हजारों मील तक फैले रेगिस्तान का एक जिला है बाड़मेर। जिले के नाम से ही जेहन में रेतीले धोरे आते हैं, लेकिन अब यहां अनार के झाड़ लहलहा रहे हैं।
12 साल में एक किसान ने इलाके की तस्वीर बदल दी है। तीसरी क्लास पास किसान ने मुंबई में रसोइया बना, दिल्ली में बैंक के गार्ड की नौकरी की।
पिता के साथ बाड़मेर में जीरा-इसबगोल बोया। फिर 2010 में अनार की खेती की। अब एक सीजन से कमाई 90 लाख रुपए तक पहुंच गई है।
म्हारे देस की खेती में इस बार बात बाड़मेर के किसान निंबाराम पटेल की।
बाड़मेर शहर से दक्षिण-पूर्व में करीब 80 किलोमीटर चलने पर एक कस्बा है-गुड़ामालानी। कभी जीरे और इसबगोल के लिए गुड़ामालानी की पहचान थी।
रेगिस्तान की यही फसलें मौसम के अनुकूल भी हैं। यहां के किसान निंबाराम पटेल (38) ने 2010 में अपने खेत में अनार की पौध लगाई। तीन साल बाद 2013 से उन्हें उपज मिलने लगी। अब 10 साल में गुड़ामालानी की पहचान अनार बन गया है।
12-13 साल से निंबाराम बाड़मेर में अनार उगा रहे हैं। फोटो गुड़ामालानी (बाड़मेर) में किसान के पैकिंग फार्म की है।
12-13 साल से निंबाराम बाड़मेर में अनार उगा रहे हैं। फोटो गुड़ामालानी (बाड़मेर) में किसान के पैकिंग फार्म की है।
तीसरी क्लास तक पढ़ा, मुंबई में नौकरी की
निंबाराम पटेल ने बताया कि वे तीसरी क्लास पास हैं। पैतृक गांव गुड़ामालानी तहसील का सिंदासवा गांव है। पिता भूराराम पटेल परंपरागत खेती किया करते थे।
खुद का खेत नहीं था इसलिए बंटाई (हिस्सेदारी) पर दूसरे के खेतों में जीरा-इसबगोल उगाया करते थे। तीसरी क्लास तक पढ़ाई करने के बाद निंबाराम ने पढ़ाई छोड़ दी।
2-3 साल पिता के साथ खेती की। फिर होश संभाला तो मजदूरी करने मुंबई चले गए। छोटा भाई घर में पिता का हाथ बंटाता। निंबाराम 3-4 साल मुंबई में नौकरी करते रहे।
मुंबई से गुड़ामालानी लौटे तो शादी हो गई। पिता की तरह वे भी दूसरों के खेतों में मेहनत कर जीरा-इसबगोल उगाने लगे।
निंबाराम ने बताया कि कुछ वक्त बाद में ड्रिप इरिगेशन का काम करने लगे। मैटेरियल लेने एक बार गुजरात गए।
वहां लाखनी गांव में पटेल समाज का एक बगीचा देखा। बगीचा देखकर उन्हें खेती में नवाचार का विचार आया। इसके बाद लाखनी से ही वे अनार के 1000 पौधे लाए और अपने खेत में लगा दिए।
निंबाराम खुद खेती का काम संभालते हैं। कई मजदूर भी लगा रखे हैं। वे इलाके के किसानों को भी अनार की खेती से जोड़ रहे हैं।
निंबाराम खुद खेती का काम संभालते हैं। कई मजदूर भी लगा रखे हैं। वे इलाके के किसानों को भी अनार की खेती से जोड़ रहे हैं।
निंबाराम ने कहा कि पिता अब पुश्तैनी गांव सिंदासवा में रहते हैं। छोटा भाई भी वहीं है। वहां उन्होंने 2000 पौधे अनार के लगा रखे हैं। पूरा परिवार अब अनार की खेती में लगा है।
निंबाराम ने कहा कि अनार के पौधे में 3 साल बाद फल आने शुरू होते हैं। यूं तो 2 साल बाद ही फल आने लगते हैं लेकिन यह फल वीआईपी नहीं होता। 3 साल बाद ही अच्छे फल आते हैं।
एक सीजन में 90 लाख तक कमाई
उन्होंने बताया कि 2010-11 में 2 हेक्टेयर जमीन पर अनार के पौधे लगाए तो 2013 में पहली खेप से 3 लाख की आय हुई। दूसरे सीजन में 5 लाख।
इस तरह से 1000 पौधों से 7-8 लाख एवरेज इनकम होने लगी। आज निंबाराम के पास 10 हेक्टेयर जमीन पर अनार के 8 हजार पौधे लगे हैं। सारा खर्च निकाल कर एक सीजन में कमाई होती है 80 से 90 लाख के बीच।
