राजनीति और ब्यूरोक्रेसी में सब कुछ सार्वजनिक है, पर्सनल कहकर आप बच नहीं सकते। दोनों ही फील्ड में चाहे दिखावे के लिए ही सही लेकिन सादगी से रहना पड़ता है, अन्यथा आपका निगाहों में आना और तरह-तरह की गॉसिप का शिकार होना तय है।
एक महिला अफसर ने सीनियर्स की सादगी वाली सलाह को नहीं माना तो अब चर्चाओं के केंद्र में है। सचिवालय में तैनात महिला अफसर के पर्स के ब्रांड पर किसी की निगाह पड़ गई, लगे हाथ फोटो खींच लिया। पूरी जांच पड़ताल भी हो गई। पर्स एलवी कंपनी का पाया गया।
अब फैशन ब्रांड की समझ रखने वाले एलवी का भाव जानते ही होंगे। अब इतना बड़ा ब्रांड लखटकिया ही होगा। हालांकि लाखों की सैलरी वाले अफसरों के लिए यह ब्रांड बड़ी बात नहीं है, लेकिन अब सार्वजनिक क्षेत्र में काम करने वाले तो सबकी निगाह में रहते ही हैं तो चर्चा शुरू हो गई।
इस पूरी चर्चा पर एक पक्ष यह भी है कि कोई अफॉर्ड कर सकता है तो गलत क्या है, बात सही है लेकिन फिर भी सादगी वाला पॉइंट ध्यान में रखना ही होगा। महंगे ब्रांड का पर्स कोई सिविल सर्वेंट रखेगा तो चर्चा होना स्वाभाविक है।
राजस्थान से नाम काटा तो महिला नेता दिल्ली से जुड़वा लाई
सत्ताधारी पार्टी में शह और मात का खेल चलता ही रहता है। मामला चाहे पीसीसी मेंबर का हो या एआईसीसी मेंबर बनने का, बिना जोर आजमाइश और खेमेबंदी के कुछ नहीं होता। एक साधारण सी महिला नेता ने बड़े नेताओं को पहुंच का अहसास करवा दिया।
हुआ यह कि महिला नेता का नाम एआईसीसी मेंबर की लिस्ट में राजस्थान से नहीं भेजा गया। महिला नेता ने अपने सियासी पावर का इस्तेमाल किया। जो लोग नाम काटकर खुश थे, वो लिस्ट आते ही हैरान रह गए, जिसका नाम काटा था उसे भी मेंबर बना दिया था।
इसीलिए कहा जाता है कि सत्ताधारी पार्टी में चाहे जनाधार कम हो या बिल्कुल नहीं हो तो भी चल जाएगा, लेकिन दिल्ली पर पकड़ होना जरूरी है। दिल्ली मजबूत है तो सब ठीक है। यह बात कई कर्ता धर्ताओं कारे महिला नेता ने अच्छी तरह समझा दी है।
सरहदी नेताजी ने मुखिया से क्या कहा?
सत्ताधारी पार्टी के सरहदी जिले वाले नेताजी कई दिन से प्रदेश के मुखिया को लेकर हमलावर थे। पिछले दिनों प्रदेश प्रभारी के साथ सरहदी नेताजी ने प्रदेश के मुखिया से मुलाकात की। लंबी मुलाकात चली। बताया जाता है कि सरहदी नेताजी ने जमकर अपने मन की खरी खोटी बातें सुनाई।
सियासी गुणी—दुर्गुणीजन इस मुलाकात को डिकोड करने में लगे हैं। इस मुलाकात का एक रिज्ल्ट तो सामने आया है कि सरहदी नेताजी ने मुखिया पर हमले बंद कर दिए हैं, लेकिन उनके तेवर बरकरार हैं। यह तय है कि उनका दर्द ऐसे ही नहीं जाने वाला है।
आगे अब सीहदी नेताजी के रुख र निगाह रहेगी क्योंकि सियासत में जो दिखता है वह होता नहीं , बिटविन द लाइन कुछ न कुछ मामला तो है।
नकली पास बनाकर अधिवेशन में पहुंचे नेताजी की फजीहत
रायपुर में सत्ताधारी पार्टी के अधिवेशन में खूब गहमागहमी रही। अधिवेशन में जाने को लेकर बहुत से नेता गफलत में रहे, क्योंकि इसमें जाने के लिए पात्र नेताओं की लिस्ट ऐनवक्त पर बनी। इस गफलत में कई अपात्र पहुंच गए और कई पात्र छूट गए।
