गुजरात का यह विधानसभा चुनाव कई मायने में खास है। 27 साल से यहां सत्ता संभाल रही भाजपा के लिए इसलिए क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गृह राज्य है और विपक्ष व मोदी विरोधी बाजी पलटकर 2024 के लिए माहौल बनाने के सपने बुन रहे हैं। कांग्रेस के लिए इसलिए अहम है क्योंकि अर्से बाद 2017 के चुनाव में उसे बड़ी सफलता मिली थी, जिसके बाद बीजेपी को लगातार रणनीति बदलनी पड़ी। आदिवासियों व पाटीदारों में कमजोर होने के बावजूद कांग्रेस सत्ता विरोधी रुझान के सहारे सत्ता की उम्मीद कर रही है।
दिल्ली और पंजाब के बाद आम आदमी पार्टी के भी सपने सातवें आसमान पर हैं। आप तेजी से अपना झाड़ू राज्य के दूरदराज क्षेत्रों तक पहुंचाने में जुटी है। ऐसे में हर किसी में उत्सुकता है कि गुजरात क्या सोच रहा है और क्या करने वाला है? दरअसल, यूपी-बिहार जैसे राज्यों के उलट गुजरात का सामाजिक चरित्र दो रूपों में बंटा नजर आता है। शहर के लोग नौकरी की उम्मीद में बैठने की जगह कारोबार में लगना पसंद करते हैं। वहीं, ग्रामीण क्षेत्रों में खेती-किसानी की समस्याएं और रोजगार जैसे मुद्दे यहां भी हैं।
भावनगर के अनाज के थोक कारोबारी पार्थ दोषी कहते हैं कि यहां सुरक्षा, स्वास्थ्य व अच्छा इन्फ्रास्ट्रक्चर सब है। गुजरात वाले मुफ्तखोरी के कल्चर वाले नहीं हैं। मुश्किल ये है कि मॉल कल्चर ने फुटकर कारोबारियों को तबाह कर दिया है। फुटकर कारोबारियों के लिए जो रिजर्व सेक्टर थे, ज्यादातर बड़े बिजनेस प्लेयर के लिए खोल दिए गए। मध्य वर्ग पिस रहा है। हालांकि, वह कहते हैं कि इस वजह से देश व राज्य गलत हाथों में नहीं दे सकते। अहमदाबाद के कठवाड़ा गांव निकोल के रहने वाले मनसुख भाई इससे आगे की बात करते हैं।
वह कहते हैं, भाजपा मजबूत है। लेकिन, आम लोग महंगाई से परेशान हैं। पिछली बार भाजपा विरोधी कांग्रेस के साथ थे, इस बार लोग आम आदमी पार्टी का नाम ले रहे हैं। पंचमहल जिले के हलोल के सेवानिवृत्त कर्मचारी गुनवंत सिंह कहते हैं, हम आदिवासी समाज से आते हैं। सरकारी आवास की तीसरी किस्त मिलने की दिक्कतें, मनरेगा का पैसा मिलने में मुश्किलें, किसान सम्मान निधि मिलने में परेशानी और खराब फसल का मुआवजा मिलने जैसी समस्याओं से लोग जूझ रहे हैं। कहीं सुनवाई नहीं है। मोदी जी से नाराजगी नहीं है। लेकिन स्थानीय नेताओं से लोग खुश नहीं है।
शहरी व ग्रामीण मतदाताओं का व्यवहार अलग-अलग
एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. प्रतिमा राय कहती हैं, शहरी इलाके बीजेपी के गढ़ बन गए हैं। कारोबारियों का बड़ा तबका खुलकर उसके साथ है। लेकिन, ग्रामीण क्षेत्रों में खासकर आदिवासियों के बीच कांग्रेस अब भी मजबूत है। वहीं, आम आदमी पार्टी भाजपा से नाराज मतदाताओं में बंटवारा करती नजर आ रही है।
अहमदाबाद में राजनीतिक विश्लेषक सिद्धार्थ पण्ड्या कहते हैं कि आप के आने से कई जगह लड़ाई त्रिकोणीय हो रही है। आप ने मुफ्त वाली घोषणाएं कीं तो भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व भी सक्रिय हुआ। कुछ ही दिन में राज्य सरकार ने ट्रांसपोर्ट व संविदा कर्मचारियों से लेकर किसानों तक के कई मुद्दों के समाधान की घोषणा कर दी।
सत्ता विरोधी रुझान की काट के लिए पुराने लोगों के टिकट काटे और कांग्रेस के मजबूत लोगों को पार्टी में लाई। इस बार हार्दिक पटेल व अल्पेश ठाकोर भाजपा प्रत्याशी हैं। सबसे बड़ी बात, भाजपा के पास नरेंद्र मोदी हैं, जो किसी के पास नहीं हैं। यहां चुनाव के केंद्र में मोदी जैसे-जैसे आते जाएंगे, तस्वीर ज्यादा साफ होती जाएगी।
27 साल से राज, लेकिन नहीं तोड़ पाए रिकॉर्ड… इस बार लगेगा पूरा जोर
27 वर्ष से सूबे की सत्ता पर राज कर रही भाजपा के लिए वैसे तो ये चुनाव कई मायने में प्रतिष्ठा से जुड़ा है। लेकिन, एक सवाल उसके समर्थकों के मन में भी है कि क्या पार्टी कांग्रेस के 149 सीटें जीतने का रिकॉर्ड तोड़ पाएगी। कांग्रेस ने माधव सिंह सोलंकी के नेतृत्व में यह रिकॉर्ड बनाया था। भाजपा ने इस बार 150 सीट पार का नारा दिया है। सवाल यही है कि क्या वह करिश्मा कर पाएगी?
