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गुना के ऐतिहासिक मामले में 200 छात्रों की हुई गवाही; आईओ के 40 पेज के बयान

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वर्ष 2013 के जुलाई महीने का समय होगा। गुना, शिवपुरी, राजगढ़, अशोकनगर जिले के सैकड़ों छात्र डीएड (D.ed.) करना चाहते थे। इसी दौरान उन्हें गुना शहर के हनुमान चौराहे के पास संचालित प्रयाग इंस्टीट्यूट की जानकारी मिली। संस्थान विज्ञापन के जरिए भी लोगों को डीएड कराने की जानकारी दे रहा था। सैकड़ों छात्र यहां एडमिशन लेने के लिए पहुंच गए, लेकिन शायद उन्हें यह नहीं पता था कि जिस संस्थान पर भरोसा करके वे अपनी पूंजी डीएड करने के लिए दे रहे हैं, वह उनसे इतना बड़ा धोखा करेगी। न तो उनका डिप्लोमा पूरा हो पाएगा और न ही उन्हें अपने पैसे वापस मिलेंगे। संचालक ने लगभग एक करोड़ रुपए इन छात्रों से जमा कराए थे। चार दिन पहले जब कोर्ट ने इन छात्रों के पक्ष में फैसला देते हुए आरोपी को सजा सुनाई, तो इनके जख्मों पर थोड़ा मरहम जरूर लगा होगा। हालांकि, अब ये सभी छात्र अलग-अलग जगह पर हैं। कोई छोटी-मोटी नौकरी कर रहा है तो कोई संविदा पर काम कर रहा है। गुना के इतिहास में यह पहला केस था, जिसमें 300 पीड़ितों की गवाही कोर्ट में हुई। सुनवाई के दौरान 5 वर्ष तो केवल गवाही में ही लग गए। रोजाना 5-10 पीड़ित गवाही देने पहुंचते थे। तब जाकर सबके बयान दर्ज हो पाए। लगभग 8 वर्ष बाद इस मामले का फैसला आया है। कोर्ट ने आरोपी को 7 वर्ष की कैद और 1.80 लाख का जुर्माना लगाया है।

पढ़िए, सिलसिलेवार पूरी घटना

दरअसल, दिनेश जाटव नामक युवक ने वर्ष 2015 में कोतवाली थाने में एक शिकायत दर्ज कराई। 29 जनवरी को ये शिकायत की गई। शिकायत में उन्होंने बताया कि ” उसके द्वारा 20 जुलाई 2013 को प्रयाग इंस्टीट्यूट में डीएड करने के लिए प्रवेश लिया गया। फीस के 5000 रुपए जमा किए। संस्था के संचालक दीपक शर्मा द्वारा एमपी बोर्ड से डीएड करवाने की बात कही गई। मैंने फीस के 15000 एवं 11000 रुपए कुल 31000 रुपए जमा किए थे। दीपक शर्मा द्वारा कुल 62000 रुपए फीस बताई गई थी। परीक्षा जुलाई 2014 में करवाने का आश्वासन दिया गया। बाद में टेक्नोग्लोबल यूनिवर्सिटी मेघालय से परीक्षा करवाने का आश्वासन देने लगे। दीपक शर्मा ने कुछ छात्रों को टेक्नोग्लोबल यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रेशन कार्ड भी दिए, लेकिन किसी भी प्रकार की परीक्षा नहीं करवाई थी। फरियादी ने उसके अन्य साथियों के साथ भी इसी प्रकार की धोखाधडी की बात कही थी।”

दिनेश जाटव की शिकायत पर थाना कोतवाली गुना में अपराध क्रमांक 50/ 15 धारा 420 (धोखाधड़ी) का मामला दर्ज कर विवेचना में लिया गया। विवेचना के दौरान आई साक्ष्य के आधार पर यह सामने आया कि आरोपी दीपक शर्मा ने अपने साथी आनंद स्वरूप शर्मा व मुकेश रघुवंशी के साथ मिलकर सैकड़ों छात्रों से ठगी कर उनकी फीस ले ली। छात्रों का किसी भी संस्थान में प्रवेश नहीं करवाया गया। साथ ही कूटरचित (फर्जी) दस्तावेज उन्हें दिए गए। इस वजह से प्रकरण में धारा 467, 468 (जानबूझकर फर्जी दस्तावेज तैयार करना), 120 बी (आपराधिक षड्यंत्र) का इजाफा किया गया। विवेचना के दौरान आरोपियों को गिरफ्तार किया गया। साक्षियों के कथन लिए गए और प्रकरण के अन्य अनुसंधान के दौरान अभियोग पत्र (केस डायरी) न्यायालय में पेश किया गया। इस तरह की कुल 3 FIR दर्ज हुईं, जिनमे से 2 का फैसला आ गया है। तीसरे मामले का भी फैसला जल्द होने की संभावना है।

