर्ता दोनों ही शामिल हैं। ऑर्गन इंडिया पराशर फाउंडेशन के अंतर्गत भारत से 32 प्रतिभागी चयनित किए गए। इसमें 24 अंग प्राप्तकर्ता और 7 अंगदाता और एक अंगदाता परिवार शामिल था। चयनित प्रतिभागियों को साइकोलॉजी, फिजिकल, फूडिंग, स्पोर्ट्स का अलग-अलग प्रशिक्षण दिया गया। प्रतियोगिता में देश को 35 मेडल प्राप्त हुए हैं। मेडल प्राप्त करने वालों में 20 अंगदाता और 15 अंग प्राप्तकर्ता शामिल हैं। वहां उन्होंने बैडमिंटन, टेबल टेनिस, गोल्फ, टेनिस, बॉलिंग, एथलेटिक्स, 5 किमी रेस, साइकिल, फुटबॉल, स्वीमिंग, ट्राय एथलिन, वॉकथान और स्क्वैश जैसे खेल शामिल थे। अगला ट्रांसप्लांट गेम 2025 में जर्मनी में होगा।
देश को मिले इतने मेडल
अंगदान पाने वालों ने
स्वर्ण- 7
रजत- 6
कांस्य- 6
अंग देने वालों ने
स्वर्ण- 8
रजत- 5
कांस्य- 2
देश में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। जरूरत है प्रतिभावान लोगों को सहयोग करने की। अंगदान से जीवन पाने वाले और अंग देकर जीवन बचाने वाले हमारे समाज के लिए मिसाल हैं। वे विश्वस्तर पर मिसाल कायम कर रहे हैं। हमें उन पर गर्व है। – सुनयना सिंह, मुख्य कार्यकारी अधिकारी ऑर्गन (ऑर्गन रिसीविंग एंड गिविंग अवेयरनेस नेटवर्क) पराशर फाउंडेशन
ऑर्गन गेम जैसे कार्यक्रम अंगदान से जुड़े दाता और प्राप्तकर्ता को उत्साहित करने के साथ ही जागरूकता में भी अहम भूमिका निभाते हैं इसलिए इसे व्यापक स्तर पर सहयोग की जरूरत है, ताकि इससे जुड़े हर वर्ग के लोग इस प्रतियोगिता में भाग ले सकें। – प्रो. विपिन कौशल, चिकित्सा अधीक्षक व रोटो के नोडल अधिकारी पीजीआई