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मूंग छोड़ बील-अनार उगाया, सालाना 30 लाख कमाई:2 सब्जेक्ट में MA किसान बोला- सरकारी नौकरी से बेहतर है खेती

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जब गेहूं और सरसों की खेती ने नुकसान देना शुरू किया तो युवा किसान ध्रुव रजनीश लाम्बा ने पिता हरि सिंह लाम्बा के सामने जैविक तरीके से बागवानी खेती करने का सुझाव दिया। बेटा हिन्दी और इतिहास में एमए कर चुका था। बेटे ने जो कहा वो सही ही कहा होगा, ऐसा सोचकर पिता ने बागवानी खेती की इजाजत दे दी।

ध्रुव रजनीश लाम्बा ने 18 साल पहले मूंग-ज्वार की पारंपरिक खेती छोड़ गंगानगर-जयपुर से बील के पौधे लाकर खेत में लगा दिए। इसके बाद बगीचों में अनार, मौसमी, किन्नू, नींबू के पौधे लगाते गए। अब कमाई सालाना 30 लाख के ऊपर है।

म्हारे देस की खेती में आज बात झुंझुनूं के किसान रजनीश लाम्बा की।

झुंझुनूं शहर से 35 किलोमीटर दूर नवलगढ़ कस्बे में 3 हजार की आबादी का छोटा सा गांव है चेलासी। इस गांव में ध्रुव रजनीश लाम्बा (45) करीब 20 साल से फलों की जैविक खेती कर रहे हैं।

जैविक खेती की शुरुआत रजनीश ने 35 बीघा से की थी। बागवानी खेती में मुनाफा हुआ तो किराए पर जमीन लेकर पेड़ लगाते चले गए। आज ध्रुव रजनीश लाम्बा कुल 95 बीघा में जैविक बागवानी कृषि करते हैं। इससे उनकी सालाना इनकम 30 लाख के ऊपर चली गई है।

किसान ध्रुव रजनीश लाम्बा ने शुरू में 10 लाख रुपए खर्च किए थे। साढ़े तीन -चार साल बाद पौधों ने फल देना शुरू किया। सबसे पहले फलों की सप्लाई सीकर, झुंझुनूं, नवलगढ़, जयपुर सहित आस-पास की मंडियों में की।
किसान ध्रुव रजनीश लाम्बा ने शुरू में 10 लाख रुपए खर्च किए थे। साढ़े तीन -चार साल बाद पौधों ने फल देना शुरू किया। सबसे पहले फलों की सप्लाई सीकर, झुंझुनूं, नवलगढ़, जयपुर सहित आस-पास की मंडियों में की।

4 साल से नींबू दे रहा कमाई

किसान ध्रुव रजनीश लाम्बा ने बताया कि नींबू के बाग 2018 में लगाए थे। इस साल सिर्फ नींबू का उत्पादन 4 लाख के करीब रहा है। अभी बगीचे में 3 लाख के फल और लगे हुए हैं।

एक महीने में ये सभी बिक जाएंगे। नींबू के लिए 15 बीघा में एक बगीचा तैयार है। दूसरा बगीचा 30 बीघा में लगा रहे हैं। दूसरे बगीचे से उत्पादन मिलना अभी स्टार्ट ही हुआ है। नींबू का पौधा 15 से 20 साल तक फल देता है।

ध्रुव रजनीश लाम्बा ने बताया कि शेखावाटी की मिट्‌टी ही ऐसी है, कि आपको हर घर में नींबू के एक दो पौधे तो मिल ही जाएंगे। यहां का हवा-पानी नींबू के लिए अच्छा है। नींबू हर घर की जरूरत है।

हम जैविक तरीके से नींबू का उत्पादन ले रहे हैं। पौधे में कीटनाशक या रासायनिक खाद का इस्तेमाल नहीं करते। इसलिए अच्छी मार्केटिंग हो जाती है।

हमारा नींबू ​​​​​नवलगढ़, झुंझुनूं के अलावा मुकुंदगढ़, चिड़ावा, चौमूं और अजमेर तक के मार्केट में जा रहा है।

