‘नहीं, मुझे भी अपने घर जाना है…।’
यह शब्द किसी जिद्दी बच्चे के नहीं… नौ साल की उस बच्ची के हैं, जो मां-बाप के होते हुए भी पांच-छह साल से अनाथों की तरह रह रही है। एक अनाथालय में…। अपने मां-बाप के अपराध के कारण…। जिन्होंने इसकी छोटी बहन को कथित विकृत रूप में जन्म लेने पर मार डाला। उसे अनाथ की तरह रहने के लिए मजबूर कर दिया।
दरअसल, जनवरी 2015 में इंदौर में एक साधारण परिवार में दूसरी बेटी की किलकारी गूंजी थी। अस्पताल में खुशी थी, लेकिन मां-बाप दुखी थे। तीन साल की एक बेटी पहले से ही थी, फिर एक और बेटी पैदा हो गई। उसे देखकर उन्हें दुख, पीड़ा नहीं थी, बल्कि गुस्सा ज्यादा था। वजह- जन्म से उसका एक कान ही नहीं था। इस कुदरती फैसले को दोनों बोझ समझ बैठे। जन्म के बाद से ही उसे देखकर दोनों उसे नजर दिखाते थे। यही बात होती थी कि एक बेटी को तो पाल लेंगे, इसे कैसे जिंदा रखेंगे। इसका एक कान भी नहीं है। क्या करेगी बड़ी होकर। कोई शादी भी नहीं करेगा इससे…।
उनकी यही दिमागी दरिंदगी एक दिन इस हद तक चली गई कि बिना कान के जन्म लेने वाली अपनी ही बेटी को इन्होंने घर में संडासी से मार डाला। फिर बाहर जाकर एक गोदड़ी में लपेटकर फेंक दिया।
अदालत ने छोटी बेटी को इस तरह मार डालने के जुर्म में इन मां-बाप को उम्रकैद की सजा दी है। बड़ी बेटी चौथी कक्षा की परीक्षा दे रही है, वह एक आश्रम में है। उसे एहसास भी नहीं है कि उसके मां-बाप ने क्या किया, अदालत ने उन्हें ऐसी सजा सुनाई है कि उसे बरसों बरस और अनाथों की तरह ही रहना है।
मां-बाप ने बचने के लिए डबल निमोनिया बताया, पर न गुमशुदगी कराई न अंतिम संस्कार
तीन महीने की बच्ची की निर्मम हत्या के बाद लावारिस हालत में उसे फेंक दिया गया था। आरोपी मां संगीता रावल और पिता पप्पू निवासी विनोबा नगर खजराना बेफ्रिक से हो गए, लेकिन आसपास के लोगों ने जब बच्ची का शव देखा तो पहचान उजागर हो गई। 24 घंटे में ही खुलासा हुआ कि यह शव किसकी बच्ची का है।
संगीता और पप्पू से इस बारे में पूछताछ हुई ताे वे पहले तो निमोनिया को कारण बताने लगे। फिर बातें घुमाईं, लेकिन अदालत में यह साबित हुआ कि यदि निमोनिया से मौत होती, तो कोई भी मां-बाप अपने बच्चे का सही तरीके से अंतिम संस्कार करते, यूं फेंक नहीं देते। इस आधार पर भी कोर्ट ने सख्ती से फैसला दिया। आरोपियों ने बच्ची की गुमशुदगी तक नहीं दर्ज कराई। यही सबसे बड़ा संदेह का कारण बना।
डिलीवरी कराने वाली दाई मुख्य गवाह थी, वह भी पलट गई
इस कहानी मुख्य किरदार है बुंदा बाई। जिसने बच्ची की डिलीवरी कराई थी। इसने पुलिस को बताया था कि डिलीवरी उसी ने कराई थी और बच्ची का एक कान नहीं था। उसी के आधार पर पुलिस आरोपी मां-बाप तक पहुंची थी, लेकिन अदालत के सामने वह पलट गई। उसने कह दिया कि उसे ध्यान नहीं। इसके बावजूद डीएनए रिपोर्ट में यह साबित हो गया कि मां-बाप वही है जो बुंदा बाई ने बताए हैं, उससे इनकी बयान पलटने की बात पकड़ी गई।
