जोधपुर शहर के घंटाघर में लगी घड़ी 112 साल पुरानी है। उस वक्त यह घड़ी 3 लाख रुपए में बनवाई गई थी। एक लाख रुपए में घड़ी तैयार हुई थी। एक लाख रुपए इसे लगाने की लागत आई और एक लाख रुपए इसे बनाने वाली कंपनी को सिर्फ इसलिए दिए गए कि ऐसी घड़ी दूसरी न बनाई जाए। ऐसे में कहा जा सकता है कि जोधपुर के घंटाघर की घड़ी यूनीक है।
टूरिज्म से जुड़े लोग कहते हैं- जोधपुर नहीं देखा, तो क्या देखा। सूर्यनगरी और ब्लू सिटी के नाम से दुनियाभर में मशहूर जोधपुर शहर का हार्ट अगर किसी जगह को कहा जा सकता है तो वह है सदर बाजार में स्थित घंटाघर। घंटाघर की टन-टन को जोधपुर की धड़कन भी कह सकते हैं।
एक सदी से भी ज्यादा पुरा क्लॉक टावर
शहर के बीचों-बीच बना यह क्लॉक टावर एक सदी से भी ज्यादा पुराना है। इस विशाल घड़ी के कलपुर्जे बनाने की वाली कंपनी अब बंद हो चुकी है। लेकिन बेहतर रख-रखाव के चलते यह घड़ी अब तक चल रही है। दुनियाभर में ऐसी घड़ियां कुछ ही शहरों में बची हैं जो समय बता रही हैं और टन-टन की आवाज भी कर रही हैं।
यह जोधपुर का ऐतिहासिक पर्यटक स्थल घंटाघर है। अभी यह चर्चा में इसलिए हैं क्योंकि जोधपुर में नाइट टूरिज्म बढ़ाने के बाद घंटाघर देखने वालों की संख्या में 5 गुना तक बढ़ गई है। पिछले 20 दिन से इस इलाके को सैलानियों के लिए सुबह से रात तक खोला जा रहा है।
घंटाघर को इन दिनों में 5 हजार से ज्यादा टूरिस्ट विजिट कर चुके हैं। रोजाना 200 से 300 टूरिस्ट इसे देखने आ रहे हैं। जबकि नाइट टूरिज्म से पहले घंटाघर विजिट करने वालों की संख्या 40-50 पर्यटक प्रतिदिन थी। नगर निगम ने घंटाघर से अब तक की रिकॉर्ड कमाई की है। इस घड़ी की खासियत और इसको रखरखाव का करने का तरीका जानने दैनिक भास्कर की टीम इस क्लॉक टावर के अंदर पहुंची।
जोधपुर के घंटाघर का इतिहास
बात है साल 1910 की। जोधपुर में तब राजा सरदार सिंह का शासन था। उनके नाम पर नई मंडी के पास सरदार मार्केट बसाया गया। चौपड़ के बीच में 100 फीट ऊंचाई का घंटाघर बना। घंटाघर में 3 लाख रुपए की लागत से घड़ी लगवाई गई।
यह है घड़ी की खासियत
घंटाघर के चारों दिशाओं में चार घड़ियां समय दिखाती हैं। जिनमें चारों के डायल आपस में जुड़े हुए हैं। बाहर से साधारण दिखने वाली इस घड़ी के डायल हमने अंदर जाकर देखे। ये एक दूसरे से जुड़े हुए थे। डायल को चलाने के लिए तीन मोटे तारों में अलग-अलग लोहे के तीन भार लटके हुए हैं।
जैसे-जैसे घड़ी की सुईयां चलती हैं, ये तीनों भार नीचे आते हैं। एक सप्ताह में यह भार पूरी तरह से नीचे आ जाते हैं। इसके बाद सप्ताह में एक बार इसमें चाबी भरी जाती है। इसके बाद तीनों भार वापस ऊपर आ जाते हैं। घंटाघर की तीसरी मंजिल पर चारों दिशाओं में चार घड़ियां लगी हुई हैं। इनके डायल 6 फीट लम्बे और 2 फीट चौड़े हैं। इसके पेंडुलम का वजन 50 किलो है।
टंकार (घंटी की आवाज) बनाते हैं अलग
दुनिया के कई शहरों में घंटाघर हैं। उनमें इसी तरह की घड़ियां लगी हुई हैं। जोधपुर के क्लॉक टावर की खासियत इसकी टंकार है। हर 15 मिनट में घड़ी टंकार करती है। किसी भी समय सवा बजने पर 2 टंकार होती हैं। आधा घंटा होने पर 4, 45 मिनट होने पर 6 और एक घंटा पूरा होने पर 8 टंकार होती हैं। फिर जितना वक्त हुआ है उतनी टंकार बजती है। प्रति घंटे बजने वाले टंकार की ध्वनि अलग होती है।
एक ही परिवार की तीसरी पीढ़ी कर रही रखरखाव
