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60% को डर- जिंदगी में कुछ नहीं कर सकते, हर 11वां बच्चा स्मोकिंग का शिकार

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देशभर के सबसे टॉप क्लास स्टूडेंट, जिनका सपना डॉक्टर और इंजीनियर बनना है, वो सुसाइड क्यों करते हैं?

हमारे पास सर्वे के लिए एक्सपर्ट की मदद से तैयार किए 12 प्रश्न थे। कोटा में हॉस्टल्स और कोचिंग सेंटर्स के बाहर 300 से ज्यादा बच्चों से सर्वे के लिए वन-टू-वन किया। लेकिन उससे ज्यादा करीब 22 हजार स्टूडेंट्स ने हमारे ऑनलाइन सर्वे में पार्टिसिपेट किया। जो रिजल्ट आया वो बेहद चौंकाने वाला है।

आपको जानकर हैरानी होगी कि तनाव में आकर कोचिंग स्टूडेंट्स स्मोकिंग, ड्रिंकिंग से लेकर ड्रग्स तक लेने लगे हैं। तनाव की सबसे बड़ी वजह सामने आई – रिजल्ट खराब आया तो मम्मी पापा क्या कहेंगे?

हर 11वें बच्चे का कहना है कि टेंशन में वह स्मोकिंग से परहेज नहीं करता। घर में पेरेंट्स के बीच हो रहे झगड़े की बात पता लगते ही कोटा के हॉस्टल में किताब लेकर पढ़ाई कर रहे बच्चे का मन क्रोध से भर जाता है। गुस्से में वह तोड़फोड़ तक कर डालता है। ये वो बातें जो कोचिंग से जुड़े बच्चों ने पहली बार दैनिक भास्कर ऐप पर हुए सर्वे में शेयर की….

एक्सपर्ट कमेंट : हमारे समाज में अभी भी बच्चों के भविष्य के बारे में उनके माता-पिता ही डिसीजन लेते हैं। क्या पढ़ना है? क्या एग्जाम देना है? इसका निर्णय कई बार बच्चों की पसंद के अनुरूप नहीं होता। इसलिए पढ़ाई में भी कई बार उनका मन नहीं लगता है।

एक्सपर्ट कमेंट : नतीजों से पता चलता है कि बच्चों को पढ़ाई के तनाव से ज्यादा मम्मी पापा क्या कहेंगे? समाज क्या कहेगा? रिश्तेदार क्या कहेंगे? इसका स्ट्रेस ज्यादा है। मेहनत के डर से ज्यादा रिजल्ट क्या रहेगा उसका भय अधिक चिंता देता है।

एक्सपर्ट कमेंट : कम नींद बच्चों में तनाव को दर्शाता है। बार-बार नींद टूटना। अच्छे से नींद नहीं आना। नींद के अंदर सपने आना या फिर सोने के बाद भी एकदम फ्रेश नहीं लगना यह दर्शाता है कि आपका बच्चा तनाव में है।

एक्सपर्ट कमेंट : एग्जाम का समय नजदीक आते ही बच्चों का घूमना फिरना बंद कर दिया जाता है। उनके टीवी देखना बंद कर दिया जाता है या उनके ऊपर कई तरीके की पाबंदियां लगा दी जाती हैं। जबकि बच्चों को हल्का मनोरंजन बहुत जरूरी है।

एक्सपर्ट कमेंट : हम बच्चों को सिर्फ एग्जाम में पास होने पर क्या होगा इसी के बारे में बात करते हैं। अगर उनका सिलेक्शन हो गया तो आगे की उनकी लाइफ कैसी होगी इसके बारे में बात करते हैं। पर हम कभी भी इस टॉपिक पर बात नहीं कर कि अगर प्लान सक्सेसफुल नहीं रहा, अगर बच्चों का सिलेक्शन नहीं हुआ तो उसके बाद दूसरा क्या विकल्प चुनेंगे।

यही कारण है कि बच्चों के मन में ये बातें बैठ जाती हैं कि मेरे नंबर अच्छे नहीं आए तो मेरा भविष्य अंधकार में है। मैं आगे कुछ नहीं कर सकता। मैं एक फेलियर हूं।

एक्सपर्ट कमेंट : तनाव से हमारी याददाश्त कम होती है। हमारी एकाग्रता कम होती हैं। हम उस चीज को इतने अच्छे से ग्रहण नहीं कर पाते। अगर हमारे सामने किताब खुली हुई है तो ऐसा लगता है कि हम अच्छे से पढ़ नहीं पा रहे। याद नहीं कर पा रहे। पीछे का हमारा सब कुछ हम भूलते जा रहे हैं। हमारी घबराहट बहुत ज्यादा हो जाती है और ऐसा ही एग्जाम के समय काफी सारे बच्चे महसूस करते हैं।