फ्लैश बैक
- कांग्रेस 1985 में आखिरी बार सत्ता में आई थी। 1990 में जनता दल 70 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। इसी वर्ष भाजपा ने 67 सीटें जीती थी। कांग्रेस ने 33 सीटें जीतीं।
- बाद के सभी चुनावों में बीजेपी को बहुमत मिला… भाजपा ने 1995 में 121, 1998 में 117 और 2002 में 127 सीटें जीती थीं। 2007 में 117 और 2012 में 115 सीटें जीतीं।
- 2017 का चुनाव कांटे का रहा… भाजपा दो अंकों पर सिमट गई। कांग्रेस ने 77 सीटाें पर जीत हासिल की।
- भाजपा ने 2017 में 100 सीटों के भीतर सिमटने से सबक लिया और पाटीदार व आदिवासी समाज की नाराजगी दूर करने का प्रयास करती रही।
- पाटीदार समाज को संतुष्ट करने के लिए मुख्यमंत्री तक बदला। विजय रूपाणी की जगह पाटीदार समाज के भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री बनाया। अगला सीएम भी भूपेंद्र पटेल को ही पेश किया।
- पाटीदार व पिछड़ा आंदोलन के नेतृत्वकर्ताओं हार्दिक पटेल व अल्पेश ठाकोर को भाजपा में शामिल किया। अब ये दोनों भाजपा प्रत्याशी हैं।
- आदिवासी समाज को साधने के लिए पार्टी ने समाज में तेजी से आगे बढ़ रही निमिषाबेन मनहरसिंह सुथार (निमिषा सुथार) को मंत्री बनाया और उन्हें पार्टी स्तर पर आदिवासी चेहरे के रूप में आगे बढ़ाने की पहल की।
- लगातार 27 वर्ष से सत्ता में काबिज भाजपा सत्ता विरोधी लहर की आशंका से भी सतर्क है। आरएसएस व सहयोगी संगठनों के समर्थन के बावजूद भाजपा नेतृत्व कोई जोखिम उठाने के मूड में नहीं है। पीएम मोदी लगातार तीन दिन तक गुजरात में डेरा डाले रहे। इससे पहले भी वह दो बार आ चुके हैं। वहीं, गृहमंत्री अमित शाह के हाथों चुनाव की कमान है।
- अहमद पटेल गुजरात में पार्टी के असली रणनीतिकार थे। उनका निधन बड़ा झटका। वहीं पार्टी अब तक कोई सीएम चेहरा भी पेश नहीं कर पाई।
- नेतृत्व ने किसी को आगे नहीं बढ़ाया, जो पूरे राज्य को नेतृत्व दे। हालांकि प्रदेश अध्यक्ष जगदीश ठाकोर जोर लगाए हुए हैं।
- पाटीदार नेता हार्दिक पटेल व अन्य पिछड़ा वर्ग के नेता अल्पेश ठाकोर ने पार्टी छोड़ी। आदिवासी नेता छोटूभाई वसावा ने भी दूरी बनाई।
- आदिवासी नेता मोहन सिंह राठवा कांग्रेस के 14 विधायकाें के साथ बीजेपी में शामिल हो गए।
- आम आदमी पार्टी ने खुद को भाजपा के विकल्प के रूप में पेश किया। पत्रकारिता से राजनीति में आए इसुदान गढ़वी को सीएम के तौर पर प्रोजेक्ट किया है।
- गुजरात में पैर पसारने के लिए दिल्ली-पंजाब जैसी लुभावनी घोषणाओं का दांव चला है।
- राज्य सरकार पर आक्रामक रहने के चलते भाजपा के आरोपों के केंद्र में कांग्रेस की जगह आप आई।
- अप्रैल से लगातार गुजरात में लोगों से मिल रहे हैं आप नेता। अरविंद केजरीवाल खुद गुजरात के लगातार दौरे कर रहे हैं।
- पहला चरण : 89 सीट
- मतदान : 1 दिसंबर
- दूसरा चरण : 93 सीट
- मतदान : 5 दिसंबर
- अनुसूचित जनजाति-27
- अनुसूचित जाति-13
1621 प्रत्याशी मैदान में हैं नाम वापसी के बाद
- पहला चरण : 788 उम्मीदवार चुनाव लड़ेंगे।
- दूसरा चरण : 833 उम्मीदवार मैदान में हैं।
- भाजपा ने सभी 182 सीट पर उम्मीदवार उतारे।
- कांग्रेस ने 179 सीटों पर प्रत्याशी उतारे। तीन सीटें राकांपा को दी। एक राकांपा उम्मीदवार ने देवगढ़ बरिया सीट से नामांकन वापस लिया।
- आप के एक प्रत्याशी ने सूरत पूर्व सीट से नामांकन वापस लिया। इस तरह वह 181 सीट पर लड़ेगी।
परिणाम तय करेगा कि अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा को चुनौती कौन देगा?