पढ़िए, मां-बाप के गुनाहों की सजा भुगत रही बड़ी बहन की जिंदगी
अपनी छोटी बहन की हत्या के कातिल मां-बाप की सजा बड़ी बेटी भोग रही है। पिछले पांच साल में वह आश्रम में अनाथों के बीच है। आश्रम के केयर टेकर से जब भास्कर ने मासूम बच्ची के बारे में बात की तो पता चला कि उसे इस बात की जानकारी नहीं है कि उसके माता-पिता जेल में किस तरह के गुनाह के लिए जेल हैं। जब दोनों को पुलिस ने 6 साल पहले गिरफ्तार किया था, तब इस बच्ची की उम्र महज तीन साल थी। उसे यह भी नहीं पता कि दो दिन पहले अदालत ने उसके माता-पिता को ताउम्र कैद सुनाई है।
आश्रम के केयर टेकर ने बताया कि मासूम बच्ची अभी एमपी बोर्ड की चौथी कक्षा में है। हालांकि, पढ़ने में बहुत होशियार है। इसे साल में दो बार कोर्ट के आदेशानुसार उसके माता-पिता से मिलवाने के लिए केंद्रीय जेल इंदौर ले जाया जाता है। वहां भी वो हमेशा दोनों से साथ चलने की ही जिद करती है।
आश्रम में भी बातचीत के दौरान कहती है कि मैं अपने मम्मी-पापा के साथ अपने घर में रहना चाहती हूं। उसे यह अहसास नहीं कि उसके मां-बाप ने जो जुर्म किया है, उसमें यह संभव नहीं है।
क्यों मां-बाप ने ही मार डाला था तीन महीने की मासूम को…
खजराना इलाके के मुमताज नगर में रहने वाले संगीता और पप्पू रावल के यहां जनवरी 2015 में दूसरी बेटी ने जन्म लिया। मां मजदूरी करती थी और पिता एक होटल में कुक था। आर्थिक तंगी के चलते डिलीवरी घर में ही दाई के जरिए कराई गई, लेकिन दूसरी भी बच्ची के पैदा हो जाने के बाद से ही पिता पप्पू उससे नफरत करने लगा। इसका कारण यह था कि दुधमुंही बच्ची का जन्म से ही एक ही कान का होना भी था।
पिता को लगता था कि आगे उसके पालन-पोषण और इलाज में बहुत ज्यादा खर्च होगा। उनकी एक बड़ी बेटी पहले ही से थी। ऐसे में पिता हर समय बच्ची को कोसता रहता था। एक बच्ची पहले से ही थी।
बच्ची को लेकर आए दिन होता था विवाद
आर्थिक तंगी के चलते पति-पत्नी ने अबोध बालिका को किसी डॉक्टर को नहीं दिखाया। बच्ची का एक ही कान होने से पिता उससे नफरत करता था। स्थिति यह हो गई कि बच्ची को लेकर दोनों के बीच आए दिन विवाद होने लगे। इस दौरान मारपीट भी होने लगी। बच्ची को भूखा-प्यासा रखा जाता।
16 मार्च 2015 की रात बच्ची को लेकर फिर माता-पिता में जमकर झगड़ा हुआ। पिता ने संडासी उठाकर बच्ची के सिर पर जोरदार वार कर दिया। इससे बच्ची की मौके पर ही मौत हो गई। इसके बाद पति ने पत्नी को कहा कि लाश को बाहर जाकर ठिकाने लगा दो। फिर पत्नी ने बेटी के शव को गोदड़ी में लपेटा और कचरे के ढेर में फेंक दिया। अगले दिन लोगों ने शव को देखा तो पुलिस को सूचना दी।
पुलिस ढूंढ़ती रही कातिल, दाई से ही मिला क्लू