इस साल (15 फरवरी तक) अनार की 135 टन पैदावार हुई है। इस सीजन में कमाई 75 लाख रुपए हुई है। निंबाराम हर साल नासिक-मालेगांव इलाके से 1000 पौधे अनार के लाते हैं और दूसरे किसानों को अनार की खेती के लिए प्रेरित करते हैं।
बाड़मेर के गुड़ामालानी में किसान निंबाराम पटेल बूंद-बूंद सिंचाई कर अनार की खेती कर रहे हैं। तीसरी क्लास पास किसान ने मुंबई में रसोइये की नौकरी की, बैंक में गार्ड रहे।
निंबाराम का कहना है कि वे कोशिश कर रहे हैं कि दूसरे किसान भी अनार की खेती करें। जिससे कि पूरा एरिया अनार के हब के रुप में डेवलप हो सके।
निंबाराम का कहना है कि वे कोशिश कर रहे हैं कि दूसरे किसान भी अनार की खेती करें। जिससे कि पूरा एरिया अनार के हब के रुप में डेवलप हो सके।
गांव में लौटकर अनार ने किस्मत बदली
निंबाराम ने बताया कि 14-15 साल की उम्र में मुंबई में एक सेठ के घर रसोइये का काम किया। वहां 3 साल काम किया। फिर गांव लौट आया। उस समय पिता भूराराम के पास 2 हेक्टेयर (12 बीघा) जमीन थी। पिता के साथ उस जमीन पर जीरे-इसबगोल की खेती शुरू की।
पानी के लिए 13 किलोमीटर तक बेरे से पाइप लाइन बिछाई। इतनी मेहनत के बाद भी अच्छी उपज नहीं होती थी। 2006 तक खराब पैदावार की वजह से निराश हो गया। इसी साल ग्रुप फॉर सिक्योरिटी दिल्ली की कंपनी में बैंक में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी कर ली। दिल्ली में 2 साल गार्ड का काम किया। सैलरी इतनी कम थी कि गुजारा मुश्किल। कंपनी छोड़ दोबारा गांव आ गया।
किसान निंबाराम हर साल 1000 नए पौधे लगाते हैं। इससे हर साल अनार का 35-40 टन उत्पादन बढ़ रहा है।
किसान निंबाराम हर साल 1000 नए पौधे लगाते हैं। इससे हर साल अनार का 35-40 टन उत्पादन बढ़ रहा है।
परिवार को अनार का बगीचा दिखाने गुजरात ले गया
किसान निंबाराम ने बताया कि साल 2008 में मैं गुजरात के लाखनी गांव गया। वहां अनार का बगीचा देखा। बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति से खेती की जा रही थी। तब ठाना कि बाड़मेर में अनार उगाऊंगा। पिता को इस बारे में बताया को उन्होंने इनकार कर दिया। उन्हें मनाने के लिए पूरे परिवार को लाखनी लेकर गया और अनार के बगीचे दिखाए। बात जंच गई।
बाड़मेर के गुड़ामालानी में तैयार अनार निंबाराम के फार्म हाउस पर ही कार्टन में पैक होता है। यहां से माल गुजरात की मंडियों में जाता है।
बाड़मेर के गुड़ामालानी में तैयार अनार निंबाराम के फार्म हाउस पर ही कार्टन में पैक होता है। यहां से माल गुजरात की मंडियों में जाता है।
फर्स्ट टाइम 1 हेक्टेयर में लगाए 1000 पौधे
किसान निंबाराम ने बताया कि अनार की पौध खरीदने का पैसा नहीं था। कुछ रिश्तेदारों से पैसा उधार लेकर 2010-11 में लाखनी (गुजरात) से 25 हजार रुपए के 1000 अनार के पौधे लाया। राजकोट से 35 हजार रुपए में ड्रिप का सामान लाया।
अनार के कुछ पौधे नासिक-मालेगांव से भी लाया। गुजरात के गेनाभाई पटेल ने खेती लगाने में मदद की। एक हेक्टेयर जमीन पर 8X13 फीट के गैप से 1000 पौधे लगाए। ड्रिप इरिगेशन से पानी की व्यवस्था की। अनार के लिए कम पानी की जरूरत होती है।
किसान निंबाराम के अनार के खेत। इस सीजन का अनार।