जब से जोधपुर में घंटाघर वाली घड़ी लगी है। इसके रखरखाव का जिम्मा एक ही परिवार के पास है। मौजूदा वक्त मोहम्मद इकबाल रखरखाव कर रहे हैं। उनके पिता अल्ला नूर ने इस घड़ी की स्थापना में अपना योगदान दिया था। इसके बाद वे घड़ी का रखरखाव करते थे।
पिता अल्ला नूर के बाद उनके बेटे इकबाल यह काम करने लगे। अब इकबाल के बेटे मोहम्मद शकील भी घड़ी का रखरखाव करते हैं। यह परिवार घड़ी की मशीनरी को बारीकी से समझता है। इकबाल को इस काम के लिए 8 हजार रुपए प्रतिमाह वेतन मिलता है। इकबाल के बेटे शकील ने निगम में नौकरी के लिए कई बार बात की, लेकिन उनकी यह मांग पूरी नहीं हुई है।
विश्व में ऐसी सिर्फ दो घड़ियां
इकबाल ने बताया कि इस घड़ी को 1911 में बम्बई की कंपनी लुंड एंड ब्लोकली ने बनाया था। घड़ी बनने के बाद उन्हें कहा गया कि वे ऐसी दूसरी घड़ी न बनाएं। ऐसी घड़ी सिर्फ लंदन के क्लॉक टावर पर ही लगी हुई है। जयपुर, उदयपुर, कानपुर समेत देश के कई शहरों में इसी तरह के क्लॉक टावर हैं लेकिन उन घड़ियों की मशीनरी जोधपुर के घंटाघर से अलग है।
सप्ताह में एक दिन भरनी पड़ती है चाबी
इस घड़ी को चलाने के लिए सप्ताह में एक दिन चाबी भरनी पड़ती है। इकबाल या उनके बेटे शकील दोनों में से कोई चाबी भरता है। गुरुवार का दिन चाबी भरने के लिए निर्धारित है। इसमें किसी प्रकार की खराबी आने पर मरम्मत का काम भी यही परिवार करता है।
आम पर्यटकों के लिए खुलता है घंटाघर
जोधपुर के ऐतिहासिक पर्यटन स्थल बन चुके घंटाघर को पहले सरकारी दफ्तर के समय यानी सुबह 10 से शाम 6 बजे तक खोला जाता था। ऐसे में पर्यटन सीजन में भी घंटाघर को देखने एक दिन में 40 से 50 पर्यटक ही आते थे। अब घंटाघर सुबह 7 बजे से रात 10 बजे तक यानी 15 घंटे खुला रहता है।
नगर निगम ने यहां साफ सफाई, रोशनी और पारंपरिक साज की व्यवस्था कर पर्यटकों को खींचा है। नाइट टूरिज्म शुरू होने के बाद रोजाना घंटाघर विजिट करने वालों की संख्या 250 के पार पहुंच गई है।
पांच गुना तक बढ़े पर्यटक और आमदनी
नगर निगम घंटाघर विजिट करने का शुल्क लेता है। विजिटिंग का टाइम बढ़ाने से आमदनी भी बढ़ी है। यहां देसी पर्यटक के लिए 25 रुपए और विदेशी पर्यटक के लिए 100 रुपए टिकट शुल्क है। पिछले 20 दिन के कलेक्शन की बात करें तो यह सवा लाख रुपए को पार कर गया है। इतनी राशि पूरे पर्यटन सीजन में भी नहीं रहती थी।
नगर निगम उत्तर की महापौर कुंती देवड़ा परिहार ने कहा कि सुबह 10 से 6 का टाइम था तो घंटाघर देखने वाले विजिटर्स बहुत कम थे। अब इसे शाम 6 बजे बाद भी पर्यटकों के लिए खोल दिया गया है। यह फैसला फायदेमंद रहा है। अब विजिटर्स की संख्या 5 गुना तक बढ़ गई है। आमदनी भी बढ़ी है। घंटाघर जोधपुर शहर के हैरिटेज का एक अनमोल नगीना है।
जोधपुर पूर्व नरेश के जन्मदिन पर बनाया 75KG का पेड़ा:स्पेन की केसर से तैयार किया खास केक, ड्राई फ्रूट्स से लिखा नाम
जोधपुर के पूर्व नरेश गज सिंह का शुक्रवार को 75वां जन्मदिन है। इसको लेकर शुक्रवार को उम्मेद भवन पैलेस में एट होम कार्यक्रम रखा गया है। इसके साथ ही उनके जन्मदिन पर खास पेड़ा तैयार किया गया है, जिसका वजन करीब 75 किलो है। इसे खास स्पेन की केसर और दूध के साथ तैयार किया गया है। राजस्थान एसोसिएशन ऑफ नॉर्थ अमेरिका राना के अध्यक्ष और जोधपुर निवासी प्रेम भंडारी की ओर से इसे गिफ्ट किया गया है।