रजनीश के पिता हरि सिंह लाम्बा। सरकारी नौकरी से रिटायर हैं। बेटे के साथ जैविक बगीचा लगाकर हाथ बंटा रहे हैं। बगीचे के लिए जैविक दवाइयां, पेस्टिसाइड हरदेव बना रहे हैं।
रजनीश के पिता हरि सिंह लाम्बा। सरकारी नौकरी से रिटायर हैं। बेटे के साथ जैविक बगीचा लगाकर हाथ बंटा रहे हैं। बगीचे के लिए जैविक दवाइयां, पेस्टिसाइड हरदेव बना रहे हैं।

बिल्वपत्र के पौधों से की शुरुआत

ध्रुव रजनीश लाम्बा ने बताया कि 2005 में हमने 35 बीघा खेत में बिल्वपत्र के पौधे लगाए। इसके बाद 2006 में मौसमी और अनार के पौधे भी बगीचे में लगा दिए।

फलों के लिए साल 2009-10 तक इंतजार करना पड़ा। अब तक बील, अनार और मौसमी का उत्पादन शुरू हो गया था। एक बार जब फल आने लगे और मार्केट में जाने लगे तो फिर ग्रोथ करते चले गए।

35 बीघा जमीन पर शुरू किया बागवानी का कारोबार 2010 के बाद बढ़ता चला गया। इसके बाद तो किराए पर 60 बीघा जमीन ली और उसमें पौधे लगा दिए।

अब कुल 95 बीघा जमीन पर बील, अनार, मौसमी, किन्नू और नींबू के करीब 13 हजार पेड़ लगे हुए हैं। जिनसे लगातार उत्पादन मिल रहा है।

2 साल बाद 60 लाख कमाई की उम्मीद

ध्रुव रजनीश लाम्बा ने बताया कि फिलहाल एक फार्म से 20 से 22 लाख की सालाना इनकम हो रही है। दूसरा बगीचा 15 बीघा में तैयार कर रहे हैं, यह अगले साल तक तैयार होगा। इस तरह दोनों बगीचों को मिलाकर अगले 2 साल बाद कमाई 50 से 60 लाख के आस-पास हो जाएगी।

खेती को बिजनेस की तरह लें किसान

किसान ध्रुव रजनीश लाम्बा ने कहा कि किसान मॉडर्न तरीके से खेती करें। यह देखें की जरूरत किस काम की है। स्मार्ट खेती करने से कमाई भी अच्छी होगी। खेती को खेती की तरह न लेकर बिजनेस की तरह लें।

जैसे बिजनेस में शुरू में पैसा और मेहनत लगती है वैसे ही बागवानी खेती में शुरू में मेहनत और पैसा लगेगा। लेकिन धैर्य रखना है।

एक बार बगीचा सेट हो जाएगा तो फिर इनकम का चक्र चल पड़ेगा। परंपरागत खेती में कुछ हजार लगाकर कुछ हजार कमाने का क्या फायदा।

बागवानी खेती में थोड़ा ज्यादा इनवेस्ट करके एक किसान सरकारी अधिकारी की सैलरी से ज्यादा कमाई कर सकता है।

रजनीश के पिता हरि सिंह लाम्बा सरकारी नौकरी से रिटायर हैं। उन्होंने कहा कि बागवानी खेती करते हुए 15 से 20 साल हो गए। बागवानी खेती में शुरू में लागत ज्यादा होती है और आमदनी बहुत कम।

लेकिन बगीचे से जब प्रोडक्शन मिलना शुरू हुआ तो लगातार उन्नति करते गए। अब कोई दिक्कत नहीं है। सालाना लाखों की आय हो रही है।

जैविक खेती से मिल रही अनार की उत्तम क्वालिटी

रजनीश के बगीचे में सिंदूरी अनार हो रहे हैं जो पूरी तरह से जैविक खाद से तैयार किए गए हैं। पौधों में रसायन का उपयोग नहीं होने के कारण अनार की बढ़त नैचुरल हो रही है।

आमतौर पर बाजार में मिलने वाला अनार 350 ग्राम तक का होता है। लेकिन रजनीश के बाग में होने वाले सिंदूरी अनार का वजन 800 ग्राम तक है।

यही वजह है कि रजनीश को अपने फलों का भाव बाजार से 25 फीसदी तक ज्यादा मिल रहा है। इनके फलों की खरीद में फल बिग बास्केट और ऑर्गेनिक किचन जैसी फर्म दिलचस्पी दिखा रही हैं और फलों का ऊंचा भाव दे रही हैं।

