दमोह से 8 किमी दूर हिनौती पिपरिया के हिनौती गांव की आबादी 2 हजार है। गांव से सटा निस्तारी तालाब, जो ढाई हेक्टेयर में फैला है। इस तालाब में पानी भरने, सूर्य की रोशनी देने और मछलियों को जीवन देने के लिए प्रकृति ने किसी के साथ भेदभाव नहीं किया, लेकिन गांव के लोग भेदभाव पर ऐसे उतारू हो गए हैं कि चार समाजों ने एक ही तालाब के चार घाटों को आपस में बांट लिया।
कोई किसी दूसरे के घाट पर नहीं जा सकता। वजह- छुआछूत। इस गांव के कुछ लोग इस कुप्रथा को बदलना चाहते हैं, लेकिन छुआछूत मानने वालों की संख्या ज्यादा होने से बदलाव नहीं हो सका। सरपंच नीता अहिरवार ने बताया- पुरानी परंपरा है, पहले के लोगों ने कोई पहल नहीं की, इसलिए आज भी ऐसी स्थिति बनी हुई है। 75 साल के बुजुर्ग हरि सिंह लोधी ठाकुर कहते हैं इस परंपरा से किसी को आपत्ति भी नहीं है।
इन समाजों ने बांटे घाट और उनकी आबादी
- ठाकुर, 1200
- बंसल, 200
- प्रजापति, 25
- चौधरी, 450
4 हैंडपंप, पर पानी नहीं देते
गांव में जो पानी की टंकी बनी थी, उसमें दरारें आ गई हैं। चार हैंडपंप लगाए गए थे, उनमें पानी नहीं निकला। ऐसे में निस्तारित तालाब और लंबरदार का कुआं पानी के लिए रह जाता है, जिसके सहारे पूरा गांव रहता है।
कुएं पर पानी का सिस्टम
रूप सिंह ने बताया कि तालाब का उपयोग नहाने, धोने के लिए होता है। पीने का पानी भरने गांव से 600 मीटर दूर कुएं पर जाते हैं, वहां पर जिस समाज के लोग पहले पहुंचते हैं, वह पहले पानी भर लेते हैं, उसके बाद दूसरी समाज के लोग पानी भरते हैं।