एक्सपर्ट कमेंट : तनाव बढ़ने पर किसी से शेयर नहीं करने पर वह तनाव बढ़ता ही है। अंदर ही अंदर परत दर परत जमा होता है और कई बार उसके दुष्परिणाम सामने दिखाई देते हैं। बहुत जरूरी है कि पेरेंट्स अपने बच्चों से खुलकर बात करें। उनमें कम्युनिकेशन गेप नहीं रहे। पेरेंट्स कई बार सिर्फ यही बात करते हैं- आज आपका एग्जाम कैसा हुआ? कितने मार्क्स आए?

अगर बच्चों से उनके एग्जाम पर बहुत ज्यादा सिर्फ क्वेश्चन आंसर होगा तो बच्चे अपने मन की बात करने से डरेंगे। 50 प्रतिशत से ज्यादा बच्चे अपने मन की बात अपने अंदर ही रख लेते हैं। किसी से शेयर नहीं करते। यही वजहें एक दिन तनाव को बहुत बड़ा बना देती हैं।

एक्सपर्ट कमेंट : बच्चों और पेरेंट्स के बीच अंडरस्टेंडिंग जितनी अच्छी हो उतनी ही बढ़िया है। कम इंटरेक्शन भी चिंता की बात है। कम्युनिकेशन गैप बिल्कुल नहीं होना चाहिए।

एक्सपर्ट कमेंट : आज की डिजिटल दुनिया में एंटरटेनमेंट का साधन भी मोबाइल स्क्रीन है। इसलिए अधिकतर बच्चे जब उन्हें ऐसा लगता है कि वह पढ़ नहीं पा रहे तो वह इंस्टाग्राम फेसबुक या गेम खेलकर अपना मनोरंजन करते हैं। पर कहीं ना कहीं धीरे-धीरे यह आदत लत में बदल जाती है।

इसकी वजह से वह अपना जितना समय पढ़ाई में देते हैं, वो धीरे-धीरे कम होता जाता है। असल में तनाव में इस तरह के मनोरंजन केवल ध्यान भटकाते हैं, तनाव को खत्म नहीं करते। फेसबुक इंस्टाग्राम तनाव दूर करने का साधन तो बिल्कुल नहीं है।

एक्सपर्ट कमेंट : वेब सीरीज ऐसा कंटेंट हैं जिसमें हमेशा सस्पेंस होते हैं….यूजर्स के मन में सवाल पैदा करते हैं कि अब आगे क्या होगा? यह 2-4 एपिसोड में खत्म नहीं होता। जो भी व्यक्ति एक बार देखना शुरू करता है तो धीरे-धीरे वह एक के बाद एक एपिसोड देखने लगता है।

इसके बाद एक वेब सीरीज से दूसरी वेब सीरीज और धीरे-धीरे यही आदत एक दिन बुरी लत में बदल जाती है। बहुत से बच्चों को पता ही नहीं चलता कि वे इसके शिकार भी हो चुके हैं। मनोविज्ञान की भाषा में इसे बिंज वाचिंग कहते हैं। यानी की लगातार देखने की आदत। जिससे पढ़ाई बहुत पीछे छूट जाती है।

एक्सपर्ट कमेंट : टेंशन जब हद से ज्यादा बढ़ जाता है तो वह डिप्रेशन और अवसाद का कारण बनता है। अवसाद की स्थिति में व्यक्ति को हर चीज नेगेटिव नजर आती है। उसकी सोच नेगेटिव होने लगती है। उसे भविष्य अंधकार में लगता है। किसी काम में मन नहीं लगता है।

कई बार अपने आप को खत्म करने के उसके मन में विचार आते हैं। नींद डिस्टर्ब रहती है। सुबह उठने के बाद भी उसको कोई काम करने का मन नहीं करता। किसी चीज में उमंग नजर नहीं आती। दोस्तों के साथ बात करने में इंटरेस्ट नहीं रहता। यह सब कुछ लक्षण है अवसाद के। अगर शुरुआत में ही पेरेंट्स बच्चों की इन बातों को नोटिस कर ले तो कोई खौफनाक कदम उठाने से पहले ही रोकने में मदद मिल सकती है।