रजनीश ने फलों के बगीचे के साथ फलों के पौधों की नर्सरी भी शुरू की है। नर्सरी से भी रजनीश 10 लाख रुपए सालाना की कमाई कर रहे हैं।

बागवानी करने वाले किसान उनकी नर्सरी से फलों के पौधे लेकर जाते हैं। रजनीश ने अपने पिता के नाम पर नर्सरी का नाम हरदेव बाग नर्सरी रखा है। इस नसर्री में अनार, किन्नू, नींबू, बील और अन्य पौधों के 50 हजार से अधिक पौधे सालाना बेच रहे हैं।

आधुनिक तरीके अपनाकर कर रहे बागवानी

बगीचे में वे ड्रिप सिंचाई कर रहे हैं। इससे पानी की बचत भी हो रही है। खेत में उन्होंने पॉली रॉ तकनीक, सरकारी सब्सिडी से तीन सोलर लगे हुए हुए हैं, ड्रिप स्प्रिंकलर आदि सिस्टम लगा रखे हैं।

फलों की सप्लाई के लिए वाहन भी हैं। बागवानी के लिए जैविक खाद रजनीश, हरदेव व विक्रांत ही तैयार करते हैं। पौधों की नर्सरी पर ग्रीन शेड और नेट्स भी लगा रखे हैं।

मॉडर्न फार्मिंग को लेकर रजनीश काफी जागरुक हैं। वे लगतार नए-नए संसाधनों को लेकर रिसर्च भी करते हैं।
मॉडर्न फार्मिंग को लेकर रजनीश काफी जागरुक हैं। वे लगतार नए-नए संसाधनों को लेकर रिसर्च भी करते हैं।

पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी नहीं की, खेत संभाले

रजनीश ने बताया कि 2002 में मेरी पढ़ाई पूरी हो गई थी। इसके बाद नौकरी करने के बजाए खेत संभाल लिए। लोगों से जैविक खेती के बारे पता किया।

जैविक खेती में खेतों को रसायन और कीटनाशक से मुक्त कर दिया जाता है। इसके स्थान पर प्राकृतिक खाद, गोबर की खाद का ही इस्तेमाल किया जाता है।

इसलिए 2002 से 2005 तक खेतों में लगातार गोबर और पौधों की पत्तियों की खाद डालकर तैयार किया। खूब मेहनत की।

2005 में जयपुर और गंगानगर से बील के 600 पौधे लाकर लगाए, फिर किन्नू और मौसमी के 150 पेड़ लगाए। सिंदूरी अनार के 600 और नींबू के 250 पौधे लगाए।

200 से 500 रुपए तक का खर्च

रजनीश की आय हर साल बढ़ रही है। जैविक तरीके से हुए फलों की बिक्री बढ़ी है। लोग जागरुक हुए हैं। फलों की ऑनलाइन डिमांड के कारण बिग बास्केट और ऑर्गेनिक किचन जैसी फर्मों ने नवलगढ़ में स्टोर खोल दिए हैं।

रजनीश के फल सीधे इन स्टोर्स पर बिकने लगे हैं। चेलासी गांव से इस स्टोरी की दूरी महज 6 किलोमीटर है। इसलिए खर्च कम और मुनाफा मोटा होने लगा है। पहले ये फल स्थानीय मंडियों में बिक रहे थे। अब इनकी डिमांड बढ़ी है।

रजनीश ने बताया कि जब काम ज्यादा होता है तो वे गांव और बाहर से एक्स्ट्रा मजदूर भी मंगवाते हैं। बगीचे में जरूरत के हिसाब से कभी दस तो कभी पन्द्रह मजदूर भी काम करते हैं।
रजनीश ने बताया कि जब काम ज्यादा होता है तो वे गांव और बाहर से एक्स्ट्रा मजदूर भी मंगवाते हैं। बगीचे में जरूरत के हिसाब से कभी दस तो कभी पन्द्रह मजदूर भी काम करते हैं।

रजनीश की सफलता से प्रेरित होकर अब इलाके के किसान उनसे जैविक खेती के गुर सीखने आ रहे हैं। रजनीश किसानों को ट्रेनिंग भी दे रहे हैं। खेती में व्यस्त होने के बावजूद रजनीश अन्य किसानों को भी जैविक खेती से जोड़ रहे हैं। ताकि कम लागत में पैदावार अच्छी हो और स्वस्थ खाद्य पदार्थों की पैदावार बढ़ सके।

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