अब पढ़िए कोर्ट में क्या हुआ

जिले के इतिहास में यह पहला मामला था, जिसमे इतनी बड़ी संख्या में गवाही हुई हों। दो मामलों में लगभग 200 छात्रों की गवाही हुई। 29 जनवरी 2015 को रिपोर्ट होने के बाद 29 अप्रैल को आरोप पत्र दाखिल किए गए। 4 सितंबर 2015 को आरोप तय किए गए। 22 सितंबर से साक्ष्य (गवाही) शुरू हुई। 27 जनवरी 2023 को फैसला सुरक्षित रखा गया और 30 जनवरी को फैसला सुनाया गया। मामले में इतने लोगों की गवाही करवाना आसान नहीं था। ऐसे में समन जारी करवाना, गवाहों को कोर्ट में बुलवाना, उनकी गवाही कराना चुनौतीपूर्ण था। मामले में शासन की ओर से पैरवी कर रहे AGP राहुल पांडेय ने बताया कि बहुत ज्यादा गवाह थे। रोजाना 5-10 पीड़ितों की गवाही होती थी। कई बार तो दिनभर केवल इसी केस की गवाही कराने में निकल जा रहे थे। कई बार कोई गवाह नहीं आ पाता, दूसरे शहरों से आने वालों को ज्यादा परेशानी होती थी। लगभग 5 वर्ष में पीड़ितों की गवाही हो पाई। इसके अलावा 440 पेज तो केवल दस्तावेज जब्त किए गए थे। इन सभी को एग्जीबिट कराना भी बड़ा काम था।

अपनी गवाही के दौरान शिकायतकर्ता दिनेश जाटव ने कोर्ट में बताया कि पहले उससे कहा गया कि एमपी बोर्ड से डीएड कराएंगे। जब वहां से नहीं हुआ तो दिनेश ने फिर संस्थान से पूछा। तब उन्होंने बताया कि उसका डीएड टेक्नोग्लोबल यूनिवर्सिटी मेघालय से करा देंगे। जब दिनेश ने उसके एडमिशन का सबूत मांगा, तो उसके कुछ साथियों के टेक्नोग्लोबल यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रेशन बता दिए। जब दिनेश ने इंटरनेट पर ये रजिस्ट्रेशन सर्च किए, तो यह सब फर्जी निकले। जब सब कुछ फर्जी निकला, टैब उन्हें एहसास हुआ कि उनका डीएड नहीं हो पाएगा। इसके बाद ही वह कोतवाली में शिकायत करने पहुंचे।

कुछ गवाह बयान से पलटे

इधर, कोर्ट में सुनवाई चल रही थी, उधर संस्था ने कुछ लोगों के पैसे वापस कर दिए। जब यह लोग कोर्ट में बयान देने पहुंचे, तो अपने बयानों से मुकर गए। हालांकि, इनकी संख्या बेहद कम थी। ज्यादातार गवाह अपने बयानों पर कायम रहे। सभी छात्रों की एक समान कहानी निकली। सभी को इसी तरह पहले एमपी बोर्ड से डीएड कराने का आश्वासन दिया। इसके बाद टेक्नोग्लोबल यूनिवर्सिटी मेघालय से कोर्स कराने की बात कही गई। दिखाने के लिए छात्रों को प्रैक्टिकल कराने संस्था पर बुलाया गया, हालांकि प्रैक्टिकल नहीं हो पाए। इसके बाद भी आरोपी प्रदीप शर्मा लगातार उन्हें आश्वासन देता रहा।