एक्सपर्ट कमेंट : पारिवारिक माहौल या आसपास का वातावरण व्यक्ति के बिहेव पर काफी हद तक प्रभाव डालता है। इसलिए अगर पेरेंट्स में किसी बात की अनबन है, झगड़ा होता है तो उसका असर बच्चे की मानसिकता पर भी पड़ता है। इसका रिफ्लेक्शन उसकी पढ़ाई में नजर आने लगता है।

उसी तरह घर के अंदर कोई फाइनेंशियल इश्यू है तो उसका भी एक इनडायरेक्ट इफेक्ट बच्चों पर पड़ता है। अगर उसका सिलेक्शन नहीं हुआ तो फिर आगे क्या होगा। क्योंकि मां-बाप ने अपनी सारी जमा पूंजी है उसको पढ़ाने में लगा दी, यह सोचकर ही बच्चों में तनाव बढ़ने लगता है।

अब पढ़िए बच्चों के चौंकाने वाले कमेंट

दैनिक भास्कर को करीब 2000 से ज्यादा बच्चों ने टाइप करके भी कमेंट भेजे हैं। ज्यादातर बच्चों ने अपने मन की बात खुलकर रखने की कोशिश की है। कोचिंग सेंटर में असल में क्या हो रहा है? इतना तनाव क्यों लेते हैं? वो समस्याएं जो सर्वे फॉर्म में मेंशन नहीं थी उन्हें लिखकर भेजा है। भास्कर टीम हर कमेंट को बारीकी से पढ़ा है। इसके बाद वो 10 कमेंट आपके लिए रख रहे हैं…

15-19 की उम्र में हम इतने मैच्योर नहीं होते की हम इससे आगे की लाइफ को बड़े एंगल से समझ सकें। हमें इस उम्र की नाकामियों, गलतियों से ये एहसास होता है कि हम तो यहीं फेल हो गए…आगे तो क्या ही कुछ कर पाएंगे। हमारी सोशल लाइफ, इकोनॉमिक कंडिशन सब बिगड़ जाएगी।

ऐसे मोड पर हमें कभी कोई ये बताने वाला नहीं मिलता कि कंपटीशन में फेल होने के बाद भी जिंदगी है। 20 साल के बाद भी हम संभल सकते हैं। हालात इतने खराब नहीं होंगे, जितना हम सोच रहे हैं। कोटा में सुसाइड करने वालों में ये भी 1 कारण मानता हूं…..

18 साल के हर्षित ने ये बातें भास्कर सर्वे के कमेंट में टाइप करके भेजी हैं, जो खुद NEET की तैयारी कर रहे हैं। लेकिन ये अकेले हर्षित नहीं बल्कि 2 लाख से ज्यादा बच्चों की है। आइए बढ़ते हैं अगले कमेंट्स की ओर…..

घर वालों की उम्मीदें और बाहर वालों के ताने

  • रिश्तेदार जब भी मिलते हैं, यही सवाल करते हैं कि अब तक सिलेक्शन नहीं हुआ? बार-बार यही सुनना डिप्रेस करता है। गांव वाले ताने मारते हैं।
  • कोचिंग की फीस बहुत ज्यादा हैं, ये डर रहता है कि अगर सिलेक्शन नहीं हुआ तो घर वाले सोचेंगे उससे ज्यादा तो पड़ोसी क्या बोलेंगे? अगर नंबर कम आते हैं तो उससे डिप्रेशन अपने आप होगा।
  • घर की पारिवारिक कलह, घर वालों का प्यार से बात नहीं करना और पढाई का पूरा दबाव देना सबसे ज्यादा तनाव देता है। घरवालों को समझाने के बावजूद भी ये कंटिन्यू है। इससे मैं पढ़ाई पर फोकस नहीं कर पाता।
  • मैं बिहार से कोटा आया हूं। मेरा ये थर्ड ड्रॉप है। घर वालों का पूरा सपोर्ट है, लेकिन उम्मीदें बहुत हैं। क्योंकि मेरे बहुत से दोस्त और फैमिली मेंबर्स मेडिकल कॉलेज में हैं। मेरे पास भी मेडिकल कॉलेज के अलावा कोई ऑप्शन नहीं है। मेहनत तो पूरी करता हूं, क्लास में भी परफॉर्मेंस अच्छी (लगभग) रहती है। मगर खुद पर कभी-कभी शक होता है…ख्याल आता है अगर इस बार सिलेक्शन नहीं हुआ तो क्या करेगा?
  • ये सब बातें मैं घर में नहीं बता सकता, बहुत संघर्ष के बाद पिता जी ने कोटा भेजा है। मैं अपने दोस्तों से भी बात नहीं करता। ये बताते हुए शर्म आती है कि तीन साल से ड्रॉपर हूं….सुसाइड तो नहीं करूंगा लेकिन फ्रस्टेशन खत्म नहीं हो पाती…..