एक अति उत्साही नेताजी बिना पास के ही रायपुर पहुंच गए। दिखाने के लिए नकली पास बनवा लिया, लेकिन अधिवेशन की जिम्मेदारी संभालने वालों की निगाह से बच नहीं सके। नेताजी का पास नकली पाया गया, उन्हें अधिवेशन से बाहर निकाल दिया गया। यह सब कइयों ने देखा।
अब राजनीति में यश अपयश, आदर-अनादर तो चलता ही रहता है। इसीलिए किसी ने ठीक ही कहा है कि सियासत में बेइज्जती प्रूफ होना जरूरी है, तभी तो इतना कुछ होने के बावजूद नेताजी ने दिल पर बिल्कुल नहीं लिया।
सत्ता के नजदीकी के फोन से नाराज हुए एडीशनल एजी केस से हटे
सत्ता के आसपास क्या क्या नहीं होता। आप अगर सत्ता केंद्र में दखल रखते हैं तो कागजों में ही सही लेकिन दिन को रात और रात को दिन करवा सकते हैं।
ऐसे ही एक मामले में सत्ता के नजदीकी कानूनी सलाहकार ने एक एडिशनल एडवोकेट जनरल को फोन लगाकर एक केस की सही पैरवी नहीं करने का आरोप लगा दिया। जिसे फोन किया वे इस तरह की बातें सुनने के आदी नहीं हें, क्येंकि पढ़े लिखे वकील हैं।
तुरंत एडवोकेट जनरल को चिट्ठी लिखकर उस केस की पैरवी से इनकार कर दिया। मामला एक नर्सिंग कॉलेज से जुड़ा बताया जा रहा है। सत्ता के नजदीकी चाहते थे कि कॉलेज की मान्यता रद्द हो, लेकिन कानूनी ग्राउंड ऐसा था नहीं, इसलिए कोर्ट से सरकारी एक्शन पर स्टे मिल गया।
अब स्टे हट नहीं रहा, क्योंकि जिस ग्राउंड पर सरकार एक्शन लेना चाहती है वह कमजोर है। सत्ता के नजदीकी कानूनी ग्राउंड से परे जाकर उसे सबक सिखाना चाहते हैं, पढ़े लिखे वकील ने कानून के दायरे का हवाला दिया तो ठीक से पैरवी नहीं करने का आरोप लगा दिया। विवाद की जड़ यही है।
फिर हाईकमान तक पहुंचाए मंत्री-विधायकों के कारनामों के सबूत
सत्ता अपने साथ कई तरह की नेता सुलभ कमजोरियां लेकर आती हैं, इन नेता सुलभ कमजोरियों के शिकार मंत्री,विधायक नहीं हों तो और कौन होगा? पार्टी से लेकर सत्ता के गलियारों तक मंत्री—विधायकों के कारनामों की कई दिन से चर्चाएं हो रही थीं।
खेमेबंदी के कारण मंत्री,विधायकों के नेता सुलभ कारनामों की लिस्ट बन गई। कई तरह की गड़बड़ियों के सबूतों के कागज नए सिरे से हाईकमान तक पहुंचाए गए हैं। पहले भी हाईकमान तक दस्तावेजी सबूतों के साथ शिकायतें गई थीं। अब ताजा मामले में फिर सबूत पहुंचाए गए हैं।
इस बार मंत्रियों के अलावा कई विधायकों की भी शिकायत की गई है। पिछले दिनों कैबिनेट की बैठक में भी इसका जिक्र हुआ तो सियासत के जानकारों को खटका हुआ। इस बार मामला साधरण नहीं है, जानकार बता रहे हैं कि बाकायदा प्लानिंग के सााथ सियासी केस तैयार किया गया है, ताकि जरूरत के वक्त काम आए।
पुराने सियासी पंडित मानते हैं कि सियासत में राज वहीं करता है जो हर समर्थक और विरोधी की फाइल बनाकर रखे, जरा भी ऊंच-नीच होने पर फाइल का जिक्र करने की देर है, सारे समीकरण सध जाते हैं।
इलेस्ट्रेशन : संजय डिमरी
वॉइस ओवर: प्रोड्यूसर राहुल बंसल