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मुख्य न्यायाधीश की शक्तियों को कम करने वाला विधेयक राष्ट्रपति ने दूसरी बार लौटाया, कही बड़ी बात

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राष्ट्रपति ने कहा कि कानून की सक्षमता और विधेयक की वैधता का मामला अब देश के सर्वोच्च न्यायिक मंच के समक्ष विचाराधीन है। इसके संबंध में, आगे कोई कार्रवाई वांछनीय नहीं है।

पाकिस्तान में प्रधान न्यायाधीश के अधिकारों में कटौती करने वाला विधेयक राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने बुधवार को दूसरी बार संसद को लौटाते हुए कहा कि मामला अब विचाराधीन है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, राष्ट्रपति ने कहा कि कानून की सक्षमता और विधेयक की वैधता का मामला अब देश के सर्वोच्च न्यायिक मंच के समक्ष विचाराधीन है। इसके संबंध में, आगे कोई कार्रवाई वांछनीय नहीं है।

पिछले हफ्ते सदन में विधेयक पास होने के बाद इसे राष्ट्रपति के पास भेजा गया था लेकिन राष्ट्रपति ने विधेयक वापस भेजते हुए कहा कि यह कानून संसद की क्षमता से परे है।  इससे पहले दिन में प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने कहा था कि यदि संसद ने प्रधान न्यायाधीश की शक्तियों को कम करने के लिए कानून नहीं बनाया, तो ‘इतिहास हमें माफ नहीं करेगा।
गौरतलब है कि विधेयक का संसद में पेश होना और प्रधानमंत्री शरीफ का यह बयान ऐसे समय आया, जब पाकिस्तान के उच्चतम न्यायालय के दो न्यायाधीशों ने देश के शीर्ष न्यायाधीश की स्वत: संज्ञान लेने की शक्तियों पर सवाल उठाया।

बिल को 10 अप्रैल को संसद की संयुक्त बैठक में कुछ संशोधनों के साथ फिर से पारित किया गया और राष्ट्रपति को भेजा गया था। लेकिन संसद के संयुक्त सत्र से विधेयक के पारित होने के तीन दिन बाद, सीजेपी उमर अता बंदियाल सहित सुप्रीम कोर्ट की आठ सदस्यीय पीठ ने एक आदेश जारी किया, जो कानून बनने के बाद सरकार को विधेयक को लागू करने से रोकता है।

पीठ ने पाया कि प्रथम दृष्टया प्रस्तावित कानून ने शीर्ष अदालत की अपने नियम बनाने की शक्तियों का उल्लंघन किया है और यह अदालत द्वारा सुनवाई के योग्य है। विधेयक में कहा गया है कि शीर्ष अदालत के समक्ष हर मामले या अपील को मुख्य न्यायाधीश और दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों की एक समिति द्वारा गठित पीठ द्वारा सुना और निपटाया जाएगा। इसमें कहा गया है कि समिति के फैसले बहुमत से लिए जाएंगे।

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