भीषण गर्मी में बिजली की मांग में रिकार्ड वृद्धि से प्रदेश की आपूर्ति व्यवस्था लड़खड़ा गई है। पहले से ओवरलोडेड वितरण और ट्रांसमिशन सिस्टम बढ़े हुए लोड का बोझ नहीं उठा पा रहा है। नतीजतन लोकल फाल्ट, ट्रांसफार्मर की खराबी, लो वोल्टेज की समस्या काफी बढ़ गई है। मांग पूरी करने के लिए पावर कार्पोरेशन एनर्जी एक्सचेंज समेत अन्य तमाम स्रोतों से अतिरिक्त बिजली का इंतजाम कर रहा है लेकिन जर्जर सिस्टम के कारण लोगों को रोस्टर के अनुसार बिजली आपूर्ति नहीं हो पा रही है। गांवों में बेतहाशा कटौती हो रही है जबकि शहरों में भी हालात बदतर हैं। लखनऊ के ही तमाम इलाकों में घंटों की अघोषित कटौती से गर्मी में लोगों का जीना मुहाल हो गया है। उद्योग-धंधों पर भी इसका खासा असर पड़ रहा है।
तापमान बढ़ने के कारण प्रदेश में बिजली की मांग में भी भारी इजाफा हुआ है। प्रदेश में बिजली की मांग 26,000 मेगावाट के आसपास बनी हुई है। राज्य के बिजलीघरों से लगभग 11,000 मेगावाट बिजली का उत्पादन हो रहा है जबकि केंद्र से 14,000 मेगावाट से ज्यादा बिजली मिल रही है। जरूरत के मुताबिक 3000-3600 मेगावाट अतिरिक्त बिजली भी खरीदी जा रही है। इन सबके बावजूद लोगों प्रदेश में बिजली का संकट बना हुआ है और शहरों से लेकर गांवों तक अघोषित कटौती का सिलसिला जारी है। हालांकि स्टेट लोड डिस्पैच सेंटर (एसएलडीसी) की ओर से गांवों में 16 घंटे, तहसीलों में 21 घंटे, बुंदेलखंड में 19 घंटे तथा जिला, मंडल व महानगरों में 24 घंटे आपूर्ति का दावा किया जा रहा है लेकिन जमीनी हालात अलग हैं। गांवों में बमुश्किल सात-आठ घंटे ही आपूर्ति हो पा रही है।
लखनऊ समेत लगभग सभी बड़े-छोटे शहरों में स्थानीय गड़बड़ियों और अन्य तकनीकी कारणों से धुआंधार अघोषित कटौती की जा रही है। यही नहीं लोड बढ़ने से तमाम इलाकों में लो वोल्टेज की समस्या भी बढ़ गई है। इसकी वजह से लोगों के एसी व अन्य कीमती बिजली के उपकरणों के खराब होने की शिकायतें भी आ रही हैं।
अभियंताओं का कहना है कि भीषण गर्मी पड़ने की वजह से वितरण और ट्रांसमिशन सिस्टम पर दबाव बढ़ गया है। जिस तरह से बिजली की मांग में इजाफा हो रहा है और लोड बढ़ रहा है, उसके हिसाब से वितरण और ट्रांसमिशन नेटवर्क की क्षमता में वृद्धि नहीं हो पाई है। इसकी वजह से समस्या खड़ी हो रही है। जब तक बारिश नही%E