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जुमे को लेकर सतर्कता बरतने के निर्देश, लापरवाह पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की तैयारी

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एडीजी कानून व्यवस्था प्रशांत कुमार।

 

शुक्रवार की नमाज को लेकर पूरे प्रदेश में सतर्कता बरतने के निर्देश डीजीपी मुख्यालय की ओर से दिए गए हैं। एडीजी कानून व्यवस्था प्रशांत कुमार ने बताया कि माहौल खराब करने वालों से सख्ती से निपटने के लिए कहा गया है चाहे वह जिस भी संप्रदाय का हो। उन्होंने कहा कि पुलिस धर्म गुरुओं से बात भी कर रही है और अराजक तत्वों पर नजर भी रख रही है। कोई भी गड़बड़ी करेगा उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

उधर, कानपुर में हुई हिंसा न सिर्फ पूरे कानपुर बल्कि दूसरे शहरों में भी फैल सकती थी। हिंसा की खबर पाते ही पुलिस आयुक्त 10 मिनट के अंदर मौके पर पहुंच गए। दूसरे वरिष्ठ अधिकारियों जैसे संयुक्त पुलिस आयुक्त, पुलिस उपायुक्त व अन्य अधिकारियों को भी मौके पर बुला लिया गया।  दंगाई गलियों में घुसे तो उन्हें भी डेढ़ घंटे के अंदर काबू कर लिया गया। अगर पुलिस आयुक्त प्रणाली कानपुर नगर में लागू न होती तो दंगे को काबू करने में परेशानी हो सकती थी।

दरअसल पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू होने के बाद कानून व्यवस्था से जिला प्रशासन का दखल खत्म हो गया। इसके लिए पूरा पावर पुलिस को दे दिया गया। कई बार जिलों में कानून व्यवस्था की स्थिति उत्पन्न होने पर जिलों में वरिष्ठ अधिकारियों के बीच समन्वय को लेकर कई बार दिक्कत होती थी। लेकिन आयुक्त प्रणाली लागू होने से मातहतों को निर्देश पुलिस के ही अधिकारी दे रहे थे।

मौके पर खुद एडीजी रैंक के पुलिस आयुक्त विजय सिंह मीना, आईजी रैंक के अफसर संयुक्त पुलिस आयुक्त कानून व्यवस्था आनंद प्रकाश तिवारी और एसपी रैंक के दो पुलिस उपायुक्त मौके पर पहुंच गए। मौके पर जिलाधिकारी नेहा शर्मा और अपर जिलाधिकारी भी पहुंचे। दंगे की आग फैलती उससे पहले ही अधिकारियों को जिम्मेदारी बांटकर मौके पर ही उसे शांत कर दिया गया। इस दौरान पुलिस ने बल प्रयोग भी किया, रबर की गोलियां भी चलाईं और आंसू गैस के गोले छोडे़। चंद मिनटों में ही मुख्य सड़कों से दंगाइयों को खदेड़ दिया। दंगाई गली में घुसकर पत्थर चलाने लगे तो उसे भी कम समय में ही कंट्रोल कर लिया गया।

अगर पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू न होती तो यहां केवल एसएसपी रैंक का एक अफसर होता और अपर पुलिस अधीक्षक होते। वरिष्ठ अधिकारियों को मौके पर पहुंचने में समय लगना तय था और तब तक हालात बेकाबू हो सकते थे। इसके बाद भी उन अधिकारियों की जिम्मेदारी तय की जा रही है जिनकी लापरवाही से हिंसा हुई।

 

लखनऊ में उतारना पड़ गया था पूरा डीजीपी मुख्यालय

दिसंबर 2019 में जब सीएए व एनआरसी को लेकर प्रदर्शन हो रहा था, उस समय सबकुछ पहले से जानकारी होने के बाद भी कई घंटे तक राजधानी की सड़कों पर दंगाई उपद्रव करते रहे। उस समय लखनऊ में पुलिस आयुक्त प्रणली लागू नहीं थी। लखनऊ में हुई हिंसा को नियंत्रित करने के लिए पूरा डीजीपी कार्यालय लखनऊ की सड़कों पर उतार दिया गया था। पहली बार किसी हिंसा को रोकने के लिए खुद तत्कालीन डीजीपी ओम प्रकाश सिंह, तत्कालीन एडीजी कानून व्यवस्था पीवी रामाशास्त्री और लगभग एक दर्जन एडीजी व आईजी रैंक के अफसरों को उतारना पड़ा था।

चौकी इंचार्ज से लेकर सीओ तक पर कार्रवाई की तैयारी

वहीं सूत्रों का कहना है कि इस मामले में बिल्कुल निचले स्तर पर लापरवाही देखने को मिली। चौकी इंचार्ज से लेकर सीओ तक मौके की नजाकत नहीं भांप सके। विरोध प्रदर्शन की काल वापस होने केबाद भी लोग प्रदर्शन के लिए उतर आएंगे, इसके बारे में जानकारी नहीं जुटा सके। यहां तक कि कितनी फोर्स की जरूरत पड़ेगी, किन प्वाइंट पर ड्यूटियां लगाई जाएंगी, इसकी भी कोई तैयारी नहीं की गई, जिसकी वजह से जुमे की नमाज के बाद लोग सड़कों पर उतर आए, दुकानें बंद करवाने लगे और फिर पथराव शुरू कर दिया। अब इनकी जवाबदेही तय की जाएगी। इसकी रिपोर्ट शासन को मिल गई है। शुक्रवार देर शाम तक लापरवाही बरतने वाले पुलिस अधिकारियों व कर्मियों पर कार्रवाई तय मानी जा रही है।

पुलिस कमिश्नरेट सिस्टम का सबसे बड़ा फायदा कानपुर में देखने को मिला जहां पुलिस आयुक्त स्तर का अधिकारी 10 मिनट के अंदर पहुंच गए। पुलिस कमिश्नरेट में आफिसर ओरिएंटेड पुलिसिंग होती है। दरोगा या इंस्पेक्टर के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता। कानपुर में अगर कमिश्नरेट के वरिष्ठ अधिकारी तत्काल मौके पर पहुंचे होते तो स्थिति को नियंत्रित करने में समय लगता। – प्रशांत कुमार, अपर पुलिस महानिदेशक, कानून व्यवस्था

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