हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने शनिवार को एक सफाई कर्मी को मुआवजे के रूप में 2 लाख रुपए देने का आदेश दिया। उसे एक सरकारी कॉलेज में निर्माणाधीन शौचालयों में जमा पेशाब फेंकने का काम सौंपा गया था। इसके साथ ही जस्टिस सत्येन वैद्य दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही शुरू करने का भी आदेश दिया।
क्या है मामला
कोर्ट में एक व्यक्ति की रिट याचिका पर सुनवाई हो रही थी, जो राज्य के चंबा जिले में स्थित सरकारी पॉलिटेक्निक कॉलेज में पार्ट-टाइम स्वीपर के रूप में काम करता था। याचिका में बताया गया कि 5 दिसंबर 2017 से 5 जनवरी 2018 के बीच कॉलेज भवन के चौथे फ्लोर पर परीक्षा का आयोजन किया गया था। चूंकि यह एक नई बिल्डिंग थी, इसलिए चौथी मंजिल पर शौचालय की सुविधा उपलब्ध नहीं थी। इसलिए, अधिकारियों ने याचिकाकर्ता को परीक्षा केंद्र के बाहर कंटेनर की व्यवस्था करने का निर्देश दिया, ताकि छात्र उसका प्रयोग पेशाब करने के लिए कर सकें।
तहसीलदार की जांच से निराश होकर हाईकोर्ट पहुंचा पीड़ित
याचिकाकर्ता से कहा गया कि वह ड्रम को चौथी मंजिल से नीचे ले जाकर पहली मंजिल पर खाली कर दे। अधिकारियों ने उसे एक महीने तक ऐसा करने के लिए मजबूर किया गया। मामले तहसीलदार के पहुंचा तो उसने प्रतिवादियों को क्लीन चिट दे दी। इसके बाद याचिकाकर्ता ने आर्टिकल 14, 17 और 21 के तहत मौलिक अधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए हाईकोर्ट में अपील दायर की।
कोर्ट: तहसीलदार की जांच तमाशा
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि यह निराशाजनक था कि पेशाब को कामचलाऊ कंटेनर में एकत्र किया गया और याचिकाकर्ता को इसे निस्तारित करने के लिए कहा गया। यह 2013 अधिनियम की धारा 5 का स्पष्ट उल्लंघन है। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता वंचित वर्ग से था, इसलिए किसी ने उसकी बात नहीं सुनी। अदालत ने तहसीलदार की जांच को तमाशा कहा।
कोर्ट ने कहा कि अधिकारियों ने न केवल याचिकाकर्ता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया है, बल्कि प्रॉहिबिशन ऑफ एंप्लायमैंट एज मैनुअल स्कैवेंजर्स एंड देयर रिहैबिलिटेशन एक्ट, 2013 के तहत उन्हें उपलब्ध कानूनी अधिकारों का भी उल्लंघन किया है।
याचिकाकर्ता को दो लाख मुआवजे का आदेश
कोर्ट ने याचिकाकर्ता को दो लाख मुआवजे का आदेश दिया। दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू करते हुए अदालत ने राज्य सरकार और यूनियन ऑफ इंडिया को 2013 अधिनियम में निहित प्रावधानों को पूरी तरह से लागू करने का निर्देश दिया।