‘गलती कर दी ये सब्जेक्ट लेकर’

  • मैंने घरवालों के दबाव में मेरा फेवरेट सब्जेक्ट नहीं ले पाया, जिसके कारण अब पढ़ाई में मन नहीं लग रहा।
  • मुझे हाईस्कूल में आर्ट्स लेना था और UPSC की तैयारी करनी थी। लेकिन मेरा फैमिली बैकग्राउंड मेडिकल है, जिससे मुझे NEET की तैयारी करने के लिए फोर्स किया गया। घर वालों ने एक भी नहीं सुनी क्योंकि मेरे घरवाले कोचिंग के एड देखते और दूसरों के बच्चे से कंपेयर करते थे, जिससे मुझे अभी नीट की तैयारी करनी पड़ रही है। कोचिंग में तो पूरा प्रेशर रहता है। इंसान नहीं मशीन की तरह ट्रीट करते हैं।
  • 2 साल से NEET की तैयारी कर रहा हूं…मैंने अपने जीवन की सबसे बड़ी गलती की साइंस सब्जेक्ट चुनकर। ये विषय मुझे कभी समझ में नहीं आया। लेकिन 10th के बाद तब ये बाते समझ नहीं आती थी कि भविष्य पर क्या असर पड़ेगा। अब कुछ नहीं हो सकता। अब मेरी हालत ऐसी है कि मेरा करियर बर्बाद हो चुका है। अब जीवन में कुछ अच्छा नहीं लगता। पूरी तरह से हार चुका हूं।

कोचिंग इंस्टिट्यूट का फोकस केवल टॉपर्स पर

कोटा के जितने भी कोचिंग इंस्टिट्यूट हैं, वहां 200 स्टूडेंट्स का बैच रहता है। जिससे सभी बच्चों का टीचर्स से इंटरेक्शन बिल्कुल नहीं हो पाता। स्टूडेंट इतने लोगों में डाउट पूछने में घबराते हैं। बड़ी-बड़ी क्लासेज होने से टीचर्स आखिरी कोने में बैठे स्टूडेंट्स तक नहीं पहुंच पाते। अगर यही बैच 30 से 40 स्टूडेंट का हो तो ज्यादा बेहतर होगा। हर महीने में टीचर्स और पेरेंट की मीटिंग होनी चाहिए, ताकि मेरे जैसे स्टूडेंट्स की एकेडमिक परफॉर्मेंस का पर्सनली एनालिसिस भी सके। 200 बच्चों के एक क्लासरूम में टीचर्स को सभी को समझना चाहिए। केवल टॉपर्स पर ध्यान देते हैं।

हॉस्टल्स की दादागिरी, शहर में लूट

  • हॉस्टल में जितने पैसे देते हैं। उसके अनुकूल खाना भी नहीं मिलता है। हर समय खाने को लेकर हॉस्टल वाले डरा धमका कर रखते हैं।
  • पैसे कमाने के चक्कर में मैंने ऑनलाइन गेम में पैसे लगाने शुरू कर दिए। जीतने के चक्कर में लॉस होता चला गया। मैंने एक दिन में 5000 रुपए का लॉस कर दिया। पापा पैसे देते थे फीस के लिए और मैं गेम में डाल देता था। पापा को भी नहीं बताया है। अब मैंने पूरी तरह से गेम छोड़ दिया है पर लॉस हुए पैसे वापस कैसे लाऊं समझ नहीं आ रहा। मैं बहुत परेशान हूं क्या करूं।
  • बिहार से कोटा में स्टडी करने वाली एक 17 साल की स्टूडेंट ने लिखा है कि शहर में कोचिंग, हॉस्टल और दुकानदार लूट मचा कर रखी है। इस शहर में हर चीज में व्यवसाय है। सबसे ज्यादा हॉस्टल वाले शोषण करते हैं। कोचिंग वाले टेस्ट पर टेस्ट लेते हैं जो तनाव का मुख्य कारण है। पढ़ाई के बारे में सही से गाइड नहीं करते।
  • कोटा में किसी भी चीज का रेट फिक्स नहीं है। स्टूडेंट्स से मुंह मांगी कीमत वसूली जाती है। बाहर से आने वाले स्टूडेंट्स को लूटा जाता है।