पोस्टमॉटर्म रिपोर्ट में डॉक्टरों ने बताया कि कोई भारी वस्तु से सिर पर प्रहार किया गया है। इस पर पुलिस की जांच कुछ आगे बढ़ी और अज्ञात के खिलाफ हत्या और साक्ष्य मिटाने का का केस दर्ज किया गया। पुलिस ने तीन महीने पहले क्षेत्र के अस्पतालों में हुई डिलीवरी की जानकारी निकाली तो वहां ऐसी कोई बच्ची नहीं मिली जिसका जन्म से एक कान न हो। फिर पुलिस ने दाइयों और मालिश करने वाली महिलाओं की जानकारी निकाली तो आखिर पहला क्लू मिल ही गया। एक बुंदा नामक दाई ने बताया कि तीन माह पहले एक कान वाली बच्ची संगीता-पप्पू रावल दंपती के यहां घर में हुई थी। मैंने ही यह डिलीवरी कराई थी।
माता-पिता को खोजने में निकल गए 11 महीने
बस यही से पुलिस की दिशा तय हो गई। पुलिस मुमताज नगर में एक घर पर गई तो मकान मालिक ने बताया कि वे 11 महीने पहले ही मकान खाली करके कहीं चले गए थे। पुलिस ने अलग-अलग माध्यमों से आखिर उन्हें विनोबा नगर में तलाश लिया और पकड़ा तो उन्होंने सारी सच्चाई उगल दी। माता-पिता की डीएनए रिपोर्ट, दाई सहित कई गवाह, पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट, पंचनामा सहित कई साक्ष्य कोर्ट में पेश किए गए।
कोर्ट में गुनाह साबित करने ये सबूत रहे अहम
एडिशनल डीपीओ अविसारिका जैन ने बताया कि बयान में दाई अपने बयान (एक कान वाली बच्ची) से पलट गई थी, लेकिन अन्य एविडेंस काफी मजबूत थे। इसके चलते माता-पिता पर दोष सिद्ध हुआ। वे हत्या करने के साथ साक्ष्य मिटाने के भी दोषी पाए गए।
- बच्ची के माता-पिता ने उसकी गुमशुदगी दर्ज नहीं कराई थी। इस पर वे शंका के घेरे में आए।
- तीन महीने की बच्ची की कौन और क्यों हत्या करेगा, यह बिंदु जांच में खास रहा। इसके चलते शक की सुई माता-पिता की ओर गई और पुलिस पूछताछ में उन्होंने हत्या कबूली।
- माता-पिता की पॉजिटिव डीएनए रिपोर्ट सबसे बड़ा सबूत था।
- पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में सिर पर चोट से बच्ची की मौत होना सामने आया। पोस्टमॉर्टम करने वाले डॉक्टर का बयान अहम रहा।
- मुख्य गवाह बुंदा भले ही होस्टाइल हो गई हो, लेकिन फोरेंसिक रिपोर्ट में भी परिस्थितिजन्य साक्ष्य काफी मजबूत रहे।
क्या कहते हैं ENT एक्सपर्ट…
एक कान की सुनने की क्षमता से भी जी सकते हैं
डॉ. एसके जेथलिया (ENT) के मुताबिक एक कान से पैदा होने वाली एबनॉर्मलिटी के केस मेडिकल लिटरेचर में बहुत कम होते हैं। मेडिकल में इसे Congenital Anomaly (जन्मजात विसंगति) रहते हैं। अगर एक कान न भी हो तो दूसरे कान में हियरिंग की क्षमता रहती है। फर्क इतना है कि कोई भी ध्वनि या आवाज इंसान दोनों कानों से सुनता है। एक कान से सुनने से हियरिंग क्षमता कुछ कम रहती है। इसका यह मतलब नहीं है कि बिल्कुल नहीं रहती।
अगर किसी का एक कान (बाहरी या अंदरूनी तौर पर) नहीं है तो उससे पूरी जिंदगी प्रभावित नहीं होती। कई केसों में एक उम्र के बाद व्यक्ति की एक कान की सुनने की क्षमता चलती जाती है तो किसी की दोनों कानों से ही। कान की नसों की कमजोरी से भी सुनने की क्षमता प्रभावित होती है। अगर जन्म से कान से हियरिंग हो तो भी जिंदगी अच्छे से बिताई दा सकती है। हियरिंग से लाइफ की एक्सपेक्टेशन का कोई संबंध नहीं है।