जैन मुनि सुज्ञेयसागर महाराज ने मंगलवार को सम्मेद शिखर को टूरिस्ट प्लेस बनाए जाने के विरोध में प्राण त्याग दिए। झारखंड में जैन धर्म के इस पवित्र स्थल से उनका गहरा नाता था। यहीं से दीक्षा लेकर वे बिजनेसमैन से जैन मुनि बने थे। उनके इस त्याग ने राजस्थान की धरती से देशभर में एक भावुक आंदोलन छेड़ दिया है।
चार साल पहले गृहस्थ जीवन छोड़ने वाले मुनि सुज्ञेय (72) ने 10 दिन से अन्न-जल त्याग रखा था। उनका शरीर पूरी तरह से कमजोर हो चुका था। वजन महज 20-22 किलो ही रह गया था।
अपने पिता के अनशन की खबर सुनते ही मुंबई में उनका कारोबारी बेटा फ्लाइट पकड़कर जयपुर पहुंचा। लाख मनाने पर भी मुनि सुज्ञेय नहीं माने तो बेटे ने वहीं उनके पास रहने का फैसला किया। गोद में बच्चों की तरह उठाकर देव दर्शन करवाए। अंतिम क्षणों में बेटे की गोद में ही मुनि ने प्राण त्याग दिए।
जब भास्कर टीम जयपुर के सांगानेर में श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र मंदिर सांघीजी पहुंची, तो माहौल पूरी तरह से गमगीन था। वहां चार-पांच जैन मुनि और बैठे थे। आमतौर पर एक साथ इतने मुनि जहां भी साथ आते हैं, वहां उत्सव का माहौल होता है। लेकिन मंगलवार को माहौल गमगीन था। मुनि और श्रद्धालुओं की आंखें भीगी हुई थीं।
श्री सम्मेद शिक्षर को लेकर इतना आक्रोश था कि मुनि सुज्ञेयसागर महाराज की देह का विसर्जन होने के बाद एक और मुनि ने अन्न जल त्यागने की घोषणा कर दी। श्री दिगम्बर जैन मंदिर में जहां मुनि सुज्ञेय ने देह त्यागी वहां हमारी मुलाकात उनके बेटे कमलेश जैन से हुई। बातचीत में उन्होंने बताया कि कैसे उदयपुर के छोटे से गांव के रहने वाले नेमीराज जैन मुनि सुज्ञेयसागर बने और इतना बड़ा त्याग किया…।
पिता को पिता नहीं महाराज बोल सकता हूं- कमलेश जैन (बेटा)
कमलेश जैन से जब हमने ये सवाल किया कि आपके पिता जी की देह त्यागने कि खबर कैसे लगी? तो उनका जवाब था- मैं तो उनको पिताजी बोल ही नहीं सकता। चार साल पहले उन्होंने गृहस्थ जीवन त्यागकर धर्म की दीक्षा ली थी। वह महाराजजी ही कहलाते थे और मैं भी महाराजजी ही कहता था।
उन्होंने 25 दिसंबर को अनशन शुरू किया। लेकिन 27 दिसंबर को जब हमें खबर मिली, तो मैं खुद को रोक नहीं पाया। मां हार्ट पेशेंट हैं। उन्होंने ही मुझे जयपुर जाने को कहा। मैं फ्लाइट पकड़कर यहां पहुंचा तो उन्होंने अखंड संकल्प ले रखा था, जब तक पवित्र तीर्थ के मामले में कोई सकारात्मक फैसला नहीं हो जाता, तब तक कुछ ग्रहण नहीं करेंगे।
उनके संकल्प के आगे मैं हार गया। मुंबई से आया तो उन्हें मनाने था। नहीं माने तो यहीं रहकर उनकी सेवा करने लगा। अंतिम समय में उनका शरीर सिर्फ हड्डियों का ढांचा रह गया था। वजन घटकर 20-22 किलो हो गया था।
मैं यहां उन्हें छोटे बच्चों की तरह अपनी गोद में उठाकर नित्य कर्म करवाता। वे जब कहते थे कि मुझे धूप में ले जाओ, तो उन्हें गोद में उठाकर छत पर ले जाता था। वे 4 से 6 घंटे तक धूप में रहते। अंतिम समय में उनके शरीर में कोई मूवमेंट नहीं था। करवट भी नहीं ले सकते थे। मुनियों जैसी दिनचर्या प्राण त्यागने तक निभाई।
कमलेश बताते हैं कि उनके परिवार की जड़ें राजस्थान से ही हैं। उदयपुर की सलूंबर तहसील के गांव झल्लारा छोड़कर 40 साल पहले मुनि सुज्ञेय महाराष्ट्र चले गए थे। वहां थाणे के भिवंडी में एक जनरल स्टोर से कारोबार शुरू किया। संघर्ष करके बिजनेस को बड़ा किया। आज उसी स्टोर को हम दो भाई मिलकर संभालते हैं।
10 फरवरी 2019 को करीब चार साल पहले उनकी दीक्षा हुई थी। इससे पहले भी वे एक महीने तक निर्जल उपवास किया करते थे। बाहर की खाने-पीने की सभी चीजों का त्याग कर रखा। वे दो बार खाना लेते थे और धीरे-धीरे एक समय खाना लेने लगे थे।
जैसे साधु की दिनचर्या होती है परिवार में रहते हुए इन नियमों को अपना लिया था। फिर उन्होंने गुरु की शरण में जाने का फैसला किया और कहा कि मुझे दीक्षा लेनी है। साधु का जीवन जीना है। वे हमें छोड़कर चले गए।
