काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के लिए 6 लाख रुपए मुआवजे में 1164 एकड़ जमीन अधिग्रहित की गई थी। यह पैसा देश के राजे-रजवाड़ों से आया। मालवीय जी और दरभंगा नरेश ने मिलकर 5 साल में कुल 1 करोड़ की रकम चंदे से जुटाई थी। दो साल में 21 लाख, 3 साल में 50 और 5 साल में एक करोड़ रुपए।
कहते हैं कि साल 1911 में जब महामना पंडित मदन मोहन मालवीय और दरभंगा नरेश ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के स्थापना का विचार तात्कालिक शिक्षा मंत्री सर हरकोर्ट बटलर को सुनाया, तो उसने कहा कि पहले एक करोड़ रुपए जुटाओ, फिर हम विश्वविद्यालय खोलने की परमिशन देंगे।
आइए, हालिया खुले महामना अभिलेखागार में मिले दस्तावेजों के हवाले से जानते हैं कि किस तरह से रकम कलेक्ट किए गए।
4 दिसंबर, 1911 को बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी सोसायटी के 32 सदस्यों ने दिल्ली में शिक्षा मंत्री हरकोर्ट बटलर से मुलाकात की। यह तय हुआ कि यूनिवर्सिटी एक्ट पास हो जाने पर उसका क्रियान्वयन होगा। – जब बैंक में 50 लाख रुपए जमा हो जाए और सोसायटी 1 करोड़ जमा करने की स्थिति में हो। इस आश्वासन पर 15 दिसंबर, 1911 को 1860 अधिनियम के तहत BHU नाम की रजिस्ट्री कर दी गई।
अब संकट था कि इतनी रकम कैसे जुटेगी। पंडित मालवीय ने धन संग्रह का एक बड़ा अभियान चलाया। राजा-महराजा, नेता, विद्वान, व्यापारियों और धनवान सेठों ने इसमें भाग लिया। 1 अप्रैल, 1913 तक कुल 21 लाख रुपए जुटा लिए गए थे। वहीं, इस समय तक 80 लाख रुपए के दान का आश्वासन मिला था। 1915 की शुरुआत में 50 लाख रुपए जुटे। इसमें बीकानेर महाराजा, महाराजा जोधपुर और महाराजा कश्मीर ने अनुदान दिया था। वहीं, 1916 में स्थापना तक 1 करोड़ रुपए भी इकट्ठा कर लिए गए।
महामना ने दिया फंड कलेक्शन का फार्मूला
पंडित मदन मोहन मालवीय ने शुरुआती 50 लाख रुपए कलेक्ट करने के लिए डोनेटर्स की अलग-अलग कटेगरी बनाई। फिर, यह टारगेट सेट किया कि इस निश्चित कटेगरी में इतनी रकम जुटानी ही है। जैसे- 1 लाख रुपये के 20 डोनेटर, 50 हजार रुपये के 10, 10 हजार के 100 और 5 हजार के 200 डोनेशन इकट्ठा किया गया। इस तरह से कुल 50 लाख रुपए चार साल में जुट गए। जो लोग महामना को पैसे देते थे उनके नाम इलाहाबाद से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र में लीडर में बडे़ सम्मान के साथ प्रकाशित करते थे।
पहले दान किया कंगन, फिर दोगुने दाम पर खरीदकर म्यूजियम में रखवाया
मेरठ की एक सभा में 5 लाख रुपए आ गए। ऐसे ही मुजफ्फरपुर के एक बंगाली व्यक्ति ने 5 हजार रुपए दान में दिए। पत्नी ने सोने का कंगन उतार कर दान कर दिया। बाद में पति ने कंगन को दोगुने दाम पर खरीदा, मगर पत्नी ने उस कंगन को पहनने के बजाय म्यूजियम में रखवा दिया। कहते हैं कि राह चलते लोग बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के नाम पर चेक फाड़ कर दे देते थे।
प्रमुख दानकर्ता रजवाड़ों को बारी-बारी से बनाया गया चांसलर
महाराज दरभंगा रामेश्वर सिंह, बीकानेर के महाराज सर गंगा सिंह बहादुर, उदयपुर के महाराज फतेह सिंह, बड़ौदा के महाराज सयाजी राव गायकवाड़, जोधपुर महाराज उम्मेद सिंह बहादुर, मैसूर के महाराजा कृष्णराव वाडियार, ग्वालियर महाराजा जिवाजी राव सिंधिया, कश्मीर के महाराज हरिसिंह बहादुर ने बड़ी राशि दान की। इन रजवाड़ों को सम्मान देने के लिए कई पीढ़ियों को BHU का चांसलर नियुक्त किया गया। दरभंगा के महाराज रामेश्वर सिंह के बेटे कामेश्वर सिंह, काशीराज प्रभुनारायण सिंह के बाद आदित्य नारायण सिंह और महाराज डॉ. विभूति नारायण सिंह, वहीं कश्मीर के महराजा हरि सिंह के उत्तराधिकारी डॉ. कर्ण सिंह आदि ने BHU के चांसलर पद को सुशोभित किया है।
महामना अपील- ह्रदय खोलकर दान दें और औघड़ दानी भोलेनाथ की अनुकंपा पाएं
BHU के संस्थापक पंडित मदन मोहन मालवीय ने दान के लिए एक अपील को खूब प्रसारित किया। जिसके बाद दानियों की कतार लग गई। आइए, पढ़ते हैं क्या थी वो अपील- काशी प्राचीन काल से शिक्षा की केंद्र रही है। यहां पर विद्यार्थी नि:शुल्क ज्ञान और उच्च शिक्षा पाते हैं। उनके खाने-पीने का प्रबंध होता है। ऐसे स्थान पर मैं एक विश्वविद्यालय की स्थापना कर रहा हूं। जहां प्राचीन काल का पदार्थ विज्ञान और आधुनिक काल का विज्ञान एक साथ पढ़ाया जाएगा। इस क्रांति में सहजता से बढ़कर कोई दान नहीं है। उदार ह्रदय लोगों के लिए यह अनुपम अवसर है। वे ह्रदय खोलकर दान दें और औघड़ दानी भोलेनाथ की अनुकंपा हासिल करें।