आईओ की 40 पेज की गवाही

इस केस में सबसे चुनौतीपूर्ण कार्य विवेचना अधिकारी (आईओ) का रहा। इस मामले के आईओ रहे विपेंद्र सिंह चौहान ने दैनिक भास्कर को बताया कि यह पहला मामला था जिसमे इतने ज्यादा पीड़ित थे। जब FIR हुई और उसकी विवेचना शुरू की गई तो सबसे पहले सभी पीड़ितों के कथन लेना बड़ा काम था। लगभग 200 लोगों के कथा लिए। उनकी रसीदें और अन्य दस्तावेज जब्त करना, जप्ती पत्रक बनाना भी काफी मुश्किल काम था। इसके बाद पुलिस की एक टीम टेक्नोग्लोबल यूनिवर्सिटी भेजी, जिसने वहां से जानकारी एकत्रित की। एक टीम माध्यमिक शिक्षा मंडल गयी। वह वहाँ से जानकारी लेकर आई। आरोपी ने जो रसीदें छात्रों को दी थीं, उनकी जांच भी हैंडराइटिंग एक्सपर्ट से कराई, ताकि कोर्ट में आरोपी यह दावा न कर सके कि उसने यह रसीदें नहीं दी हैं। काफी दिनों की मेहनत के बाद अभियोग पत्र(केस डायरी) कोर्ट में प्रस्तुत की। कोर्ट में सुनवाई के दौरान सबसे लंबे बयान विपेंद्र सिंह चौहान के हुए। कोर्ट द्वारा जारी आदेश के अनुसार लगभग 40 पेजों की उनकी गवाही हुई, जिसमे 30 पेज बयान और 10 पेज प्रतिपरीक्षण के रहे।

इस मामले के एक पीड़ित हरिमोहन कुशवाह ने बताया कि उन्होंने प्रयाग इंस्टीट्यूट से डीएलएड करने के लिए एडमिशन लिया था। इसके लिए उन्होंने फीस भी जमा कर दी थी। संचालक दीपक शर्मा ने उन्हें बताया कि उनका डीएलएड दिल्ली की यूनिवर्सिटी से कराया जा रहा है, जो सभी जगह मान्य भी रहेगा। उसका रजिस्ट्रेशन भी दिया गया। जब रजिस्ट्रेशन को ऑनलाइन सर्च किया तो वह फर्जी निकला। इसकी शिकायत कोतवाली थाने में की थी। अब इस मामले में जो अदालत का फैसला आया है, उसका स्वागत करते हैं।

कोर्ट ने क्या कहा…

कोर्ट में सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष ने कहा कि कुछ गवाहों के बयानों में तारीखों और कुछ मामलों में विरोधाभास है। इस पर कोर्ट ने कहा कि “पूर्व की विवेचना में आरोपी दीपक के संबंध में कुछ के कथनों में मामूली सा विरोधाभास एवं भिन्नता आई हैं। वे इस बिन्दू पर आई हैं कि उनके पुलिस बयान नहीं लिये गये थे। रसीदों पर दीपक के हस्ताक्षर नहीं हैं। इस प्रकार का विरोधाभास या भिन्नताऐं प्रकरण के दर्ज होने का विचारण में करीब सात वर्ष से अधिक समय लगने वाले लंबे समय में ऐसे विरोधाभास और भिन्नताऐं आना स्वाभाविक है। छात्रों द्वारा आरोपी दीपक को रूपये दिये जाना बताया गया है उनके रूपये लौटाये नहीं गये हैं इस संबंध में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज हुई है। विवेचना के दौरान पीड़ित छात्रों से आरोपी दीपक द्वारा दी गई जमा राशि की रसीदों के जप्ती पत्रकों को प्रमाणित किया गया है। इन जप्ती पत्रकों के संबंध में आरोपी दीपक के यहां से उपलब्ध रिकार्ड जिसे जप्त किया गया है, उसमें भी आर्टिकल अंकित किये गये हैं और उक्त आर्टिकलों में भी छात्रों का नाम, उनके फोटोग्राफ्स व जमा राशि के विवरण अंकित हैं। ऐसे में साधारण विरोधाभास या भिन्नताओं से अभियोजन कथा पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता है।”

7 वर्ष की कैद और 1.80 लाख जुर्माना

मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने 30 जनवरी को अपना फैसला सुनाया। अपर सत्र न्यायाधीश एमए खान की अदालत ने निर्णय दिया। आरोपी दीपक शर्मा को 7 वर्ष की सजा सुनाई गई है। साथ ही उस पर 1.80 लाख का जुर्माना भी लगाया गया है। जुर्माना न देने की स्थिति में एक वर्ष की सजा और भुगतायी जाएगी। मामले में शासन की ओर से पैरवी AGP राहुल पांडे ने की।

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