जिद्दी थे, अंत तक मन नहीं बदला- मुनि सुखद सागर महाराज (सुज्ञेय सागर महाराज के साथी)
सुज्ञेय महाराज मेरे साथ जब से मुनि बने तब से मेरे साथ थे। वे बहुत जिद्दी थे। हमने बहुत समझाया, लेकिन वे चाहते थे कि उस पवित्र स्थान के लिए कुछ करें। उन्होंने मुझसे पूछा- मैं क्या करूं, तो मैंने उनके कमजोर शरीर को देखकर कहा कि आप कुछ मत करो। साधु बन चुके हो, सब कुछ छोड़ दिया है, फिर इस चक्कर में क्यों हो। उनका मन बदला नहीं।
वे कहते थे कि हमारी समाधि अच्छी हो जाए। हमने समझाया कि इसकी चिंता मत करो। इससे अच्छी समाधि हो ही नहीं सकती। आचार्य श्री के सान्निध्य में णमोकार मंत्र सुनते-सुनते उन्होंने देह त्याग दी।
बिन पानी के शरीर जर्जर हो गया- आचार्य श्री 108 सुनील सागर महाराज (मुनि सुज्ञेय के गुरु)
मुनि सुज्ञेय को दीक्षा देने वाले उनके गुरु चतुर्थ पीठाधीश आचार्य श्री 108 सुनील सागर महाराज ने बताया कि मेरे शिष्य का आंदोलन भावनात्मक था। वे कठिन साधना कर रहे थे। जब उन्हें सम्मेद शिखर के बारे में झारखंड सरकार के फैसले का पता चला तो उन्होंने संकल्प लिया। उनके शब्द थे- जब तीर्थ स्थान पर भावना के विपरीत घटनाएं होने लगी है, तो मैं भी अन्न-जल त्याग करता हूं।
वे अक्खड़ तपस्वी थे, जिद्दी थे, कठिन साधना की, जिसमें तीर्थ कारण बना। ये बहुत भावात्मक विषय है। उन्होंने ठान लिया था कि जब तक सम्मेद शिखरजी का मामला हल नहीं होता है, तब तक हम अन्न नहीं लेंगे।
मुनि सुज्ञेय ने 9 दिन बिना पानी के उपवास किए, शनिवार को वे काफी कमजोर हो गए। उनका शरीर पूरी तरह से जर्जर हो गया था। हमने काफी समझाया, लेकिन उन्होंने एक नहीं सुनी। मुनि सुज्ञेय ने शालीन रूप ले लिया था, कोई आक्रोश नहीं था। बस भाव जुड़े थे कि तीर्थंकरों की निर्वाण भूमि की जो पवित्रता है, वह बनी रहे।
मैंने मुनि सुज्ञेय से कहा कि ऐसे तो आपकी ‘साधना’ (जैन समाज में तप करते हुए मृत्यु होने को साधना कहते हैं) हो जाएगी, तो उन्होंने कहा कि तीर्थ की सेवा में समाधि हो जाए, तो भी कोई समस्या नहीं। ये सम्मेद शिखर को बचाने के लिए उनका बलिदान है।
मैने भी प्रतिज्ञा कर ली है- समर्थ सागर महाराज (एक और मुनि जो अनशन पर बैठ गए हैं)
मेरे सामने महान पवित्र स्थल सम्मेद शिखर जी के लिए मुनि सुज्ञेयसागर महाराज ने समाधि ले ली। अब मैंने भी प्रतिज्ञा की है जब तक इस मामले का समाधान नहीं हो जाता। सब कुछ साफ नहीं हो जाता, तब तक के लिए सब त्याग कर दिया है।
…तो मिनटों में निकल जाएगा रास्ता
सुनील सागर महाराज ने कहा सम्मेद शिखर जैनों का पवित्रतम तीर्थ है, ऐसा नहीं है कि तीर्थ लूट लिया जा रहा हो। लेकिन जनवरी में अति कर दी। हजारों की संख्या में लोग ऐसे चले गए, जो जूते पहने थे और कुछ भी खा-पी रहे थे। इससे जनता की भावना थोड़ी भड़क गईं कि सरकारी नोटिफिकेशन के कारण ऐसा हो रहा है।
जब इस तरह की घटना घटी और लोग थाने में शिकायत करने गए, तो थानेदार ने कहा कि इस तरह का नोटिफिकेशन है कि कोई भी पहाड़ पर जा सकता है। कुछ भी किया जा सकता है।
मुनियों और सभी समाजों की ये सोच है कि तीर्थ की जो पवित्रता है वह बनी रहे। हम तो केवल इतना चाहते हैं कि बस इतना सुनिश्चित हो जाए कि उसके पांच किलोमीटर की परिधि में अंडा, मछली, शराब आदि, जो भारतीय संस्कृति में वर्जित मानी जाती हैं, उनको निषेध कर दिया जाए।
बस नोटिफिकेशन में इतना ही बदलाव हो जाए। तो कोई दिक्कत की बात नहीं हैं। हम चाहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी तक, झारखंड सरकार तक हमारी बात पहुंचे। जो आंदोलन तेज हो रहा है, दिशा सुनिश्चित नहीं हो पा रही है। मुझे लगता है कि हमारी बात ठीक ढंग से पहुंची नहीं है। यदि हमारी बात सही तरीके से पहुंच जाए, तो मिनटों में रास्ता निकल जाएगा।