किसान निंबाराम के अनार के खेत। इस सीजन का अनार।
पहली पैदावार मिली ढाई साल बाद
किसान का कहना है कि साल 2010-11 में अनार की खेती करने के बाद करीब ढाई साल बाद साल 2013 में 9 टन अनार की पैदावार हुई। पहली बार कमाई 3 लाख रुपए हुई। इसके अगले सीजन में 5 लाख कमाए। बाद से हर साल पैदावार बढ़ती गई। साल 2022 में करीब 95 टन पैदावार हुई और 45 लाख रुपए कमाए। इस साल (2022-23) 135 टन पैदावार हुई है और 75 लाख रुपए कमाई हुई है।
2 हेक्टेयर से 10 हेक्टेयर में की अनार की खेती
निंबाराम अब 10 हेक्टेयर में अनार उगा रहे हैं। 5 हेक्टेयर जमीन आलपुरा गांव में है जहां 3 हजार पौधे लगाए हुए हैं। चकगुड़ा गांव में 6 हेक्टेयर जमीन लीज पर ले रखी है। वहां पर 5 हजार पौधे लगाए हुए हैं। अनार के 600 पौधे सिंधासवा गांव 1 हेक्टेयर पर लगाए हुए हैं। अब 10 हेक्टेयर में 8500 पौधे बचे हैं, 1500 पौधे जल गए।
बाड़मेर के गुड़ामालानी कस्बे में किसान निंबाराम का अनार का खेत। इस वक्त अनार का सीजन चल रहा है। अनार पका हुआ है।
बाड़मेर के गुड़ामालानी कस्बे में किसान निंबाराम का अनार का खेत। इस वक्त अनार का सीजन चल रहा है। अनार पका हुआ है।
किसाना निंबाराम का कहना है कि मेरे इलाके के किसानों को अनार की खेती के लिए प्रेरित करने के लिए हर साल मालेगांव-नासिक से हजारों अनार पौधे लेकर आता हूं। इलाके के किसानों को अनार के पौधे देने के साथ अनार की खेती के बारे में भी बताता हूं। अब तक अन्य इलाके के किसानों को लाखों पौधे दे चुका हूं।
किसान निंबाराम बताते है कि पहली बार जब अनार लगाया तो 12 बीघा जमीन थी। अब मेरे पास में 100 बीघा जमीन आलपुरा गांव में है। अनार की खेती ने मेरी और मेरे परिवार की तकदीर बदल दी है।
गुड़ामालानी के एसडीएम प्रमोद कुमार का कहना है कि उपखंड क्षेत्र में किसान परंपरागत खेती छोड़कर अनार नींबू जैसी व्यवसायिक फसलों की ओर अग्रसर हुए हैं। इससे इलाके में समृद्धि बढ़ी है, इस बार अनार की बंपर पैदावार मिली है, इससे किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार हो रहा है।
परंपरागत खेती छोड़ रहे किसान अनार का रकबा बढ़ा रहे हैं। इलाके में पानी की कमी है, अनार को पानी कम चाहिए, खारे पानी में में भी मीठा फल मिलता है। जो खेती में नवाचार अपना रहे हैं वे समृद्ध हो रहे हैं, दूसरे किसान भी निंबाराम से प्रभावित हो रहे हैं।
वैज्ञानिक बोले- समय के साथ तकनीकी बदल रहे किसान
वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं केवीके (कृषि विज्ञान केंद्र) अध्यक्ष डॉ. बाबूलाल मीणा के मुताबिक गुड़ामालानी इलाके के दूसरे किसानों ने भी अनार की खेती को अपनाया है। गुढ़ामालानी में किसान 3500 हेक्टेयर में अनार की पैदावार कर रहे हैं। जैसे-जैसे समय बदल रहा है वैसे खेती की तकनीकी भी बदल रही हैं और किसान उन्हें अपना रहे हैं। साल 2010 में जहां अनार की खेती 30 हेक्टेयर में होती थी। तो वहीं वर्तमान में इलाके में 9 हजार हेक्टेयर एरिया में अनार उग रहा है।
निंबाराम के पिता भूराराम भी अनार की खेती कर रहे हैं। निंबाराम के छोटे भाई कृष्ण कुमार पिता की मदद करते हैं। निंबाराम की पत्नी चुकी देवी गृहणी हैं। निंबाराम के 4 बेटे-बेटी पढ़ाई कर रहे हैं।
इनपुट : रावताराम