बैक-टू बैक टेस्ट, एक संडे तो फ्री दे दो

हर पहले संडे ऑफलाइन टेस्ट होता है, हर दूसरे संडे ऑनलाइन टेस्ट, उसके बाद तीसरे संडे को फिर ऑफलाइन टेस्ट। ऑनलाइन टेस्ट में काफी ज्यादा सिलेबस होता है जो कि हमें रोजाना की पढ़ाई के साथ-साथ तैयार करना पड़ता है। संडे का भी पूरा दिन टेस्ट की तैयारी या टेस्ट देने में निकल जाता है।

हम अपने खुद के लिए 1 घंटा भी नहीं निकाल पाते। संडे को भी टेस्ट की टेंशन की वजह से अच्छे से नहीं सो पाते, क्योंकि कम मार्क्स आने पर पेरेंट्स हमारे बारे में क्या सोचेंगे, इसकी टेंशन रहती है। महीने में कम से कम एक संडे तो फ्री होना चाहिए जिसमें अच्छे से आराम कर सकें।

मैं x….x इंस्टीट्यूट में पढ़ाई करता हूं। हमें कभी भी रेस्ट करने का समय नहीं मिलता है। हर संडे टेस्ट होता है, सुबह 6:30 से दोपहर 1:30 तक कोचिंग में फिर घर पर पढ़ाई करते हैं।

पढ़ाई का इतना लोड होता है कि ठीक से सो भी नहीं पाते टेस्ट में बैक यूनिट्स से भी Question आते हैं, जिनको रिवीजन करने का Time भी नहीं मिलता है। फिर Test में कम MarKS आते हैं तो तनाव पैदा होता है। कभी-कभी तो स्टडी का Load इतना बढ़ जाता है कि हताश हो जाते हैं हम।

एक स्टूडेंट ने बताया- इस फॉर्मूले से बढ़ती है टेंशन

लंबा चौड़ा सिलेबस+अलग-अलग कोर्स की अलग-अलग फीस+फाइनेंशियल कंडिशन+ पेरेंट्स का दबाव+कोचिंग में टीचर्स का प्रेशर+ चिंता+ दूसरे के नंबर ज्यादा आने पर जलन+ घटता कॉन्फिडेंस

Result = तनाव

(कोई भी बच्चा पढ़ाई से नहीं घबराता उसका रिजल्ट डरावना आता तब घबराहट होती है, वो इसलिए क्योंकि लिमिटेड सीट्स हैं और कंपटीशन बहुत ज्यादा)

कोचिंग स्टूडेंट्स के कुछ सुझाव जो वे चाहते हैं

  • टेस्ट में हमारे मार्क्स की डिटेल जारी नहीं करनी चाहिए, बल्कि सबको पर्सनली जाए। ताकि किसी दूसरे के नंबर देखकर किसी को टेंशन नहीं हो।
  • कोई स्पोर्ट्स एक्टिविटी नहीं होती, कोचिंग के साथ-साथ स्ट्रेस रिलीज करने के लिए गेम जोन होना चाहिए।
  • टॉप बेच को छोडकर दूसरे बैच पर कोचिंग वाले ध्यान नहीं देते हैं।
  • हर सप्ताह में एक फुल हॉलीडे होना चाहिए, ताकि लंबी पढ़ाई से थोड़ा रिलेक्स नहीं मिल सके।
  • एक ने लिखा है, कोचिंग इंस्टीट्यूट का प्रेशर रहता है, कोई वीकेंड या लीव नहीं होती।
  • कोचिंग में सेटरडे का हॉलीडे होना चाहिए। जिससे स्टूडेंट्स को बैकलॉग्स क्लीयर करने का टाइम मिल सके।

वो स्टूडेंट्स जो सुसाइड करना चाहते थे:कोई मम्मी का फोन आया तो रोने लगा, कोई 15 दिन हॉस्टल से बाहर नहीं निकला

सर, लगातार तैयारी के बाद भी कुछ समझ नहीं आ रहा मरना चाहता हूं….

सुबह खाओ, पढ़ो, कोचिंग जाओ, आओ, लंच करो, कोचिंग जाओ, फिर पढ़ने बैठो, ऐसा लग रहा है जेल में हूं, सुसाइड के अलावा कुछ भी नजर नहीं आ रहा

मेरे नंबर कम आए हैं, मैं अपने पेरेंट्स से झूठ बोल रहा हूं… इन नंबर की वजह से गर्लफ्रेंड ने ब्रेकअप कर लिया

ये उन स्टूडेंट के फोन कॉल हैं, जिन्होंने सुसाइड का प्लान किया। इन जैसे और भी स्टूडेंट हैं जो मरना चाहते हैं और इन सभी का एक ही कारण है मेडिकल और इंजीनियरिंग के कॉम्पिटिशन में टॉप आने का प्रेशर

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