अटलजी की समाधि पर राहुल गांधी ने फूल क्या चढ़ाए, राजनीतिक कोहराम मच गया। भारतीय राजनीति को इस तरह के कृत्यों का सम्मान करना चाहिए। लेकिन भाजपा के कुछ नेता कह रहे हैं कि राहुल दिखावा कर रहे हैं। दूसरी तरफ़ कांग्रेस के ही एक नेता राहुल के किए कराए पर पानी फेरने को तुल जाते हैं। जब राहुल अटलजी की समाधि पर फूल चढ़ा रहे थे, कांग्रेस नेता गौरव पांधी अटलजी पर जघन्य आरोप लगा देते हैं।
कहते हैं- 1942 में जनसंघ ने अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन का बहिष्कार किया था और अंग्रेजों के लिए जासूसी की थी। इन नेताओं में अटलजी भी शामिल थे। कांग्रेस कोआर्डिनेटर पांधी के इस बयान पर उनकी पार्टी कोई कार्रवाई भी नहीं करती। इसका क्या मतलब समझा जाए? सीधी सी बात है- कांग्रेस को अपने ही पाँव पर पत्थर पटकने की आदत हो गई है। कोई अच्छा काम पार्टी में होता है तो पार्टी के ही नेता उस पर पलीता लगाने में जुट जाते हैं। पांधी ने भी यही किया है।
इस देश के राजनीतिक सौहार्द की मिसाल यह है कि उत्तर प्रदेश के द्वितीय मुख्यमंत्री रहे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता संपूर्णानंद, पंडित दीनदयाल उपाध्याय और समाजवादी राम मनोहर लोहिया में इस तरह का सामंजस्य था कि एक- दूसरे से अपना मेनीफेस्टो तक लिखवाने में गुरेज़ नहीं करते थे। खुद अटलजी जब बलरामपुर से जीतकर आए तो नेहरूजी ने कुछ नेताओं से उन्हें मिलवाया और कहा कि ये लड़का बहुत ही अच्छा बोलता है। आगे चलकर देश का प्रधानमंत्री बन सकता है।
जहां तक अपमान की बात है तो सबसे ज़्यादा अपमान तो कांग्रेस ने अपने ही नेताओं का किया है। 2004 में कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर जब मंत्री बने तो शपथ के बाद उन्होंने वहाँ मौजूद अटलजी के पैर छू लिए। कांग्रेस नेतृत्व को यह बात इतनी नागवार गुजरी कि मणिशंकर अय्यर को हाशिए पर डाल दिया गया। आलाकमान की नाराज़गी का ज़िक्र खुद मणिशंकर ने अटलजी को लिखी एक चिट्ठी में किया था।
यही नहीं, पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहराव का शव आधे घंटे तक कांग्रेस मुख्यालय के सामने रखा रहा, लेकिन गेट नहीं खोले गए। आख़िर राव का अंतिम संस्कार हैदराबाद में करना तय हुआ।
अटलजी के स्वभाव और देश के लोगों में उनकी अपार श्रद्धा का उदाहरण यह है कि एक बार उत्तर प्रदेश के राज्यपाल रहे रोमेश भण्डारी के फ़ैसले के विरोध में अटलजी धरने पर बैठ गए थे। दो- तीन घंटे में ही अटलजी के धरने की खबर फैल गई और यहाँ- वहां दंगे शुरू हो गए थे। इसे देखकर अटलजी ने धरना ख़त्म कर दिया, तब जाकर शांति हुई।
जहां तक भाजपा का सवाल है, उसके नेता तो पांधी का बयान आने से पहले भी राहुल की निंदा में जुट गए थे। वे कह रहे थे कि यह सब दिखावा है। कुछ कह रहे थे उदारवादी हिंन्दुओं के वोट बटोरने के लिए राहुल, अब अटलजी के प्रति श्रद्धा जता रहे हैं। पार्टी, वोट ये सब अलग हैं लेकिन एक- दूसरे का सम्मान तो होना ही चाहिए, चाहे आप किसी भी पार्टी के हों, किसी भी संगठन से आते हों!